आज लखनऊ में करीब ५९ % मतदान हुआ यानि करीब ४१ % लोग या तो घर से बाहर नही निकले या फिर यह वही लोग है जो अंग्रेजो के समय भी घर में बैठे रहे और देश करीब ३५० साल गुलाम रहा , पर इन सब के बीच यह ख़ुशी की बात कही जा सकती है कि जहा पिछली बार ३६% मत पड़े थे वही मतों का प्रतशित बढ़ा है ......क्या कारण है कि हम घर में तो बैठे रहते है पर सकारात्मक काम करने में रूचि नही लेते हा अगर घर में बैठे कोई शोर सुने दे तो हम निकल कर देखना पसंद करते है कि खा लड़ाई चल रही है , गाली गलौच चल रहा है , कौन मार पीट कर रहा है या कभी कभी अपने घर के दरवाजे या खिड़की पर खड़े होकर पूरा एपिसोड भी देखते है , क्या हम विनाश या नकारात्मक देखने के आदी हो चुके है ????????????? मत डालने के लिए सारकार द्वारा की गई कवायद से यह तो साफ़ है कि सरकार के इरादे भी मत दान करवाने के लिए नेक नही है क्योकि जितने रुपये उसने होर्डिंग , और अधिकारिओ की पत्नी को लाभ पहुचने के लिए खर्च किया उस से कही कम पैसे में सिर्फ इतना कह भर देने से कि कोई भी सरकारी लाभ पाने के लिए मत का प्रयोग करना आवश्यक है और इस के लिए मत दान करना जरुरी है और जब आप मत डाले तो एक पर्ची आपको मिलेगी जिसे आपको संभाल कर रखना होगा और जहा कही भी आप सरकारी सहायता चाहते है तो इस पर्ची को दिखाना जरुरी होगा .....इस युक्ति से करीब ९०% मत पड़ जाते ...यही नही जिनके मत कार्ड नही बने हो उन्हें भी मतदान केंद्र से यह पर्ची प्राप्त करना जरुरी हो कि उनका नाम अभी नही आया है या फिर नही बना है , ऐसे सभी १८ साल से ज्यादा उम्र के युवाओ को लापरवाही से रोका जा सकता है और अगले चुनाव में वह खुद मत डालने के लिए कार्ड बनवा लेंगे ..क्यों कि कार्ड न बन ने की छूट सिर्फ एक बार मिल सकता है ...पर पता नही क्यों सरकार ने ऐसा कुछ न करके ऐसी व्यवस्था लागु करने की कोशिश की जा रही है जिस से किसी भी स्थिति में ६० % से ज्यादा मतदाता हो ही नही सके ....सुना था कि अंधेर नगरी चौपट राजा ...टके सेर भाजी टके सेर खाजा ....पर यह तो भारत में बिलकुल सही है ..सरकार ने चुनाव को राष्ट्र सेवा , राष्ट्र भक्ति , आदी से कभी जोड़ कर प्रस्तुत ही नही किया ...यही नही पूरे देश को चुनाव के जाल में इस तरह बांध दिया गया है कि सारा देश किसी न किसी राज्य के चुनाव में ही उलझा रहता है और चुनाव के कारण नेताओ को भागना दौड़ना पड़ता है .....आज तक किसी नेता ने यह नही चाहा कि लोग यह जाने कि मत डालने से राष्ट्र निर्माण किस तरह हो सकता है क्यों कि वह जनता है कि जितनी जनता जागरूक होगी उतनी ही जवाबदेही बन जाएगी , इसी लिए नेता साक्षर बनाने में तो जूता है अपर पढ़ा लिखा देश बनाने में उसकी रूचि नही है , इसी लिए शिक्षा को इतनी महंगी करे दे रहे है कि लोगो की पहुच से ही दूर हो जाये . ऐसे ही और भी कारण है जिनके कारण देश में भारतवासी की संख्या बढ़ी है पर भारतीयों की संख्या कम हुई है , सरकार ने यह बी जन लिया है कि जनसँख्या और प्राकृतिक संसाधन से बीच का असंतुलन कभी भी देश के प्रति संवेदन शील बनने ही नही देगा और वे लोग जब जहा जैसे चाहे देश को चला सकते है ....यह भी मतदात को सोचना होगा कि अरबो का घोटाला करने वाले जमानत पर छूट जा रहे है और उसी चोरी के पैसे से केस लड़ते है ऐश करते है और वाद २० साल चलता है और अन्तःतः वे छूट जाते है साक्ष्यो के अभावो में पर छोटी चोरी करने वाला हमेशा जेल के सिखचो के पीछे ही सड़ जाता है , यही कारण है कि देश में बड़े चोर बन ने का चलन बढ़ा है और राजनीती में इसा चलन ज्यादा ही है ......ऐसे देश को जब बदलने का मौका आता है तो हम घर में बैठ कर गाना सुनते है ....ऐसे हिलोगो के गूंगे होने के कारण देश बटने का निर्णय होता रहा और हम कुछ नही बोले पर ऐसा होना नही चाहिए ..देश हर किसी का उतना है जितना आपके द्वारा चुने प्रतनिधियो का ,इस लिए अपनी आवाज़ को इतना हल्का मत समझिये , बोलिए चिलैये भले ही कमरे के अंदर , आपको लगता है कि कोई नही सुन रहा है पर सच यह भी हैकि दीवारों के भी कान होते है और एक दिन वह आवाज़ सबकी आवाज़ बन सकती है , देश कि दिशा बदल सकती है लेकिन मई फिर भी पाने भारत के लोगो से यही अपील करूँगा कि २०१४ के संसद के चुनाव में कम से कम ९० % मतों से देश को दिशा दीजिये और नेताओ पर दबाव डालिए कि वह संसद में यह निश्चित कराये कि जिसने मत का प्रयोग नही किया उसे कोई भी सुविदः मिलने का हक़ न हो और बस वह दिन ही हमारे भारत का स्वर्णिम दिन होगा ,,बात करना कहना किसे अच्छा नही लगता पर आज मै अपने ४८ लेख के साथ मतदान जागरूकता के प्रयास को कुछ समय के लिए विराम दे रहा हूँ क्यों अखिल भारतीय अधिकार संगठन अनेको ऐसे कार्यो में जुटा है जो हो सकता है कल आपके प्रयासों और सहयोग से एक नए कल कि शुरवात कर सके अपर कल से बात होंगी सिर्फ और सिर्फ मानवधिकार के कुछ नए आयामों की ......नमस्कार डॉ आलोक चान्त्टिया
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