जीवन के स्वर ,
जब भी आते है ,
मौत से कुछ दूर ,
हम निकल आते है ,
खिलते है , बिखरते है ,
और मुरझाते भी है ,
पर पीछे अपनी महक ,
भी छोड़ जाते है ,
मेरी ना मानो तो ,
पूछ लो आलोक से ,
झा से सपने रोज ,
हकीकत बन के आते है ,
पूरब का मन कभी ,
भी ऊबा ही नही ,
जीवन के नित नए रंग ,
दौड़े चले आते है ,
प्रेम तो बस एक ,
कतरा है बहने का ,
मेरी तो यादो में हर ,
शख्स चले आते है ,
क्या कहू किस से ,
अब आज के दिन ,
हम तो पुरे बसंत ,
मधु मास मानते है ......................भारत हमेशा से सहिष्णु देश रहा है और हमने शक, कुषाण , हूण, अंग्रेज . फ़्रांसिसी ,डच सबको जगह दी है ...इस लिया आज अगर विश्व हमारे बसंत उत्सव से प्रभावित होकर अपने प्रेम को एक दिन दिखाना चाहता है ...तो चन्दन विष व्याप्त नही लपटे रहत भुजंग के दर्शन वाले देश को आज उसके संत को भी प्रेम के नाम पर श्रधांजलि दे देनी चाहिए ....पर हम प्रेम में उस हर बात के विरोधी है जो प्रेम को शरीर से शुरू करके शरीर तक खत्म करता है .........प्रेम, मोहब्बत , प्यार , लव , लिखने में ही अधूरे है तो इनसे ना कभी पूर्णता आ सकती है और ना ही इस के पीछे भागने का कोई अंत है ...इस लिए हमरे धर्म , साहित्य सभी ने आत्मा , रूह से प्रेम को प्राथमिकता दी है ...जो हमारे प्रेम को अमर बनता है ...क्या आपका प्रेम अमर बन ने के लिए बढ़ रहा है ??????????????????? प्रेम का अधिकार सबको है पर दिल को चोट पंहुचा कर नही ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन प्रेम के नाम पर किसी की गरिमा को ठेस पहुचने वाले प्रेम का विरोध करते हुए और बसंत के मेले के एक काउंटर की तरह १४ फ़रवरी को भी अवसर देता है ताकि वोखुद महसूस कर ले कि भारत के प्रेम और उनके प्रेम की गहरे कहा तक है ....आप सभी को बसंत के बीच पड़ने वाले इस दिन पर भी कुछ पल रुक कर अपने ऊपर गर्व करना चाहिए कि प्रेम में राधा कृष्ण के आदर्श को जीने वाले देश में १४ फ़रवरी कूड़े से उर्जा पैदा करने वाले उपाए से ज्यादा कुछ नही ........माँ तुझे सलाम ........डॉ आलोक चाटीया
जब भी आते है ,
मौत से कुछ दूर ,
हम निकल आते है ,
खिलते है , बिखरते है ,
और मुरझाते भी है ,
पर पीछे अपनी महक ,
भी छोड़ जाते है ,
मेरी ना मानो तो ,
पूछ लो आलोक से ,
झा से सपने रोज ,
हकीकत बन के आते है ,
पूरब का मन कभी ,
भी ऊबा ही नही ,
जीवन के नित नए रंग ,
दौड़े चले आते है ,
प्रेम तो बस एक ,
कतरा है बहने का ,
मेरी तो यादो में हर ,
शख्स चले आते है ,
क्या कहू किस से ,
अब आज के दिन ,
हम तो पुरे बसंत ,
मधु मास मानते है ......................भारत हमेशा से सहिष्णु देश रहा है और हमने शक, कुषाण , हूण, अंग्रेज . फ़्रांसिसी ,डच सबको जगह दी है ...इस लिया आज अगर विश्व हमारे बसंत उत्सव से प्रभावित होकर अपने प्रेम को एक दिन दिखाना चाहता है ...तो चन्दन विष व्याप्त नही लपटे रहत भुजंग के दर्शन वाले देश को आज उसके संत को भी प्रेम के नाम पर श्रधांजलि दे देनी चाहिए ....पर हम प्रेम में उस हर बात के विरोधी है जो प्रेम को शरीर से शुरू करके शरीर तक खत्म करता है .........प्रेम, मोहब्बत , प्यार , लव , लिखने में ही अधूरे है तो इनसे ना कभी पूर्णता आ सकती है और ना ही इस के पीछे भागने का कोई अंत है ...इस लिए हमरे धर्म , साहित्य सभी ने आत्मा , रूह से प्रेम को प्राथमिकता दी है ...जो हमारे प्रेम को अमर बनता है ...क्या आपका प्रेम अमर बन ने के लिए बढ़ रहा है ??????????????????? प्रेम का अधिकार सबको है पर दिल को चोट पंहुचा कर नही ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन प्रेम के नाम पर किसी की गरिमा को ठेस पहुचने वाले प्रेम का विरोध करते हुए और बसंत के मेले के एक काउंटर की तरह १४ फ़रवरी को भी अवसर देता है ताकि वोखुद महसूस कर ले कि भारत के प्रेम और उनके प्रेम की गहरे कहा तक है ....आप सभी को बसंत के बीच पड़ने वाले इस दिन पर भी कुछ पल रुक कर अपने ऊपर गर्व करना चाहिए कि प्रेम में राधा कृष्ण के आदर्श को जीने वाले देश में १४ फ़रवरी कूड़े से उर्जा पैदा करने वाले उपाए से ज्यादा कुछ नही ........माँ तुझे सलाम ........डॉ आलोक चाटीया
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