जिस देश में सुबह का भुला अगर शाम को घर वापस आ जाये तो भुला नही कहलाता ......जहा की संस्कृति में भीष्म जैसे लोग सिर्फ इस लिए कौरवो का साथ देते है क्यों की उनकी विवशता है ......जिस देश में अपने राज्य को बचने के लिए सौदा होता रहा हो ....यही नही सभी में भगवन देखने की परम्परा हो ....कुछ भी गलत करके बस माफ़ी मांगने का सुलभ रास्ता हो .....जहा पर कर्म से ज्यादा बच्चे पैदा करके अपनी आर्थिकी को सही करने के लिए जनसँख्या बढाई जाती हो और देश में अनेकता में एकता की बात कह कर उसके रोकने का कोई सार्थक कदम न उठाया जाता हो ........वह पर यह कहना की उत्तर प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी ????????????? कहना मुश्किल है ..हा अगर हम अपनी संस्कृति को धयान में रख कर सोचे तो जब भी हम घर या कार्य स्थल पर कोई काम करते है तो या तो एक काम बार बार एक ही आदमी को दिया जाता है या फिर यह कह कर दुसरे को दे दिया जाता है कि देखे इस बार यह कैसे करते है .......तो इस देश में भी चुनाव के समय यही खेल ज्यादातर दिखाई देता है ........देश कि ज्यादातर जनता न तो विकास दर का मतलब समझती है ...न ही उसे मानव विकास इंडेक्स की कोई जानकारी है ...मुद्रा स्फीति क्या है ?????????पता नही ...उसी के देश में कितने गरीब है ?????? क्यों है ??????पता नही ..चुनाव उसके सामने एक विकल्पहीन अर्थ में सामने आता है .जिस के लिए उसका मानना है कि चाहे वो मत दे या न दे नेता तो चुन ही जायेगा ...ऐसे में भी यह बता पाना मुश्किल है कि कौन है सरताज पर जैसा मैंने कहा कि एक बार तुम एक बार तुम के खेल में यही कयास लग रहा है कि इस बार समाजवादी पार्टी का वर्चस्व होगा और मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव जी बनेंगे और उप मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव बनेंगे ...........ऐसा मै जातिवाद , छेत्रियेवाद , के बढ़ते प्रभाव और केंद्रीय पार्टियो के कार्य और कथन में आई गिरावट के आधार पर कह रहा हूँ ...केंद्रीय पार्टी देश से ज्यादा यह देखने में लगी रहती है कि कितने राज्यों में रोटी पानी चलता रहे ...जिसके कारण न तो समग्र विकास की बात करते है और न ही क्षेत्रीय पार्टी से बेहतर दीखते है ....यही कारण है की शेर और खाई के चुनाव में मतदाता कम खतरनाक स्थिति को चुन कर मत करता है ....इसी लिए अब संस्कृति के कोढ़ में लिपटी राजनीति और मानव विकास की बातो से दूर लोगो के पास कोई विकल्प ही नही कि वो मुलायम जी को मुख्य मंत्री बनाये ..............डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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