आज सुबह जब मै गुवाहाटी में ठंडी हवाओ के स्पर्श के साथ एक चाय पी रहा हूँ तो सच खु एक अपराध बोध सा भी मन में है ....मै अक्सर कहता हूँ कि कोई को अपने बारे में जानना हो तो खुद को झक कर देख ले और मै आज वही कर रहा हूँ ....एक तरफ मुझे उन जनजातिय लोगो से बेपनाह मोहब्बत है जिन पर वर्षो से कम करके न जाने कितने मानवशास्त्रियो ने यह डंका पीटा है कि उन्हें मनुष्य की समग्रता में समझ है और वह बेहतर बता सकते है कि संस्कृति का निर्माण क्यों क्या कैसे हुआ होगा ????????//पर सच कहू तो इन जनजातियो पर कम करके न जाने खुद कितनी नौकरी पा गए , अपने बच्चो को जनजातियो के बच्चो से अच्छा पढाया , अपने लिए घर गाड़ी क्या नही किया इन्ही जनजातियो के अध्ययन से पर जन जाती आज भी गरीबी , बीमारी , बहाली से परेशान है ..इस बार मैंने सभी मानवशास्त्रियो से यही जानना चाहा कि हमने कितनी बार सरकार से लिख कर पूछा कि बिना मानव्शात्रियो से सलाह लिए आप देश में किसी कोकैसे जनजाति कह देते हो ??????????सिर्फ संविधान के अनच्छेद ३४२ से तो यह नही होना चाहिए था और फिर हम मानवशास्त्री इन्ही संवैधानिक जनजातियो का अध्ययन करके मानव्शास्त्रिये दृष्टिकोण की बात करते है उअर बात किस से सरकार से ....जब बात अन्तःतः सरकार से ही होनी है तो फिर विषय का मतलब ...खैर मै भी ऐसे ही जनजातियो पर बात करके नजाने कितना लिख चूका हूँ और कम चूका हूँ ......धन्यकुट पर कम करके मैंने न सिर्फ नम्कामय बल्कि इ नए समूह को भी प्रकाश में लाने का काम किया , योजना आयोग , प्रधान मंत्री , अनिसुचित जाती आयोग , पिच्छादा आयोग मैंने हर जगह गुहार लगे है इनके बेहतरी के लिए , २००४ से मामला लंबित है पर सरकार कहती है कि अभी जाँच का नंबर नही आया ....पर मेरा तो काम चल रहा है ...यही है सच्चाई एक मनुष्य की मनुष्य के लिए ...आज मनुष्य खुद एकदूसरे की खेती करके अपनी आजीविका चला रहा है .....पर इन सब से दूर मुझे एक दर्द और है मेरी जिम्मेदारी थी कि मै श्री उमेश शुक्ल के चुनाव में अपनी हिस्सेदारी निभाता पर पता नही क्यों मुझे लगा कि जब उनको नेता बनाना है तो पहले वह साडी शिक्षाए वह वो ले ले जो एक बेहतर नेता बन ने के लिए जरुरी है ....क्या उन्हों ने अपराध किया अगर यह सहस किया है कि एक बेहटर कल बनाने के लिए मै नेता बनूँगा ....शायद नही पर आप से मै आप से चुनौती के साथ कहता हूँ कि भारत में ज्यादातर लोग उन्ही लोगो को मत देंगे या देते है जो किसी पार्टी या जाती विशेष के हो और जो सचाई , ईमानदारी की बात करके आना चाहता है उस पर कोई विश्ववास ही नही करता और आप सब से कह रहा हूँ की अगर मेरी बात फर्जी लग रही हो तो सच्के नाम पर अन्ना के नाम अपने थोड़ी सी पूंजी को भी स्वाहा करके चुनाव के समर में कूदे श्री उमेश शुक्ल को कितने लोग सहयोग करते है , पता चल जायेगा ......क्या श्री उमेश शुका ने कोई गुनाह किया है या फिर हम भारतके लोग ही खुद को इस स्थिति में नही पाते है कि किसी भले आदमी को जिताए ...क्या हम भी नेता की तरह ही बन चुके है ???क्या हमारे हाथो में भी कालिख लगी है ....क्या राम की बात बेमानी है ...क्या श्री उमेश शुक्ल जी को एक नए कल की कल्पना का कदम ही उठाना चाहिए था .....मै आपसे यही आपील करता हूँ कि मेरी इन बातो को अपने पाने वाल पोस्ट पर लगाये देश को हिलाए ...और जाग्रत करे उस मर्यादा को अस्मिता को , संस्कार को जिसके लिए हम दम भरते है और उमेश शुक्ल जी को नयी ताकत दे उनके खून में नया उत्साह भर दे ताकि हमारा कल जिन्दा रहे भर्ष्टाचार मुर्दाबाद रहे .......आज सच में मन व्यथित है पता नही क्यों और पता नही कब तक ...क्या आप मेरा दर्द समझ पाए ....डॉ आलोक चान्त्टिया
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