Saturday, 25 February 2012

garima purn jivan aur janjati

खुद को मनुष्य ,
समझने का एहसास है ,
और उन्हें अपने से कम ,
जनजाति कहने का प्रयास है ,
ये जिन्दगी का कौन फलसफा ,
हमारा भी कैसा कयास है ,
थारू , भोक्सा , राजी ,भोटिया ,
क्या नाम काफी न था उनका ,
फिर जनजाति नाम है किनका ,
कहते है हम उन्हें चिडिया घर ,
का जानवर नही मानते है ,
पर आज तक उन्हें आदिम ,वनवासी ,
ही क्यों हर कही मानते है ,
न जाने कितने आधुनिक ने ,
रचाई शादी इन्ही आदिम मानव से ,
पर जाने क्यों जब तब लगते ,
 ये मानवशास्त्रियो को दानव से ,
मानवाधिकार का दौर चल रहा है ,
रंग भेद का दम निकल रहा है ,
फिर भी जनजाति का हनन जरी है ,
न जाने  क्या फितरत हमारी है ,
मानो ना मानो हम दुकान चलाते है ,
इन्ही के नाम पर दुनिया में जाते है ,
पर ओंगे , जारवा नचाये जाते है ,
एक रोटी के लिए रोये जाते है ,
शायद मनुष्यता का अनोखा रंग है ,
जनजाति हमारी कमी का ढंग है ,
कोई इन्हें भी दौड़ गले लगा लेता ,
मानव है ये अब तो बता देता ,
आलोक विचलित है दिल किसे बताऊ ,
काश कभी मै भी इनके काम आऊ..........................
आप सभी को लग सकता है कि मै आज कल जनजाति पर क्यों लिख रहा हूँ , क्योकि मै आज तक नही जन पाया कि हम लोग इन्ही जनजाति पर बात करके न जाने कितनी सुविधाओ में जी जाते है और  देश की ६९८ जनजाति में ज्यादातर यह भी नही जानते कि आधुनिकता का मतलब क्या है ?????????????? क्या मानवधिकार उन्हें गरिमा पूर्ण जीवन जीने का अधिकार नही देता है ????????????????? डॉ आलोक चांत्तिया

Friday, 24 February 2012

aadmi kis ko khu

मनुष्य को बाँट कर ,
मनुष्य को छांट कर ,
मनुष्य खुद क्या रहा ,
पर उसने क्या सहा ,
सब ने मिलके किया ,
खूब हसी और ठठ्ठे,
किसी ने उड़ाई शराब ,
और किसी ने ठुमके ,
जिस के खातिर ये सब ,
उसने भी घर का अँधेरा ,
मिटाने के लिए जलाया ,
एक दीपक ढूंढ़ लाया ,
चूल्हे पर पसीने से भीगी ,
रोटी की सोंधी महक ,
फटे कपड़ो में बदन ,
में उभरी एक चहक ,
जमीन में सोने का ,
पूरा होता उसका सपना ,
अँधेरे से गुजरते ऐसे ,
जीवन को पता ही नही ,
कि दूर कही हवा में ,
रौशनी से नहाये कमरे ,
शराब , मछली के स्वर ,
में फूल से लदे मनुष्य ,
कर रहे है उसी कि बाते ,
दिन ही नही वातानुकूलित ,
कट रही है उनकी राते ,
चाहते है उसके नाम पर ,
बोलने वाले हर कही
एक एक शब्द कि कीमत ,
चलने फिरने का भी मोल ,
लेकिन वह होता है गोल ,
कोठे कि तरह चलते मुजरे ,
उसके जीवन में क्या अब गुजरे ,
इस से किसी को क्या मतलब ,
बस खुद को साबित कर लिया ,
पर उसके लिए क्या किया ,
क्यों सोचे कोई इस पर ,
सेमिनार तो मुंडन , शादी ,
की तरह बस नाते दारी है ,
क्यों कि जीजा फूफा की,
होनी अब दावे दारी है
लड़की वालो की तरह ,
लूटे पिटे जन जाती के लोग ,
सब लुटा कर जिलाने की
जुगत में दामाद को ,
कर्ज में डूब कर हँसाने की ,
की लालसा आज भी है ,
जनजाति होने का अभिशाप ,
सेमिनार के दामादो को ,
हँसाने में कही आज भी है ,
रूठ न जाये क्या पता ,
दामाद है शिक्षा के ,
इसी लिए जनजाति को ,
बस मरते रहना है ,
इन्हें तो मनुष्य पर ,
खुद को जंगली करना है ,
आखिर इनकी दुकान जो ,
चलाते रहना है सेमिनार से ,
क्या हम भी मनुष्य बनेगे ,
इअसे होते र्ह्तेव सेमिनार से .........जनजाति पर न जाने कितने सेमिनार होते है सरकार लोकहो रुपये खर्च करती है जनजाति आज तक इस देश में समाया मनुष्य नही बन पाया ...इस देश में विकास को आइना तो देखिये ,..जब देश स्वतंत्र हुआ तो २१२ जनजातिय समूह थे जो आज बढ़ कर ६९८ हो गए है .......क्या हम जनजाति भारत बना रहे है ..क्या हम कबीला संस्कृति  बढ़ा रहे है क्यों कि विकास के आईने में जनजाति एक नकारात्मक शब्द है ...और हम हर साल सेमिनार करते है ...क्या सेमिनार में वही नही होता जो मैंने पानी टूटी फूटी पंक्तियों में उकेरा है ...पर एहसास मर गया है हमारा

Monday, 20 February 2012

world social justice day

आज दिनाक २०-०२-२०१२ को विश्व सामजिक न्याय दिवस को अखिल भारतीय अधिकार संगठन के केंद्रीय कार्यालय , इंदिरा नगर , लखनऊ पर १२.३० अपरान्ह पर शुरू हुई , कैंट क्षेत्र के विधान सभा क्षेत्र के उम्मेदवार श्री उमेश शुक्ल ने सामाजिक न्याय के नाम पर दिए जाने वाले आरंक्षण पर प्रत्रिक्रिया देते हुए कहा कि देश में आज आरक्षण के नाम पर इतना विभाजन हो चूका है कि छह कर के भी एक पूर्ण भारत की कल्पना दूभर हो गई है क्योकि लोग समरसता  से ज्यादा विघटन फैला कर अपने मकसद को पूरा करने में लगे है जिस से सामाजिक न्याय को क्षति ही ज्यादा हुई है , डॉ महिमा देवी ने कहा कि सामजिक न्याय के मामले में औरत को महिला सशक्तिकरण का जो चहरा दिखा कर उसे घरो से बहर निकाला गया वह इतना खोखला निकाला कि आज घर में काम करने वाली औरत से ज्यादा बहर काम करने वाली औरत का शोषण हो रहा है और न्याय व्यवस्था इतनी जटिल कर दी गई है कि एक पीड़ित औरत अपना शोषण करना ही ज्यादा  उचित समझती है बजाये इसके कि वह पूरी उम्र आवाज़ उठती हुए बिना किसी गरिमा के मर जाये , श्रीमती सोनिया श्रीवास्तव ने कहा कि वह एक सरकारी महिला है पर हर बार इस बात का एहसास करा दिया जाता है कि औरत पुरुष से नीचे या दोयम दर्जे पर ही खड़ी है और बार बार इसी को देख कर औरत चुप हो जाती है , डॉ प्रीती मिश्रा , मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि सामजिक न्याय के नाम पर समाज के हर वर्ग में चेतना कुछ इस तरह कि आ रही है कि लोग ज्यादा से ज्यादा शोषण करने लगे है , स्थाई विकास का नजर अंदाज किया जा रहा है जिसका परिणाम आने वाली पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा , डॉ अंशु केडिया , उपाध्यक्ष , लुँक्टा ने कहा कि सामाजिक न्याय एक ऐसी प्रक्रिया है जिस पर कुछ दिन तो संक्रमण के रहेंगे पर जल्दी ही इसके सुखद परिणाम भी मिलेंगे , संदीप कुमार सिंह ने कहा कि बेरोजगारी इस बात को बताने के लिए काफी है कि सामाजिक न्याय का स्तर क्या है ? अतुल कुमार सिंह ने कहा कि मीडिया ने सामाजिक न्याय को बढ़ने के लिए अह्थक योगदान किया है , संगठन के अध्यक्ष डॉ आलोक चांत्टियाने कहा कि सामाजिक न्याय के लिए भारत कभी से तैयार नही था , जाति व्यवस्था इसका जीता जगता उदहारण है , आज भी जिस तरह से राजनीती ने विघटन की निति अपना रखी है उस से देश के इतने टुकड़े भविष्य में हो सकते है कि पीढियों को यह भी जानना मुश्किल हो जायेगा कि वास्तविक भारत कैसा था ??? उन्हों ने विश्व सामाजिक न्याय दिवस पर यही अपील की कि पुरे विश्व में रंग भेद की निति का विरोध होना चाहिए और आदमी को सम्मान रुपये और पद के बजाये इस लिए मिलनी चाहिए क्यों की हम सब एक ही पूर्वज और मानव की संतान है , और जब तक यह भावना नही आएगी तब तक सामाजिक न्याय की बात एक कल्पना से ज्यादा कुछ नही है .....इस मुले पर करीं ३५ लोग उपस्थित थे जिनमे तरुण कुमार तेवरी , संदीप सिंह ,विष्णु प्रताप , विश्व नाथ  शालिनी गुप्ता , शिखा , शशांक , अंशुल , राजीव, संजीव , आदि लोग संगठन के भी थे 
प्रेषक
डॉ आलोक चांत्टिया
अखिल भारतीय अधिकार संगठन 

Sunday, 19 February 2012

sex as right

Of all the hubbub rightly surrounding the healthcare mandate handed down from the imperial throne of Barack Obama, one aspect of this issue has not been sufficiently discussed: the disturbing fact that sex has now made its way into nearly all aspects of American life. Many have written of the clash between First Amendment rights and those who would seek to curb them, while others have debated the moral evils of abortion, but few have sought to plumb the cause of it all: our national descent into the sexual gutter.
Without doubt or question, sex rules our airwaves, satellites and all the forms of human communication which comprise our leisure time. The subject of sex dominates our children's education and overflows into the fields of sports, music and the so-called arts. It is indeed impossible to watch or listen to any form of entertainment without being bombarded with direct or indirect references to, or advertisements for, sex; its attainment, its glorification or the improvement of its 'performance'.
When we speak of sex this does not, of course, refer to what was once known as conjugal love; that which in an ordered society is a beneficial and great moral good. No, the modern conception of sex is that exercise of bodily functions which exists only for the use of human beings by other human beings solely as instruments of physical pleasure; often perversely so.
This desire for unfettered access to sex is probably one of the greatest reasons for this country's unfortunate descent into the realms of atheism and agnosticism. "A loving God would never be against___:" fill in the blank with "hookups" or any number of sexual deviations. After all, a creator who did not intend for our bodies to engage in rampant and random sex cannot really be worthy of worship, can he?
This has resulted in the loss of the idea that humanity was blessed with a divine gift which, in our manner of reproduction, differentiates man from beast. It is no accident that, when building his empire, sex magnate Hugh Hefner modeled his Playboy magazine around the image of rabbits; and his crude joke has now become public policy: humans are now free to mate without conscience or consequence.
Since the so-called sexual revolution, the exaltation of sex has corrupted much of what this country used to hold dear, especially motherhood. Prior to the 1960s, no one--except maybe adolescent boys--really associated pregnancy with what moderns call "sex." Babies were brought forth as the natural extension of love between man and wife; the two becoming one flesh; the product of lawful marriage, which has always been the pillar of any civilized--or even uncivilized--culture.
Pregnancy was celebrated as the coming of a 'blessed event' or a 'bundle of joy' and mothers were revered as symbolic of America herself, along with baseball and apple pie. Today, pregnancy has been described as a "punishment" by our president, while full-time mothers are regarded as anachronistic failures by all but the most twisted of religious fanatics. So the inclusion of abortion and contraception into the area of healthcare is just the next step in the logical progression of the dismantling of marriage and motherhood.
Yes, sex has overtaken the common sense of otherwise sober Americans and now even intrudes itself into our government, via the despotic mandates of legislation that was unwanted by the majority of its citizens and blatantly unconstitutional. One wonders what our Founding Fathers would have though if confronted with the fact that in 21st Century America, sexual license would be included in the list of freedoms and inalienable rights to be protected and even funded by our government.
It's a pretty good bet that they would be repulsed, as they knew that unless base, sexual urges are curbed, the nation would soon be overrun by pederasty, pornography, social disease, the objectification of women and generations of fatherless children. Well, in the words of a so-called churchman, those chickens have indeed come home to roost.
Has sexual licentiousness existed for thousands of years? Of course; history, literature and even the Bible are full of it. But remember that those lurid biblical tales, Shakespearean tragedies and operas about 'the world's oldest profession' all came with moral lessons attached: participation in and glorification of illicit sex has always come with a price; the one we're currently paying. ESRby lisa

last article on matdan as human right

आज लखनऊ में करीब ५९ % मतदान हुआ यानि करीब ४१ % लोग या तो घर से बाहर नही निकले या फिर यह वही लोग है जो अंग्रेजो के समय भी घर में बैठे रहे और देश करीब ३५० साल गुलाम रहा , पर इन सब के बीच यह ख़ुशी की बात कही जा सकती है कि जहा पिछली बार ३६% मत पड़े थे वही मतों का प्रतशित बढ़ा है ......क्या कारण है कि हम घर में तो बैठे रहते है पर सकारात्मक काम करने में रूचि नही लेते हा अगर घर में बैठे कोई शोर सुने दे तो हम निकल कर देखना पसंद करते है कि खा लड़ाई चल रही है , गाली गलौच चल रहा है , कौन मार पीट कर रहा है या कभी कभी अपने घर के दरवाजे या खिड़की पर खड़े होकर पूरा एपिसोड भी देखते है , क्या हम विनाश या नकारात्मक देखने के आदी हो चुके है ????????????? मत डालने के लिए सारकार द्वारा की गई कवायद से यह तो साफ़ है कि सरकार के इरादे भी मत दान करवाने के लिए नेक नही है क्योकि जितने रुपये उसने होर्डिंग , और अधिकारिओ की पत्नी को लाभ पहुचने के लिए खर्च किया उस से कही कम पैसे में सिर्फ इतना कह भर देने से कि कोई भी सरकारी लाभ पाने के लिए मत का प्रयोग करना आवश्यक है और इस के लिए मत दान करना जरुरी है और जब आप मत डाले तो एक पर्ची आपको मिलेगी जिसे आपको संभाल कर रखना होगा और जहा कही भी आप सरकारी सहायता चाहते है तो इस पर्ची को दिखाना जरुरी होगा .....इस युक्ति से करीब ९०% मत पड़ जाते ...यही नही जिनके मत कार्ड नही बने हो उन्हें  भी मतदान केंद्र से यह पर्ची प्राप्त करना जरुरी हो कि उनका नाम अभी नही आया है या फिर नही बना है , ऐसे सभी १८ साल से ज्यादा उम्र के युवाओ को लापरवाही से रोका जा सकता है और अगले चुनाव में वह खुद मत डालने के लिए कार्ड बनवा लेंगे ..क्यों कि कार्ड न बन ने की छूट सिर्फ एक बार मिल सकता है ...पर पता नही क्यों सरकार ने ऐसा कुछ न करके ऐसी व्यवस्था लागु करने की कोशिश की जा रही है जिस से किसी भी स्थिति में ६० % से ज्यादा मतदाता हो ही नही सके ....सुना था कि अंधेर नगरी चौपट राजा ...टके सेर भाजी टके सेर खाजा ....पर यह तो भारत में बिलकुल सही है ..सरकार ने चुनाव को राष्ट्र सेवा , राष्ट्र भक्ति , आदी से कभी जोड़ कर प्रस्तुत ही नही किया ...यही नही पूरे देश को चुनाव के जाल में इस तरह बांध दिया गया है कि सारा देश किसी न किसी राज्य के चुनाव में ही उलझा रहता है और चुनाव के कारण नेताओ को भागना दौड़ना पड़ता है .....आज तक किसी नेता ने यह नही चाहा कि लोग यह जाने कि मत डालने से राष्ट्र निर्माण किस तरह हो सकता है क्यों कि वह जनता है कि जितनी जनता जागरूक होगी उतनी ही जवाबदेही बन जाएगी , इसी लिए नेता साक्षर बनाने में तो जूता है अपर पढ़ा लिखा देश बनाने में उसकी रूचि  नही है , इसी लिए शिक्षा को इतनी महंगी करे दे रहे है कि लोगो की पहुच से ही दूर हो जाये . ऐसे ही और भी कारण है जिनके कारण देश में भारतवासी की संख्या बढ़ी है पर भारतीयों की संख्या कम हुई है , सरकार ने यह बी जन लिया है कि जनसँख्या और प्राकृतिक संसाधन से बीच का असंतुलन कभी भी देश के प्रति संवेदन शील बनने ही नही देगा और वे लोग जब जहा जैसे चाहे देश को चला सकते है ....यह भी मतदात को सोचना होगा कि अरबो का घोटाला करने वाले जमानत पर छूट जा रहे है और उसी चोरी के पैसे से केस लड़ते है ऐश करते है और वाद २० साल चलता है और अन्तःतः वे छूट जाते है साक्ष्यो के अभावो में पर छोटी चोरी करने वाला हमेशा जेल के सिखचो के पीछे ही सड़ जाता है , यही कारण है कि देश में बड़े चोर बन ने का चलन बढ़ा है और राजनीती में इसा चलन ज्यादा ही है ......ऐसे देश को जब बदलने का मौका आता है तो हम घर में बैठ कर गाना सुनते है ....ऐसे हिलोगो के गूंगे होने के कारण देश बटने का निर्णय होता रहा और हम कुछ नही बोले पर ऐसा होना नही चाहिए ..देश हर किसी का उतना है जितना आपके द्वारा चुने प्रतनिधियो का ,इस लिए अपनी आवाज़ को इतना हल्का मत समझिये , बोलिए चिलैये भले ही कमरे के अंदर , आपको लगता है कि कोई नही सुन रहा है पर सच यह भी हैकि दीवारों के भी कान होते है और एक दिन वह आवाज़ सबकी आवाज़ बन सकती है , देश कि दिशा बदल सकती है लेकिन मई फिर भी पाने भारत के लोगो से यही अपील करूँगा कि २०१४ के संसद के चुनाव में कम से कम ९० % मतों से देश को दिशा दीजिये और नेताओ पर दबाव डालिए कि वह संसद में यह निश्चित कराये कि जिसने मत का प्रयोग नही किया उसे कोई भी सुविदः मिलने का हक़ न हो और बस वह दिन ही हमारे भारत का स्वर्णिम दिन होगा ,,बात करना कहना किसे अच्छा नही लगता पर आज मै अपने ४८ लेख के साथ मतदान जागरूकता के प्रयास को कुछ समय के लिए विराम दे रहा हूँ क्यों अखिल भारतीय अधिकार संगठन अनेको ऐसे कार्यो में जुटा है जो हो सकता है कल आपके प्रयासों और सहयोग से एक नए कल कि शुरवात कर सके अपर कल से बात होंगी सिर्फ और सिर्फ मानवधिकार के कुछ नए आयामों की ......नमस्कार डॉ आलोक चान्त्टिया

Saturday, 18 February 2012

gay culture and right to life

India's Supreme Court has asked groups challenging a 2009 landmark judgement decriminalising gay sex in the country how "unnatural sex" should be defined.
The ruling overturned a 148-year-old colonial law which described a same-sex relationship as an "unnatural offence".
Under it homosexual acts were punishable by a 10-year prison term.
Many people in India still regard same-sex relationships as illegitimate, but rights groups have long argued that the law contravened human rights.
Section 377 of the colonial Indian Penal Code defined homosexual acts as "carnal intercourse against the order of nature" and made them illegal.
The 2009 Delhi High Court ruling is being challenged by political, social and religious groups who want to have colonial-era law reinstated.
On Wednesday, the court begun a debate on the legality of decriminalising gay sex in private between consenting adults.
"So who is the expert to say what is 'unnatural sex'? The meaning of the word has never been constant," Justices GS Singhvi and SJ Mukhopadhyaya asked a petitioner who challenged the judgement.
"We have travelled a distance of 60 years. Now it is test-tube babies, surrogate mothers. They are called discoveries. Is it in the order of nature? Is there carnal intercourse?" the judges said.
In July 2009 the Delhi High Court described the colonial-era law as discriminatory and said gay sex between consenting adults should not be treated as a crime.
Later the Supreme Court refused to put the judgement on hold after it was challenged by an astrologer and a yoga guru.
The ruling was widely and visibly welcomed by India's gay community, which said the judgement would help protect them from harassment and persecution. dr alok chantia

Friday, 17 February 2012

vote should be refelection of dignified life

भारत में किसी भी समस्या का सीधा हल न तो ढूंढा जाता है और न ही उसे जनता का पूर्ण समर्थन मिल पाता है , शायद यही कारण है कि भारत में ज्यादातर स्थिति वैसे ही है जैसी किसी भी समस्या के शुरू होने के पहले रही होंगी, क्या  कारण है कि मत डालने के लिए सरकार इतनी कवायद करवा रही है और ऐसा लगता मनो सर्कार खुद इस देश में जागरूकता के स्तर पर एक जन क्रांति चाहती हो पर क्या आप को ऐसा लगता है कि सरकार इस देश के लिए संवेदन शील है ??????????????/ थोडा सा समय निकालिये ना क्यों कि जब तक आप नही सोचेंगे tab तक देश को गति नही मिल सकती .....सरकार को चाहिए था कि देश में  कोई सरकारी help tab तक किसी को नही milni चाहिए जब तक usne apne मत का prayog ना kiya हो , और sirf यही एक prayog pure भारत की tasveer badal dega ....dr aalok chantia

Thursday, 16 February 2012

MAT DAN MANUSHYA DAN

आज सुबह जब मै गुवाहाटी में ठंडी हवाओ के स्पर्श के साथ एक चाय पी रहा हूँ तो सच खु एक अपराध बोध सा भी मन में है ....मै अक्सर कहता हूँ कि कोई को अपने बारे में जानना हो तो खुद को झक कर देख ले और मै आज वही कर रहा हूँ ....एक तरफ मुझे उन जनजातिय लोगो से बेपनाह मोहब्बत है जिन पर वर्षो से कम करके न जाने कितने मानवशास्त्रियो ने यह डंका पीटा है  कि उन्हें मनुष्य की समग्रता में समझ है और वह बेहतर बता सकते है कि संस्कृति का निर्माण क्यों क्या कैसे हुआ होगा ????????//पर सच कहू तो इन जनजातियो पर कम करके न जाने खुद कितनी नौकरी पा गए , अपने बच्चो को जनजातियो के बच्चो से अच्छा पढाया , अपने लिए घर गाड़ी क्या नही किया इन्ही जनजातियो के अध्ययन से पर जन जाती आज भी गरीबी  , बीमारी , बहाली से परेशान है ..इस बार मैंने सभी मानवशास्त्रियो से यही जानना चाहा कि हमने कितनी बार सरकार से लिख कर पूछा कि बिना मानव्शात्रियो से सलाह लिए आप देश में किसी कोकैसे जनजाति कह देते हो ??????????सिर्फ संविधान के अनच्छेद ३४२ से तो यह नही होना चाहिए था और फिर हम मानवशास्त्री इन्ही संवैधानिक जनजातियो का अध्ययन करके मानव्शास्त्रिये दृष्टिकोण की बात करते है  उअर बात किस से सरकार से ....जब बात अन्तःतः सरकार से ही होनी है तो फिर विषय का मतलब ...खैर मै भी ऐसे ही जनजातियो पर बात करके नजाने कितना लिख चूका हूँ और कम चूका हूँ ......धन्यकुट पर कम करके मैंने न सिर्फ नम्कामय बल्कि इ नए समूह को भी प्रकाश में लाने का काम  किया , योजना आयोग , प्रधान मंत्री , अनिसुचित जाती आयोग , पिच्छादा आयोग मैंने हर जगह गुहार लगे है इनके बेहतरी के लिए , २००४ से मामला लंबित है पर सरकार कहती है कि अभी जाँच का नंबर नही आया ....पर मेरा तो काम चल रहा है ...यही है सच्चाई एक मनुष्य की मनुष्य के लिए ...आज मनुष्य खुद एकदूसरे की खेती करके अपनी आजीविका चला रहा है .....पर इन सब से दूर मुझे एक दर्द और है मेरी जिम्मेदारी थी कि मै श्री उमेश शुक्ल के चुनाव में अपनी हिस्सेदारी निभाता पर पता नही क्यों मुझे लगा कि जब उनको नेता बनाना है तो पहले वह साडी शिक्षाए वह वो ले ले जो एक बेहतर नेता बन ने के लिए जरुरी है ....क्या उन्हों ने अपराध किया अगर यह सहस किया है कि एक बेहटर कल बनाने के लिए मै नेता बनूँगा ....शायद नही पर आप से मै आप से चुनौती के साथ कहता हूँ कि भारत में ज्यादातर लोग उन्ही लोगो को मत देंगे या देते है जो किसी पार्टी या जाती विशेष के हो और जो सचाई , ईमानदारी की बात करके आना चाहता है उस पर कोई विश्ववास ही नही करता और आप सब से कह रहा हूँ की अगर मेरी बात फर्जी लग रही हो तो सच्के नाम पर अन्ना के नाम अपने थोड़ी सी पूंजी को भी स्वाहा  करके चुनाव के समर में कूदे श्री उमेश शुक्ल को कितने लोग सहयोग करते है , पता चल जायेगा ......क्या श्री उमेश शुका ने कोई गुनाह किया है या फिर हम भारतके लोग ही खुद को इस स्थिति में नही पाते है कि किसी भले आदमी को जिताए ...क्या हम भी नेता की तरह ही बन चुके है ???क्या हमारे हाथो में भी कालिख लगी है ....क्या राम की बात बेमानी है ...क्या श्री उमेश शुक्ल जी को एक नए कल की कल्पना का कदम ही उठाना चाहिए था .....मै आपसे यही आपील करता हूँ कि मेरी इन बातो को अपने पाने वाल पोस्ट पर लगाये देश को हिलाए ...और जाग्रत करे उस मर्यादा को अस्मिता को , संस्कार को जिसके लिए हम दम भरते है और उमेश शुक्ल जी को नयी ताकत दे उनके खून में नया उत्साह भर दे ताकि हमारा कल जिन्दा रहे भर्ष्टाचार मुर्दाबाद रहे .......आज सच में मन व्यथित है पता नही क्यों और पता नही कब तक ...क्या आप मेरा दर्द समझ पाए ....डॉ आलोक चान्त्टिया

Wednesday, 15 February 2012

fitrat

कैसे कह दू मुझे सिर्फ पूरब की आरजू है ,
कल ही तो ये रात मै तेरे संग सोया था ,
मेरी फितरत ही नही सिर्फ जिंदगी की ,
कल मै किसी की लाश पर भी रोया था ,
आलोक कैसे न माने दुनिया जादू की ,
नींद उसे आई और सपने मै खोया था ,
ऐसे दोहरे पन में किसका दामन थामू
आम की तलाश में बबूल जो बोया था .............क्या जीवन यही है

Tuesday, 14 February 2012

love is blind and blind has sixth sense

जीवन के स्वर ,
जब भी आते है ,
मौत से कुछ दूर ,
हम निकल आते है ,
खिलते है , बिखरते है ,
और मुरझाते भी है ,
पर पीछे अपनी महक ,
भी छोड़ जाते है ,
मेरी ना मानो तो ,
पूछ लो आलोक से ,
झा से सपने रोज ,
हकीकत बन के आते है ,
पूरब का मन कभी ,
भी ऊबा ही नही ,
जीवन के नित नए रंग ,
दौड़े चले आते है ,
प्रेम तो बस एक ,
कतरा है बहने का ,
मेरी तो यादो में हर ,
शख्स चले आते है ,
क्या कहू किस से ,
अब आज के दिन ,
हम तो पुरे बसंत ,
मधु मास मानते है ......................भारत हमेशा से सहिष्णु देश रहा है और हमने शक, कुषाण , हूण, अंग्रेज . फ़्रांसिसी ,डच सबको जगह दी है ...इस लिया आज अगर विश्व हमारे बसंत उत्सव से प्रभावित होकर अपने प्रेम को एक दिन दिखाना चाहता है ...तो चन्दन विष व्याप्त नही लपटे रहत भुजंग के दर्शन वाले देश को आज उसके संत को भी प्रेम के नाम पर श्रधांजलि दे देनी चाहिए ....पर हम प्रेम में उस हर बात के विरोधी है जो प्रेम को शरीर से शुरू करके शरीर तक खत्म करता है .........प्रेम, मोहब्बत , प्यार , लव , लिखने में ही अधूरे है तो इनसे ना कभी पूर्णता आ सकती है और ना ही इस के पीछे भागने का कोई अंत है ...इस लिए हमरे धर्म , साहित्य सभी ने आत्मा , रूह से प्रेम को प्राथमिकता दी है ...जो हमारे प्रेम को अमर बनता है ...क्या आपका प्रेम अमर बन ने के लिए बढ़ रहा है ??????????????????? प्रेम का अधिकार सबको है पर दिल को चोट पंहुचा कर नही ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन प्रेम के नाम पर किसी की गरिमा को ठेस पहुचने वाले प्रेम का विरोध करते हुए और बसंत के मेले के एक काउंटर की तरह १४ फ़रवरी को भी अवसर देता है ताकि वोखुद महसूस कर ले कि भारत के प्रेम और उनके प्रेम की गहरे कहा तक है ....आप सभी को बसंत के बीच पड़ने वाले इस दिन पर भी कुछ पल रुक कर अपने ऊपर गर्व करना चाहिए कि प्रेम में राधा कृष्ण के आदर्श को जीने वाले देश में १४ फ़रवरी कूड़े से उर्जा पैदा करने वाले उपाए से ज्यादा कुछ नही ........माँ तुझे सलाम ........डॉ आलोक चाटीया    

Monday, 13 February 2012

indian love

क्या आप को पता है कि कलयुग के देवता आयप्पा से शबरी का प्रेम था और आज तक वह शबरी माला ( केरल) में बैठ कर उनका इंतज़ार कर रही है .......शंकर जी से कन्या कुमारी विवाह करना चाहती थी और कहते है कि जहा कन्या कुमारी मंदिर है वह आज भी वह शंकर का इंतज़ार कर रही है ....कृष्ण से राधा ने प्रेम किया और पूरी दुनिया उनके प्रेम को स्वीकार करके न जाने कितने राधा -कृष्ण के मंदिर बन चुके है ....प्रेम कभी भी इस देश में बुरा नही रहा और न ही कभी उसे बुरी नजरो से देखा गया तो फिर आज १४ फ़रवरी इतने बुरे रूप में क्यों चित्रित है ??????????????? क्या इस प्रेम और ऊपर बताये गए प्रेम में कोई अंतर है ????????????? हम बिहारी  को पढ़ कर बड़े हुए ...हमने कालिदास का मेघदूत भी पढ़ा है ...हमें जय शंकर प्रसाद कि कामायनी की विरह वेदना का भी एहसास हुआ है ......हमने मीरा को उनके प्रेम के साथ स्वीकार किया .....फिर ऐसा क्या है जो १४ फ़रवरी को दूषित कर रहा है ?????????????? वह है सेक्स ..हमारे देश में प्रेम त्याग का प्रतीक था ...प्रेम में फागुन के रंगों फुहार थी ....उन रंगों में डूबा था हसी ठिठोली और मनुहार ...नायक नायिका प्रेम की विवशता के आगे अपनी आँखों से ही सब के सामने सब कुछ कह कर अपने जीवन को संत्र्प्ताता प्रदान करते थे ..पर वह वासना का आभाव था जो आज के प्रेम की प्रमुखता है ..आज प्रेम में हीर राँझा , मिर्जा साहिबा , लैला मंजनू , की तस्वीर है ही नही ..वो सिर्फ इस लिए प्रेम नही कर रहे थे कि किसी तरह शरीर का मिलन हो जाये बल्कि यह सारे लोग तो रूह के मिलन को तरजीह दे रहे थे इसी लिए दूर रह कर भी एक दुसरे को महसूस करते रहे और आज भी हमारे बीच जिन्दा है ...जब भी प्रेम में शरीर आड़े आया तो महिला ने वह शरीर ही छोड़ दिया ..राजस्थान कि हाडा रानी सिर्फ इस लिए अपना सर कट कर अपने राजा के पास खुद भेज दिया ताकि वह वह उसके प्रेम से मोह छुड़ा कर मन से युद्ध लड़ सके ...अपर आज तो यह बताया जा रहा है कि कौन कौन उपाए करके शरीर के पास पंहुचा जा सकता है  और उसे स्पर्श किया जा सकता है जो आज के प्रेम को पशुता और वासना तक ज्यादा ले जाता है ...जिसके कारण १४ फेरवे का प्रेम दिवस कभी एक दिव्या दिवस के रूप में नही आ पाया और यही कारण है कि इस दिन को लेकर साडी हाय तौबा है ....शरीर तो कही भी कैसे भी पाया जा सकता है पर रूह पाने के लिए वही रास्ते है जो हमें ऊपर बताये गए है ...चौमीन , पिज्जा , मैगी की तरह बस कुछ मिनट में प्यार बदलने और टायर होने वाले कभी संत्रप्ता को नही प्राप्त कर सकते .....१० मंजिल से उतरने के लिए ऊपर से कूदा भी जा सकता है  पर बिना चोट के सुरक्षित उतरने के लिए सीढ़ी का ही प्रयोग सर्वश्रेष्ट है ....रास्ते लम्बे हो , समय ले पर  स्थ्यित्व दे  तभी बेहतर है ....इस लिए प्रेम के शोर्ट कट के बजाये भावना  के लम्बे रास्तो को अपनाना ही श्रेयस्कर है ..और यही १४ फ़रवरी का सर होगा अगर आप मान सके तो ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपको सिर्फ सच का आइना दिखा सकता है ....डॉ आलोक चान्टीया

Sunday, 12 February 2012

radha ka prem

आज हग या यूँ  कहे गले मिलन दिवस है ......कितना आजीब लगता है कि कल वादा दिवस था तो वादा किस बात का ...यही न कि यह दोस्ती हम नही छोड़ेंगे पर अगर यह दोस्ती है तो फिर आज मिलन दिवस किस के साथ और कैसा ...कम से कम लड़का से लड़का और लड़की से लड़की मिलने की बात तो नही ही की जा रही है वो बात दीगर है कि गे संस्कृति का भी पदार्पण हो चूका है और अभी उसके पावँ इतने नही फैले है कि हम सब मिल कर विपरीत सेक्स के बजाये सामान सेक्स पर आश्रित हो जाये ...यानि साफ़ है कि आज मिलाप दिवस एक लड़का और लड़की के बीच में ही संदर्भित है ......चलिए थोडा सहस और करके कल की बात आज ही कर लेते है क्यों कि कल किस (चुम्बन दिवस ) है  फिर वही यक्ष प्रश्न सामने है कि किस या चुम्बन का अर्थ क्या लगाया जाये जब बात प्रेम और युवा के बीच आकर ठहर गई हो तो चुम्बन भी खा और कैसे पर प्रशन करना बेकार है .....पर यह सब करके हम युवा को क्या करने के लिए उकसा रहे है ....कल मैंने अपने  लेख में खुल कर लिखा था कि किस तरह वैश्विक व्यवस्था और जनसँख्या की समस्या ने युवा को प्रेम का पाठ पढाया है और यही नही  उसको बल देने के लिए १४ फ़रवरी को प्रेम दिवस का इतना प्रचार किया कि यह दिन खुलकर  सेक्स और महिला के शोषण दिवस के रूप में सेक्स सम्बंधित सारी समस्यायों के उपाए के साथ सामने आया ,,,,बहुत से लोग यह कह सकते है कि ऐसा कह कर मैंने युवाओ कीबवाना को चोट पहुचाई है पर गर्भ पात केन्द्रों के आकडे और युवाओ में बढ़ते सेक्स पर शोध यही बताते है कि मै सिर्फ लेख लिखने के लिए यह सब नही लिख रहा बल्कि एक सच जो अभी आप भी मान जायेंगे ,,,,क्या आप बता सकते है कि कल यानि १३ को किस या चुम्बन दिवस मानाने के बाद १४ फ़रवरी को प्रेम दिवस वह क्या करके मनायेगा ...जिसको १३ को ही इस बात के लिए प्रेरित किया गया हो कि आज तो चुम्बन दिवस है उसे १४ को क्या करने के लिए उकसाया जा रहा है कहने कि जरूरत नही .......बस इतना कहूँगा कि आज एक जगह रस्ते में एक बोर्ड पर एक युवा को हस्ते हुए कंडोम पकडे दिखया गया था और वो कह रहा था कि साथ लेकर चले हो कंडोम अगर , मस्त से हो जाते है डगर .....क्या यही अंतिम सत्य का सन्देश १४ का भी है ...जिस देश में बसंत ऋतू जैसा पर्व रहा हो ....जहा काम देव , रति (सुन्दरता कि देवी ) कल्पना संस्कृति में हो wha  के युवा को इस तरह से फर्जी १४ फ़रवरी की क्या जरूरत ???????????? जिस देश में yoni की puja hoti हो जहा पर shiv ling की puja hoti हो wha १४ fervery की क्या जरूरत ..........इस देश में तो radha krishan का प्रेम है ......जिस के लिए कहा jata है  ....kahat natat rijhat khijat milat khilat lajiyat , bhare bhwan में karat है nainan हो sau बात .....जब हम ankho से सब kuchh samjhne की takat rhkte है तो चुम्बन , shareer , को बीच में la कर bhagwan के इस shareer को क्यों galat तरह से ganda kare ........aaiye हम प्रेम kre apni तरह से पाने देश के प्रेम को samjhe ...akhil bhartiye adhikar sangthan सिर्फ aapke सामने वो la रहा है जो shayad आप jan कर भी न soch pa रहे हो ......dr alok chantia

Saturday, 11 February 2012

is it love ????????????????????

आज कल युवाओ में देश प्रेम हो न हो पर अपनों से प्रेम का डंका पीटा जा रहा है .....कोई जमाना था कि लड़की घर से बहार नही निकल पाती थी और पाती का चेहरा भी घूंघट से ही दिन भर देखना पड़ता था जब तक कमरे का एकांत नही मिल जाता था ......पर आज सब कुछ मत की तरह खुले आम खरीदा जा रहा है ......कल तक एक लड़की को सबसे ज्यादा भय इस बात का रहता था कि खी किसी लड़के के साथ उसका नाम भी जुड़ गया तो उसकी खैर नही ....घर से बाहर वो लड़के के साथ घूमना तो एक स्वप्न से ज्यादा कुछ नही था ......पर महिला सशक्तिकरण जैसे एक वरदान बन कर आया ...जिसे देखिये उसे यही लगा कि अब लड़की को घर में बैठ कर रखना उचित नही और बस लड़की का घर से बाहर निकल कर पढना क्या शुरू हुआ कि कयामत हो गई और यह स्थिति तब ज्यादा बिगडती दिखाई दी जब उच्च शिक्षा के नाम पर लड़की को घर से दूर जाने कि बात आई ......१०० में ८० लडकिया सिर्फ पड़ी में ही लगी रही पर २० ऐसी भी हो गई जिन्हें लगा कि दुसरे शहर में कौन देखने आता है कि मै किसके साथ घूम रही हूँ  और यही से आधुनिक प्रेम ने अपनी जड़ो को भी फैलाया ........एक तरफ भूमंडली करण की अंधी में पूरा विश्व डूबना चाहता था तो दूसरी तरफ विश्व स्तर की न जाने कितनी कंपनिया जनसँख्या को सब से बड़ा खतरा बता कर एक से बढ़ कर एक गर्भ निरोधक बाजार में उतर कर इस बात का प्रचार करने में सक्षम रही की कि किसी भी स्थिति में बनाया गए यौन संबंधो से दवा के द्वारा ही निपटा जा सकता है ...और इसका भी परिणाम देखने  को मिला ...जनसँख्या कम हुई या नही यह आप खुद समझ सकता है ...पर भारत जैसे देश में जहा युवा की फ़ौज कड़ी है वह विदेशी कंपनियो के लिए वरदान सिद्ध हुए क्यों कि युवाओ के बीच शुचिता का जो जला तोड़ने का साहस या विकल्प  नही था  वो सामने दिखाई देने लगा .......पर भारत एक संस्कृति पूर्ण देश है ...जहा पर घर में पति पत्नी भी एक मर्यादा का पालन करते हो वह एक युवा के लिए आसन न था कि बाज़ार में जाकर खुले आम कंडोम की मांग करे .....कंपनियो का यहकाम भी आसन किया एच आई वी ने और फिर तो यौन संबंधो और कंडोम पर इतनी बाते हो गई जितना गंगा में पानी नही है ......किसको संक्रमण है किसको नही है ...इसे जानने से बेहतर था कि कंडोम का इसतेमाल किया जाये और बहार पड़ने जाने वालो के लिए अब यह एक आसन रास्ता बन गया कि पहले वो दोस्ती करे और घूमे ...इसके बाद महत्तम स्थिति में शारीरिक सम्बन्ध भी बिना कौफ के बना ले क्यों कि कंडोम और गर्भ निरोधक के कारण यह बात खुलने  का भय करीब करीब जीरो हो गया कि लड़के लड़की किसी भी तरह गलत रास्तो पर है ....लेकिन इस से बढ़ कर जनसँख्या के नाम पर ....महंगाई ....बच्चो की अच्छी परवरिश के नाम पर परिवार का आकर छोटा करने पर जोर इस आधार पर दिया गया कि गर्भ ठहरने की स्थिति में बिना किसी ऑपरेशन के ३-४-५ मिहिने तक के बच्चे का गर्भपात हो सकता है और ३-४ दिन में महिला घर जा सकती है ....इस बात ने भी विवाहित महिलाओ को कितना प्रभावित किया इसे बताने की जरुरत नही पर युवाओ को एक और सुगम रास्ता बता दिया गया कि किसी भी स्थित में डरने की जरूरत नही है ...सिर्फ ३-४ दिन में आप किसी भी अपयश से बच सकते है और यह एक ऐसा कारण बना जिसने उन्मुक्तता को ज्यादा हवा दी पर इस आग में घी का कम किया उन दवाओ ने जिन्हों ने यह प्रचार किया की किसी भी असुरक्षित यौन सम्बन्ध की स्थिति में ७२ घंटे तक कुछ गोली खा कर गर्भ से बचा जा सकता है .....इस तरह के प्रचार ने युवाओ के प्राकृतिक गुणों को उदीप्त करने में न सिर्फ मदद की बल्कि लडको को एक ऐसा मौका दिया कि भावनाओ के आकाश में लडकियो को किस तरह इस उपायों के द्वारा यौन प्रेरित किया जा सकता है ....एक बार इस दल दल में उतरने और किसी परेशानी की स्थिति में इन उपायों से बचने के बाद लड़का लड़की के लिए यौन सम्बन्ध एक संस्कार न रह कर सिर्फ एक जैविक क्रिया रह जाती है ....जैविक इक्छाओ की इस तरह पूर्ति से न सिर्फ विवाह जैसे संस्कार बाधित हुए है बल्कि लड़की लड़का भी विवाह से ज्यादा उन्मुक्त यौन संबंधो में लिप्त रहना ठीक समझते है ..क्यों कि करियर के लिए प्रयास भी चलता रहता है और प्राकृतिक अवश्यक्ताये भी पूरी होती रहती है ...सरकार ने भी जन कर इन सब को रोकने के बजाये यह कह कर यह सब जारी रखा  कि औरत को भी पूरा अधिकार है आगे बढ़ने और पढने का ....जिस का परिणाम यह हुआ कि लड़की को करियर के नाम पर प्रजनन कार्य से तो सरकार दूर ले गई और दुनिया को दिखया कि हमने जनसँख्या कम कर ली या प्रयास किया लेकिन इन सब में लड़की को कब उन्मुक्त सेक्स में धकेल दिया गया , वो खुद नही जान पाई क्यों कि सरकार ने तो यह कह दिया कि लिविंग रिलेसन मान्य है क्यों कि इसे लाकर सरकार लड़के लड़की के उन्मुक्त संबंधो को और मान्यता दे सकती थी ........पर इन सब के बाद भी इस देश में युवाओ में सेक्स की वो अंधी नही आ रही थी जिसकी आशा विश्व बाज़ार को थी ....इसी लिए आज से करीब १५ सा पहले valentine  डे को मानना शुरू किया गया ......शुरू में खा गया कि यह दिन प्रेम के नाम है और प्रेम का सिर्फ एक मतलब नही है ...अपर आज १४ फ़रवरी से पहले ७ को गुलाब दिवस , ८ को प्रस्ताव दिवस , ९ को चोकलेट दिवस , १० को उपहार दिवस , ११ को वादा दिवस , १२ को मिलाप दिवस , १३ को चुम्बन दिवस और १४ को प्रेम दिवस ..................क्या यह सब माँ बहन , चाची , नानी , दादी के साथ करने के लिए कहा जा रहा है ....नही न तो मतलब साफ़ है कि युवाओ को हर तरह से सिर्फ यह सन्देश दिया जा रहा है यह शरीर बार बार नही मिलता है ...इसका खूब उपयोग करो और जिन बातो का दर तुमेह लगता है वो हम दूर किये देते है , कंडोम , गर्भ निरोधक , गर्भपात के उपाए यानि युवा जान ही नही पाया कि वह सिर्फ बाजारी संकृति का हिस्सा बन कर बिक रहा है और सेक्स बाज़ार का उपभोक्ता  बना है जिस पर सरकार महिला सशक्ति कारण , लिविंग रेलेसन , का मुल्लाम्मा चढ़ा कर सिर्फ जनसँख्या रोकने की रोटी सेक रहे है और फिर से शोषण का शिकार बन रही है भारत की लड़की जिसे प्रेम के नाम पर हम सब लूट रहे है ...और वो यह समझ कर लूट रही है की वर्षो की गुलामी के बाद लड़की खुली हवा में सांस ले रही है ...वो जो चाहे कर सकती है पर वो अभी भी नही जान पाई कि १४ फ़रवरी का दिन सिर्फ उसे उस और ले जा रहा है जहा वो पहले से भी ज्यादा उपभोग की वास्तु बनती जा रही है .....अफ्ले वह बच्चा पैदा करने वाली मशीन कही जाती थी और जिन्दा खाने वाला गोश्त बन रही है और वह यह सोच कर लूट रही है कि चलो उसके जीवन में भी तो हसी आई पर शायद उसे किसी के इन सब से होने वाले योनि, गर्भाशय के कैंसर के बारे में नही बताया ....वरना वो १४ फ़रवरी क हर साल अपना हाथ यू ना जलाती.......१४ फ़रवरी को लडकियो के शोषण समारोह के रूप में ही ज्यादा देखा जाना चाहिए  .....डॉ . आलोक चान्टिया

valentine day a unique method of girl's exploitation

आज कल युवाओ में देश प्रेम हो न हो पर अपनों से प्रेम का डंका पीटा जा रहा है .....कोई जमाना था कि लड़की घर से बहार नही निकल पाती थी और पाती का चेहरा भी घूंघट से ही दिन भर देखना पड़ता था जब तक कमरे का एकांत नही मिल जाता था ......पर आज सब कुछ मत की तरह खुले आम खरीदा जा रहा है ......कल तक एक लड़की को सबसे ज्यादा भय इस बात का रहता था कि खी किसी लड़के के साथ उसका नाम भी जुड़ गया तो उसकी खैर नही ....घर से बाहर वो लड़के के साथ घूमना तो एक स्वप्न से ज्यादा कुछ नही था ......पर महिला सशक्तिकरण जैसे एक वरदान बन कर आया ...जिसे देखिये उसे यही लगा कि अब लड़की को घर में बैठ कर रखना उचित नही और बस लड़की का घर से बाहर निकल कर पढना क्या शुरू हुआ कि कयामत हो गई और यह स्थिति तब ज्यादा बिगडती दिखाई दी जब उच्च शिक्षा के नाम पर लड़की को घर से दूर जाने कि बात आई ......१०० में ८० लडकिया सिर्फ पड़ी में ही लगी रही पर २० ऐसी भी हो गई जिन्हें लगा कि दुसरे शहर में कौन देखने आता है कि मै किसके साथ घूम रही हूँ  और यही से आधुनिक प्रेम ने अपनी जड़ो को भी फैलाया ........एक तरफ भूमंडली करण की अंधी में पूरा विश्व डूबना चाहता था तो दूसरी तरफ विश्व स्तर की न जाने कितनी कंपनिया जनसँख्या को सब से बड़ा खतरा बता कर एक से बढ़ कर एक गर्भ निरोधक बाजार में उतर कर इस बात का प्रचार करने में सक्षम रही की कि किसी भी स्थिति में बनाया गए यौन संबंधो से दवा के द्वारा ही निपटा जा सकता है ...और इसका भी परिणाम देखने  को मिला ...जनसँख्या कम हुई या नही यह आप खुद समझ सकता है ...पर भारत जैसे देश में जहा युवा की फ़ौज कड़ी है वह विदेशी कंपनियो के लिए वरदान सिद्ध हुए क्यों कि युवाओ के बीच शुचिता का जो जला तोड़ने का साहस या विकल्प  नही था  वो सामने दिखाई देने लगा .......पर भारत एक संस्कृति पूर्ण देश है ...जहा पर घर में पति पत्नी भी एक मर्यादा का पालन करते हो वह एक युवा के लिए आसन न था कि बाज़ार में जाकर खुले आम कंडोम की मांग करे .....कंपनियो का यहकाम भी आसन किया एच आई वी ने और फिर तो यौन संबंधो और कंडोम पर इतनी बाते हो गई जितना गंगा में पानी नही है ......किसको संक्रमण है किसको नही है ...इसे जानने से बेहतर था कि कंडोम का इसतेमाल किया जाये और बहार पड़ने जाने वालो के लिए अब यह एक आसन रास्ता बन गया कि पहले वो दोस्ती करे और घूमे ...इसके बाद महत्तम स्थिति में शारीरिक सम्बन्ध भी बिना कौफ के बना ले क्यों कि कंडोम और गर्भ निरोधक के कारण यह बात खुलने  का भय करीब करीब जीरो हो गया कि लड़के लड़की किसी भी तरह गलत रास्तो पर है ....लेकिन इस से बढ़ कर जनसँख्या के नाम पर ....महंगाई ....बच्चो की अच्छी परवरिश के नाम पर परिवार का आकर छोटा करने पर जोर इस आधार पर दिया गया कि गर्भ ठहरने की स्थिति में बिना किसी ऑपरेशन के ३-४-५ मिहिने तक के बच्चे का गर्भपात हो सकता है और ३-४ दिन में महिला घर जा सकती है ....इस बात ने भी विवाहित महिलाओ को कितना प्रभावित किया इसे बताने की जरुरत नही पर युवाओ को एक और सुगम रास्ता बता दिया गया कि किसी भी स्थित में डरने की जरूरत नही है ...सिर्फ ३-४ दिन में आप किसी भी अपयश से बच सकते है और यह एक ऐसा कारण बना जिसने उन्मुक्तता को ज्यादा हवा दी पर इस आग में घी का कम किया उन दवाओ ने जिन्हों ने यह प्रचार किया की किसी भी असुरक्षित यौन सम्बन्ध की स्थिति में ७२ घंटे तक कुछ गोली खा कर गर्भ से बचा जा सकता है .....इस तरह के प्रचार ने युवाओ के प्राकृतिक गुणों को उदीप्त करने में न सिर्फ मदद की बल्कि लडको को एक ऐसा मौका दिया कि भावनाओ के आकाश में लडकियो को किस तरह इस उपायों के द्वारा यौन प्रेरित किया जा सकता है ....एक बार इस दल दल में उतरने और किसी परेशानी की स्थिति में इन उपायों से बचने के बाद लड़का लड़की के लिए यौन सम्बन्ध एक संस्कार न रह कर सिर्फ एक जैविक क्रिया रह जाती है ....जैविक इक्छाओ की इस तरह पूर्ति से न सिर्फ विवाह जैसे संस्कार बाधित हुए है बल्कि लड़की लड़का भी विवाह से ज्यादा उन्मुक्त यौन संबंधो में लिप्त रहना ठीक समझते है ..क्यों कि करियर के लिए प्रयास भी चलता रहता है और प्राकृतिक अवश्यक्ताये भी पूरी होती रहती है ...सरकार ने भी जन कर इन सब को रोकने के बजाये यह कह कर यह सब जारी रखा  कि औरत को भी पूरा अधिकार है आगे बढ़ने और पढने का ....जिस का परिणाम यह हुआ कि लड़की को करियर के नाम पर प्रजनन कार्य से तो सरकार दूर ले गई और दुनिया को दिखया कि हमने जनसँख्या कम कर ली या प्रयास किया लेकिन इन सब में लड़की को कब उन्मुक्त सेक्स में धकेल दिया गया , वो खुद नही जान पाई क्यों कि सरकार ने तो यह कह दिया कि लिविंग रिलेसन मान्य है क्यों कि इसे लाकर सरकार लड़के लड़की के उन्मुक्त संबंधो को और मान्यता दे सकती थी ........पर इन सब के बाद भी इस देश में युवाओ में सेक्स की वो अंधी नही आ रही थी जिसकी आशा विश्व बाज़ार को थी ....इसी लिए आज से करीब १५ सा पहले valentine  डे को मानना शुरू किया गया ......शुरू में खा गया कि यह दिन प्रेम के नाम है और प्रेम का सिर्फ एक मतलब नही है ...अपर आज १४ फ़रवरी से पहले ७ को गुलाब दिवस , ८ को प्रस्ताव दिवस , ९ को चोकलेट दिवस , १० को उपहार दिवस , ११ को वादा दिवस , १२ को मिलाप दिवस , १३ को चुम्बन दिवस और १४ को प्रेम दिवस ..................क्या यह सब माँ बहन , चाची , नानी , दादी के साथ करने के लिए कहा जा रहा है ....नही न तो मतलब साफ़ है कि युवाओ को हर तरह से सिर्फ यह सन्देश दिया जा रहा है यह शरीर बार बार नही मिलता है ...इसका खूब उपयोग करो और जिन बातो का दर तुमेह लगता है वो हम दूर किये देते है , कंडोम , गर्भ निरोधक , गर्भपात के उपाए यानि युवा जान ही नही पाया कि वह सिर्फ बाजारी संकृति का हिस्सा बन कर बिक रहा है और सेक्स बाज़ार का उपभोक्ता  बना है जिस पर सरकार महिला सशक्ति कारण , लिविंग रेलेसन , का मुल्लाम्मा चढ़ा कर सिर्फ जनसँख्या रोकने की रोटी सेक रहे है और फिर से शोषण का शिकार बन रही है भारत की लड़की जिसे प्रेम के नाम पर हम सब लूट रहे है ...और वो यह समझ कर लूट रही है की वर्षो की गुलामी के बाद लड़की खुली हवा में सांस ले रही है ...वो जो चाहे कर सकती है पर वो अभी भी नही जान पाई कि १४ फ़रवरी का दिन सिर्फ उसे उस और ले जा रहा है जहा वो पहले से भी ज्यादा उपभोग की वास्तु बनती जा रही है .....अफ्ले वह बच्चा पैदा करने वाली मशीन कही जाती थी और जिन्दा खाने वाला गोश्त बन रही है और वह यह सोच कर लूट रही है कि चलो उसके जीवन में भी तो हसी आई पर शायद उसे किसी के इन सब से होने वाले योनि, गर्भाशय के कैंसर के बारे में नही बताया ....वरना वो १४ फ़रवरी क हर साल अपना हाथ यू ना जलाती.......१४ फ़रवरी को लडकियो के शोषण समारोह के रूप में ही ज्यादा देखा जाना चाहिए  .....डॉ . आलोक चान्टिया

Friday, 10 February 2012

paap aut matdan

कहते है सब पानी सर से ,
ऊचा हो रहा है ,
बस करो अब अपनी हरकत,
देश का सर नीचा हो रहा है ,
नेता है हसता सुन कर ,
कल युग में ऐसी बाते ,
कहता है कंस जिन्दा ,
देवकी रोकर काटे रातें ,
इन देश के लोगो को ,
कीड़ो की तरह रहना ,
नेता हमें बनाना ,
बस मत देते रहना ,
भेंड की तरह जीवन ,
बिन दिमाग के काम करना,
जिन्दा ये हमें रखते ,
खुद को आता है मरना ,
आलोक न जाने कब ये ,
देखे,पानी गया है सर तक ,
 इनके  पाप का पिटारा ,
जनता फोड़ेगी जाने कब तक  ...........अब पानी सर से ऊपर जा चुका है और देश की जनता को यह सोचना होगा आप अपने बीच में एक रुपये चोरी वाले को पूरा जीवन चोर कहते है ...उसे पाने घर नही आने देते ....पूरा जीवन उसे चोर चोर कह कर लज्जित करते है...उसे जेल में सड़ा दिया जाता है......उसकी जमानत नही हो पाती.....पर एक नेता चोर होकर भी हमारे से सम्मान पता है ...हम ही कहते है कि उसका अपराध अभी सिद्ध कहा हुआ है.....उसकी जमानत हो जाती है ...चोरी के पैसे से ही वह मजा लेता है ...गाड़ी पर घूमता है ... बीमारी का बहाना करके वह जेल जाने से बच जाता है और सालो बाद उसे आरोपों से मुक्त भी कर दिया जाता है .........ऐसे लोगो के पीछे हम भागते है उन्हें नेता कह कर पूजते है और ऐसे चोरो और घोटालो में लिप्त लोगो को देश सौप देते है........कब तक हम ऐसे लोगो को देते rhenge .....kya हम भी पाप में shamil है ....पानी सर chad कर bol रहा है ......  akhil भारतीय अधिकार sangthan aapse jagne की aapeal karta है ...........dr आलोक chantia


Thursday, 9 February 2012

paap sar chad kar bolta hai

आज सुबह मैंने आप सब से कहा था कि मई राजनीति के दायरे में रहते हुए यह देखने की कोशिश करूंगा किया कारण है कि हमारे देश का पाप सर चढ़ कर बोलता है .........का कथन झूठा साबित हो रहा है जबकि पूरा भारत पिछ्हले ८ महीने से यही मान रहा है कि देश में भ्रष्टाचार है और उसके लिए सशक्त कानून  बनना  चाहिए और हम भारतीयों ने क्या नही किया ?????????????मतलब साफ़ था कि पा सर चढ़ कर बोला था कि हा हमने सरकार बन कर , नेता बन कर लूटा है , भर्ष्टाचार किया है ....हम सब स्वीकार करते है कि दागी मंत्री है ...फिर क्यों हम सब गुब्बारे में भरी हवा की तरह पिचक गए ??????????? क्या हमने कठपुतली बन कर आन्दोलन किया था .....क्या किसी ने हमें गुब्बारे की तरह फुलाया और उड़ने की शक्ति का एहसास कराया और फिर जब उसके मन में आया तो गुब्बारे (हमारी ) हवा निकल कर औकात बता दी ???????????क्या पाप को जन ने के बाद भी हमें उसे जीने की लत पद चुकी है ??????????क्या यह सच नही कि हम भारतीय पूरी तरह रेल गाड़ी के डिब्बे होते जा रहे है ....अगर कोई इंजन आकर हमें धकेल कर कही ले जायेगा तो चलेंगे वरना  हम मुर्दे कि तरह पड़े रहेंगे ??????? क्या हम ही जब अपने बारे में सोचते है तो खुद को भर्ष्टाचार में डूबा हुआ पाते है और हिम्मत नही कर पाते कि अगर राजनीति निर्मल हुई तो हम सब हमाम में ही नही हर दायरे में नंगे दिखाई देंगे ....................तभी तो इस देश में कभी रेल मंत्री रहे स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था कि वो भी इस घटना के जिम्मेदार है ????????पर आज तो शायद ही कोई ऐसा मंत्री हो जो भर्ष्टाचार में लिप्त न पाया जा रहा हो ....अभी कर्णाटक में ही अश्लील फिल्म देखने के मामले में मंत्रियो का नाम आया पर .......इन सब में नेताओ का बेशर्मी की तरह कहना होता है कि मामला नयायालय में है और हमें उस पर पूरा भरोसा है .............यानि पाप सर चढ़ कर बोल रहा है पर न्याय व्यवस्था का हथियार हमें मजबूर करता है कि हम इनको अपने सीने से लगाये रखे ....पर हम आप तो जनता है बहुत कुछ कर सकते थे .....है ......चुनाव में हर समाज के नासूर को हार का रास्ता दिखा कर एक बेहतर संसद और विधान सभा बना सकते है .....लेकिन हम अगर ऐसा नही कर है तो क्या हमें पाप के सर चढ़ कर बोलने से कोई मतलब नही ?????????? राम कालीन और कृष्ण कालीन लोगो की तरह हम इंतज़ार में क्यों है किसी अवतार के ????जो हमें बचाएगा और एक बेहतर समाज को बनाएगा ...........प्रजातंत्र में तो रजा कोई भी बन सकता है ....और आप हम राम कृष्ण के वशज होने बाद भी चुनाव में कंस , रावन को नही मार रहे है ...........कही हम को गलत पता हो और रावन या कंस  हमारे आदर्श बन गए हो इसी लिए पाप से स्वर हमको सुनाई ही नही दे रहे है और पाप सर चढ़ कर नंगा नाच कर रहा है ...और उस नाच से बचने का सबसे सरल उपाए आपको लगता है कि जातिवाद , धार्मिक तुष्टिकरण , के आधार  पर हम अपना मत प्रयोग करके  उन्ही जिताया जाये जो आपके भर्ष्टाचार के पैमाने पर कम हो .......यानि पाप सर चढ़ कर बोलता है पापियो के नही बल्कि हमारे सर पर और हम पाप के सहारे जीने की खुद कोशिश करने लगते है ....आज से इस कहावत को बदलिए औ लोगो को बताइए कि पाप सर चढ़ कर पापिओ के नही बल्कि उनके सर चढ़ता है जो पाप को देख कर भी कहते है कि क्या हुआ अगर उम्मेदवार गलत है ....है तो अपनी  जाति का ...........अखिल भरिये अधिकार संगठन इसी जले को तोड़ने के प्रयास में है .....मत का प्रयोग करे अभिमान करे .....डॉ आलोक चान्टिया

Wednesday, 8 February 2012

kichad me kamal aur matdan

इस देश में एक कहावत प्रसिद्ध है कीचड़ में कमल होते है ...यानि हम लोग किसी भी कम में गंदगी के अभ्यस्त है और यही कारण है कि भारतीय राजनीति में भर्ष्टाचार का मुद्दा इतना गरम होने के बाद भी अपना भरपूर प्रभाव नही छोड़ पाया ................पर सोचने वाले बात यह है कि कीचड़ कितना ????????कीचड़ तो आंख भी होता है पर एक सीमा के बाद लोग न तो उसे अच्छा मानते है और न ही उस ओर देखना पसंद करते है  और यही नही व्यक्ति खुद ज्यादा कीचड़ का इलाज करता है पर देश की राजनीति में कीचड़ क्यों नही हमें दिखाई दे रहा है ??????????क्या अभी कीचड़ इतना नही हुआ जिस पर इलाज जैसे शब्द प्रयोग किये जाये या फिर हमें कीचड़ में लोटने की आदत नही लत पड़ती जा रही है .....जिसके कारण हम आनंद का अनुभव महसूस करने लगे है वरना पुरे चुनाव में हम फिर से उन्ही पार्टियो के पीछे भाग थे है जिनके ऊपर भ्रष्टाचार का दाग लगा है और जिन्होंने भर्ष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लदी थी वो या तो सुसुप्तावस्था में चले गए है या फिर एक बलत्कार की शिकार हुई महिला की तरह भर्ष्टाचार के तांडव को हतप्रभ होकर देख रहे है और जिन्होंने इस भर्ष्टाचार के नाद  को सच समझ कर चुनाव में भाग्य अजमाने की कोशिश की है उनकी स्थिति रावन के राज्य में विभीषण से ज्यादा बेहतर नही है ....क्या आप किसी विभीषण के बारे में जानते है जिसकी सहायता आप इस चुनाव में इस लिए कर रहे हो क्यों कि विभीषण ने अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाई और राम रूपी जनता पर विश्वास करके उनके बीच आये हो .....आप सब इमानदार को चुनिए और कीचड़ में कमल कि कहावत को झूठा साबित करते हुए बता दीजिये कि कीचड़ का मतलब कीचड़ है  और उसका एक कतरा भी आंख में बर्दाश्त नही है तो पुरे समज में तो कतई नही ....आइये हम मतदान करे अखिल भारतीय अधिकार संगठन के साथ अभियान करे ......डॉ आलोक चान्टिया

Tuesday, 7 February 2012

reality in election

आज मै आपको उस लेख की याद दिलाना चाहता हूँ  जिसमे मैंने लिखा था कि देश में राजनीति ने इस तरह अपना मकड़ जाल बना लिया है कि बिना पार्टी के निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले को सिर्फ चुनाव से १० दिन पहले चुनाव चिन्ह मिलता है और पार्टी के पास वर्षो से चुनाव चिन्ह होता है ..और यही बड़ा कारण है कि निर्दलीय जीत नही पते भले ही वो कितने काबिल क्यों न हो ...आज फिर कह रहा हूँ कि मीडिया भी निर्दलियो के लिए सचेत नही है ...वह भी टॉक शो के नाम पर बिना पैसा के चुनिन्दा पार्टियो के नेताओ को बुला कर उनका प्रचार करती है ..पता नही अन्ना की लड़ाई में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाले मीडिया ने खुद निर्दलियो को कोई महत्व क्यों नही दिया ..क्यों नही उनके टॉक शो कराये ..????????????क्या यह सब भरष्टाचार नही है ??????क्या हम सब मिल कर गणतंत्र का मजाक नही उड़ा रहे ???????? क्या इस देश में पार्टी से इतर कुछ है ही नही ..इसी लिए अन्ना भी चुनाव से किनारा कर गए ????????? क्या एक व्यक्ति के साहस का यही सिला है इस देश में कि उसके लिए न समय से चुनाव चिन्ह है और न ही उसके लिया टॉक शो है ....इस से अच्छा उदहारण और क्या हो सकता है इस देश में एक ईमानदार आदमी के विनाश का जब वो देश के सुधारने के प्रयास बिलकुल अकेला पड़ जाता है ..............और उसका हश्र देख फिर कोई ईमानदार आगे नही बढ़ता और साहस बढ़ता है पार्टी का ..और फिर हम ५ साल चिल्लाते है कि पार्टी बेईमान है .जब कि गलत हम है कि निर्दलीय कि उपेक्षा करते है ..आइये सही निर्दलीय उम्मीदवार को जिताए ..अखिल भारतीय अधिकार संगठन कि आपसे इस चनाव में यही विनती है .....डॉ आलोक चान्टिया

manifesto

आज उत्तर प्रदेश के चुनाव शुरू होने के एक दिन पहले अखिल भारतीय अधिकार संगठन के केन्द्रीय कार्यालय पर एक आवश्यक बैठक आहूत की गई जिसका उद्देश्य सभी पार्टियो को संगठन के घोषणा पत्र से अवगत कराना है और सभी पार्टियो से यह अनुरोध किया गया की यदि वे वास्तव में राष्ट्र और प्रदेश के लिए जीते है और उसके ही उत्थान के लिए राजनीति और सत्ता केलिए  प्रयास कर रहे है तो निम्न विन्दुओ को अपने चुनावी घोषणा पत्र में सम्मिलित करे और भविष्य में उनका सार्थक प्रयोग करते हुए एक मजबूत प्रदेश और राष्ट्र का निर्माण करे .....संगठन के महासचिव ने निम्न घोषणा पत्र के निम्न बिन्दुओ को प्रस्तुत किया ----
१- जिस तरह नेताओ को विधायक बनने पर तमाम तरह के भत्ते मिलते है , सुविधाए मिलती है , उसी तरह मतदाता को भी उसे मत के लिए कुछ भत्ते दिए जाये जिसे वोटरशिप कहा.....क्यों की मत पाकर सुविधा  पाने वाले से ज्यादा मत देने वाले का सुविधा पाने का अधिकार होना चाहिए
२- वोटरशिप के लिए प्रयाप्त धन और संसाधन सरकार एकत्र करे ....भारत में प्रति व्यक्ति आय के आधे धन का प्रयोग वोटरशिप के लिए किया जाये ..ताकि भारत कि समस्त जनसँख्या गरीबी कि रेखा से ऊपर आ  सके .
३- महिलाओ के लिए राष्ट्रिय स्तर पर समान विधि हो ...क्यों कि लड़की कि विवाह कि आयु १८ वर्ष निर्धारित है ...और सहमती से वह १६ वर्ष से ही किसी के साथ रह सकती है ....इस २ वर्ष कि अवधि का फायेदा अपराधी , कोर्ट लेकर लड़की की गरिमा को ठेस पहुचाते है .इस लिए लड़की के लिए कानून समान हो ...उम्र के आदर पर फायेदा देना अपराधीकरण को बढ़ावा देना है
४- शिक्षा को इतनी सस्ती जरुर रखा जाये कि देश का हर संवैधानिक व्यक्ति शिक्षा पा सके ...अर्थात शिक्षा का मुल्यांकन आर्थिक आधार पर हो न कि जाति के आधार पर
५ - आरक्षण का आधार आर्थिक बनाया जाये न कि जाति ..जब कि देश का संविधान हम भारत के लोग कि बात करता है
६- जनसँख्या निति देश की जनता के लिए बने जाये न की हर धर्म जाति को ध्यान
 में रख कर
सभी लोगो ने इस घोषणा पत्र पर सहमती जताई और इसे सभी प्रमुख पार्टियो को भेजने का प्रस्ताव किया

प्रेषक
डॉ आलोक चान्टिया
अखिल भारतीय अधिकार संगठन

chief minister of U.P>???????????????

जिस देश में सुबह का भुला अगर शाम को घर वापस आ जाये तो भुला नही कहलाता ......जहा की संस्कृति में भीष्म जैसे लोग सिर्फ इस लिए कौरवो का साथ देते है क्यों की उनकी विवशता है ......जिस देश में अपने राज्य को बचने के लिए सौदा होता रहा हो ....यही नही सभी में भगवन देखने की परम्परा हो ....कुछ भी गलत करके बस माफ़ी मांगने का सुलभ रास्ता हो .....जहा पर कर्म से ज्यादा बच्चे पैदा करके अपनी आर्थिकी को सही करने के लिए जनसँख्या बढाई जाती हो और देश में अनेकता में एकता की बात कह कर  उसके रोकने का कोई सार्थक कदम न उठाया जाता हो ........वह पर यह कहना की उत्तर प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी ????????????? कहना मुश्किल है ..हा अगर हम अपनी संस्कृति को धयान में रख कर सोचे तो जब भी हम घर या कार्य स्थल पर कोई काम करते है तो या तो एक काम बार बार एक ही आदमी को दिया जाता है या फिर यह कह कर दुसरे को दे दिया जाता है कि देखे इस बार यह कैसे करते है .......तो इस देश में भी चुनाव के समय यही खेल ज्यादातर दिखाई देता है ........देश कि ज्यादातर जनता न तो विकास दर का मतलब समझती है ...न ही उसे मानव विकास इंडेक्स की कोई जानकारी है ...मुद्रा स्फीति क्या है ?????????पता नही ...उसी के देश में कितने गरीब है ?????? क्यों है ??????पता नही ..चुनाव उसके सामने एक विकल्पहीन अर्थ में सामने आता है .जिस के लिए उसका मानना है कि चाहे वो मत दे या न दे नेता तो चुन ही जायेगा ...ऐसे में भी यह बता पाना मुश्किल है कि कौन है सरताज पर जैसा मैंने कहा कि एक बार तुम एक बार तुम के खेल में यही कयास लग रहा है कि इस बार समाजवादी पार्टी का वर्चस्व होगा और मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव जी बनेंगे और उप मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव बनेंगे ...........ऐसा मै जातिवाद , छेत्रियेवाद , के बढ़ते प्रभाव और केंद्रीय पार्टियो के कार्य और कथन में आई गिरावट के आधार पर कह रहा हूँ ...केंद्रीय पार्टी देश से ज्यादा यह देखने  में लगी रहती है कि कितने राज्यों में रोटी पानी चलता रहे ...जिसके कारण न तो समग्र विकास की बात  करते है और न ही क्षेत्रीय  पार्टी से बेहतर दीखते है ....यही कारण है की शेर और खाई के चुनाव में मतदाता कम खतरनाक स्थिति को चुन कर मत करता है ....इसी लिए अब संस्कृति  के कोढ़ में लिपटी राजनीति और मानव विकास की बातो से दूर लोगो के पास कोई विकल्प  ही नही कि वो मुलायम जी को मुख्य  मंत्री बनाये ..............डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Monday, 6 February 2012

morning and life

आज ये अंतिम  मेरी कविता है ,
आज ना खुश दिखती सविता है ,
अंशुमाली निरंकुश रहता मिला ,
अंशु का दिल फिर क्योंना खिला  ,,
रजनीश को देख बंद आँखे हुई ,
आलोक से बेपरवाह दुनिया हुई ,
जी लेने की चाह बस सबमे दिखी,
चौपायो की बेहतर किस्मत लिखी  ,
जाने हम कैसे मनुष्य बन ही  गए  ,
बैठे जिस जगह वो और मैले हो गए ,
कहते है फर्जी सब करते है बात,
लाया  ना ठेका कोई अपने साथ ,
गाँधी भगत थे  आये यही बताने
दुनिया बनाओ सुंदर इसे ही जताने ,
मिली क्या उनको फासी और गोली ,
आलोक अब क्यों करते हो ठिठोली ,
आदमी अगर सच आदमी ही होता ,
जंगल जानवर धरा से यू ना खोता ,
अब तो नदी , जमीं सब रो रहे है ,
देखते नही सब अब ख़त्म हो रहे है ,
बनेगा फिर कौन राम की विरासत  ,
स्वयं हो गया आदमी एक आफत ,
पहले बताओ इनको जीवन का अर्थ ,
सामने खड़ा ही अस्तित्व का अनर्थ ,
जानते नही ये अब किधर जा रहे है ,
सुबह भी हो रही है इनके लिए तदर्थ ...................आइये हम पहले मनुष्य होने का मतलब समझे और यह जाने कि सिर्फ हमारे दुनिया में रहने का कोई फायदा  नही अगर जंगल, जानवर , नदी नाले सब ख़त्म हो गए ..अखिल भारतीय अधिकार संगठन के मनुष्यता अभियान का हिस्सा बनिए ...और आप सभी को तदर्थ ना होने वाली सुबह के लिए सुप्रभात


chidya aur aurat

एक चिडिया उडी आकाश में ,
एक चिडिया उडी प्रकाश में ,
साँझ का मतलब जानती है ,
अंधेरो को भी पहचानती है ,
नन्हे पर लेकर ही जीती है ,
अजब सा साहस वो देती है ,
वो निकलना कब छोडती है  ,
अपने रास्ते कब मोडती है ,
तुम चिडिया से कम नही ,
क्या तुम में कोई दम नही,
बदल डालो अपना आकाश ,
बनो लो अपने नए प्रकाश ,
साँझ से पहले संभल जाओ,
पूरब की लाली फिर बन जाओ,
ना करो भरोसा नेता पर इतना,
दूर रहो उनसे भ्रष्टाचार से जितना ,
चिडिया बाज़ से निकल जाती है ,
परगंगा को मैला निगल जाती है ,
रात को आओ फिर से समझ ले ,
मुट्ठी में आलोक पूरब से ले ले ...........देश की स्थिति समझिये और एक नए भारत के निर्माण में , महिलाओ से सम्मान में अखिल भारतीय अधिकार संगठन के साथ मिल कार्य कीजिये ...अपने मत का प्रयोग कीजिये ...शुभरात्रि

Sunday, 5 February 2012

suraj aur matdan

भगवान ने सूरज को पूरब में चमकाया ,
लोगो के दिलो में भी आलोक फैलाया ,
नींद खोलने की दवा की तरह दिवाकर ,
चेतना का संचार दिन कहलाता आकर ,
दीन हीन भी देश में अँधेरे से दूर होते ,
ठण्ड को दूर भगाते,सुख में भी खोते ,
पूरब आज फिर हमें गरम कर जायेगा ,
कोई गरीब रात में मरने ना पायेगा ,
प्रकाश में लोगो के चेहरे दिख जायेंगे ,
भेडियो से माँ के अंचल बच जायेंगे ,
क्यों नही आज तक सूरज भारत आया ,
लोकतंत्र का भाव सहीसबको बता पाया ,
कैसे वो रोकेगा फिर भ्रष्टो को आने से ,
देश के नेता का पद  चुनाव में पाने से,
प्रभाकर जाकर  अब लोगो को जगा दो ,
मत डालने की आग पुरे देश में लगा दो ...............आज सुबह सुबह सूरज को देख ऐसा लगा कि जब देश के लोग रोटी पानी की दौड़ में जागना ही नही चाहते तो क्यों ना उस से ही खा जाये कि अखिल भारतीय अधिकार सगठन कि प्रार्थना आप तक पहुचाई जाये ...मत का प्रयोग करे देश के लिए ....सुप्रभात

bhgwan kha gaye

भगवान भी अब कपडे पहनने लगा है ,
भगवान अब खाना भी खाने लगा है ,
भगवान भी हवा के लिए व्याकुल है ,
भगवान झुके सर देखने को आकुल है ,
भगवान भोर होने का इंतज़ार करता है ,
भगवान सोने का भी इकरार करता है ,
भगवान से अब  डर भी  लगने लगा है ,
भगवान अब जो  से मनुष्य बनने लगा है ,
भगवान को अमीर गरीब दिखने लगा है ,
भगवान अब अंधेरो से भी डरने लगा है ,
भगवान को सूखी रोटी नही सुहाती है ,
भगवान मोटर कारो में सजने लगा है ,
भगवान को भी अब सुख की चाहत है ,
एक झोपडी में कोई मन आज आहत है ,
कितना पुकारा अपने मरते बेटे के लिए ,
भगवान तो थे बैठे कही बिकने के लिए ,
भगवान मंदिर में बैठ तुम क्यों हो मौन
क्या देखते नही पुकारता है कौन कौन ,
जड़ चेतन लाचार दीन के तुम ही सहारा ,
पर आज इन सब का मन ऐसे क्यों हारा,
कही तुम भी उसी  मनुष्य के सर्व दाता हो ,
जो लूट घसोट भ्रष्टाचार के संग  आता हो ,
तब समझ गया आलोक कलयुग आ गया ,
नेता ही भगवान का अब हर पद पा गया ..................न जाने कितनी खाई हमने खीच दी है आदमी आदमी के बीच और चाह कर भी भवन इतना मौन हो गया है की देश के हर गलत आदमी नेता बन कर भगवान बन रहा है .अपर आप इसे रोक सकते है ...एक मत से नेता और भगवान में फर्क कर सकते है ...यही अखिल भारतीय अधिकार संगठन का प्रयास और पुकार है ..शुभ रात्रि

Saturday, 4 February 2012

sun le meri pukar

आज मै भी मंदिर घंटिया बजा आया हूँ ,
भगवान को सोते से अभी जगा आया हूँ ,
जब से आप भी मेरी तरह सोने लगे है ,
शहर में हर रात कितने क़त्ल होने लगे है ,
देखो मांग में सिंदूर भरे लटो से गिरती बूंदे,
लेकर स्रजन की देवी भी पूजा करने आई है ,
फिर भी कल रात एक चीख सुनने में आई है ,
शायद दहेज़ ने एक लड़की जिन्दा फिर खाई है ,
कितने मन से पुकारा था द्रौपदी को याद करके ,
फिर उससे हिस्से में  नग्नता की क्यों आई है ,
कितनी ही इंतज़ार में बैठी ऊपर के बने रिश्तो के,
क्या उनके हाथ में तुमने वो रेखा भी बनाई है ,
कुंती की तरह डर से  सड़क पर पड़े भीष्म के शव ,
क्या माँ बन ने का अधिकार वो खुद  ले पाई  है ,
भगवान अब आलोक की  विनती बस इतनी तुमसे ,
अब रात में फिर कभी न सो जाना मनुष्य की तरह ,
दिन के उजालो में तुमपर जीने वालो को बता दो ,
औरत भी साँस लेती है ठीक तुम्हारी  हमारी तरह ..................सुप्रभात ...आपको ऐसा लगता है कि मै रात दिन कविता कहानी लिखता हूँ तो ऐसा नही है ....बस कुछ देर इस बात के एहसास में कि मनुष्य होने का मतलब समझ लू आपके साथ अपनी दो लीनो के साथ आ जाता हूँ और आप में ही वो भगवान पता हूँ जिस से मै अभी विनती कर रहा था ..............आज का दिन आप सभी के लिए सुभ हो ऐसी कि कल्पना अखिल भारतीय अधिकार संगठन की है .....सुप्रभात

darkta mann

ऐसा नही है कि लोग मुस्कराना भूल गए है ,
बस जलते हुए घर को बुझाना भूल गए है ,
जिन्दगी कुछ इस तरह दौड़ती भाग रही है ,
गिरते हुए लोग को हम उठाना भूल गए है  ,
रात को भी दिन समझ काम से है झूझ रहे ,
आलोक के राग पर हम गुनगुना भूल गए है ,
चाहता है मन कही कोई हसी खरीद दे मुझे ,
आदमी के मतलब को समझाना भूल गए है ,...............शायद ऐसा ही गुजरता है हम सभी का दिन ..पता नही जीवन के पथ पर हम मनुष्य कहा आ गए , कि दो पल का चैन हम खुद खा गए ...आइये रात में सपने को बुलाये और मनुष्य बन जाये ..शुभ रात्रि अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Friday, 3 February 2012

maa aur din

अंगड़ाई  लेकर देखा जब ,
सूरज मेरे पास खड़ा था ,
पलट कर देखा शून्य मिला ,
आकाश अनंत सा पड़ा था ,
तो क्या फिर सुबह हो गई ,
खग  की यात्रा शुरू हो गई
पायल की आवाज़ अभी आई ,
रसोई से एक खुशबू सी आई ,
लोरी सी आवाज़ भी पीछे ,
सुनो जल्दी उठो कब तक ????
भगवन का नाम तो ले लो ,
सोते रहो गे अब कब तक ,
मै दौड़ा बिस्तर से सरपट ,
पर नीरवता रसोई में छाई ,
ओह यह सिर्फ स्वप्न था ,
माँ मुझे ही थी याद आई ....
सुबह सबह आंचल की ममता ,
फिर बिन कहे मैंने  थी पाई......................आज सो कर उठने का मन नही था पर मुझसे सैकड़ो किलोमीटर दूर माँ को शायद मेरे दर्द का एहसास आज भी हुआ और मै पूरी रात उन्ही के साथ न जाने क्या क्या सोचता रहा .और उसी को मैंने आपके साथ अभी उठने के तुरंत बाद बाटा है ...आप सभी को माँ मुबारक

subah ki kamna

दिन भर मुट्ठी में उजाला पकड़ता रहा ,
फिर  भी  क्यों मन अँधेरे से डरता रहा ,
पग ने भी जाने कितना पथ चल डाला ,
कहते जीवन को अब भी है , मधु शाला ,
स्रजन का असली मतलब तारे समझाए
देख निशा के संग कुछ सपने भी है आये ,
बुन कर इनको फिर नींद के रंग से भर दो ,
सांसो की वीणा से मन्त्र मुग्ध सा कर दो ,
आलोक की आहट सोच रात छोटी हो जाये ,
हर आँखों का स्वप्न पूरब का दर्शन हो जाये,................शुभरात्रि ..अखिल भारतीय अधिकार संगठन (ऐरो) 

Thursday, 2 February 2012

kya hai subah

मेरे हिस्से की पूरब में लाली आ गई ,
देखो कैसे चेहेरे पर खुशहाली आ गई,
चलो सभी कुछ कदम फिर साथ चले ,
सुबह की बयार और हरियाली आ गई ,
अंधेरो से निजात बंद आँखों ने दिया ,
आलोक की सौगात उसको आ भी गई ,
चलो कुछ देर गा ले अब  सांसो के गीत ,
उम्र से हार करहर कही तरुणाई आ गई  .................चलिए आप सभी को अखिल भारतीय अधिकार संगठन सुप्रभात कहने आ गया .............एक नया दिन नै सोच पा गया

raat

उजाला भी हो जायेगा मयस्सर ,
पहले अंधेरो से तो प्यार कर लो ,
दिन भर की अपनी हकीकत में ,
थोडा सपनो को दो चार कर लो ,
कौन सोता है सिर्फ आलोक ऐसे ,
कुछ सांसो पर तो ऐतबार कर लो ,
चलो अब दुनिया में रहकर न रहे ,
ठंडक में रजाई से  प्यार कर लो ,
कल फिर मिलेंगे ऐसा भरोसा है ,
ऊपर वाले को अब सलाम कर लो .........ऐसे ही रात का इस्तेकबाल करके खो जाइये प्यारी सी नींद में और इंतज़ार कीजिये जब पूरब से आलोक आपको फिर जगाने आएगा ..............शुभ रात्रि .अखिल भारतीय अधिकार संगठन की तरफ से मै आपको शुभ रात्रि

dard bhagwan ka

हर मंदिर पर झुके सर तेरे आगे ,
फिर भी रहे सब क्यों इतना अभागे ,
भूख प्यास की मची तबाही तो देखो ,
क्या भगवान,अभी नही तुम जागे ,
कौन से अँधेरे का इंतज़ार इनका ,
आलोक इनके हिस्से का कौन मांगे ,
पत्थर के सही पर भगवान हो तुम ,
तेरे दिल की आवाज़ हो इससे आगे

Wednesday, 1 February 2012

kismat

ढलती शाम के नशे  में ,
रात की तन्हाई का आलम था ,
फकत एक पूरब ही ऐसा था ,
जिस पे ऐतबार कर मै सोया ,
किया उसने भी न फरेब ,
एक कतरा आलोक वो ले आया ,
इस दुनिया में किसे कहे अपना ,
तुम्हे या उस आफताब को ,
जो जर्रे जर्रे को जगा आया ,............सोते हम सभी इसी ख्वाब को लेकर है कि सुबह हमारे हिस्से में भी होगी पर ऐसा जरुरी नही है ...और जब आपको ऊपर वाले ने आज की सुबह में फिर यह नियामत बख्शी है .तो आइये खुश खास हो जाये ....आदाब और अखिल अखिल भारतीय अधिकार संगठन की तरफ से सलाम आप सभी को

javan aut maut

मुझे छोड़ जिन्दगी ,
मौत की हो गई ,
बेनाम बदहवास ,
बकवास हो गई ,
इधर उधर ना जाने ,
कहा कहा भटकी ,
थक हार के फिर ,
किलकारी हो गई.................क्या यह सच नही है कि जन्दगी के साथ तो मौत  होती है जो एक तथ्य है .पर मौत के साथ या बाद भी जिन्दगी होती है ..यह एक दर्शन है पर यह दर्शन हमें सुकून देता है और हम सो जाते है एक सुनहरे कल का सपना लेकर ............शुभ रात्रि