इस देश में एक कहावत प्रसिद्ध है कीचड़ में कमल होते है ...यानि हम लोग किसी भी कम में गंदगी के अभ्यस्त है और यही कारण है कि भारतीय राजनीति में भर्ष्टाचार का मुद्दा इतना गरम होने के बाद भी अपना भरपूर प्रभाव नही छोड़ पाया ................पर सोचने वाले बात यह है कि कीचड़ कितना ????????कीचड़ तो आंख भी होता है पर एक सीमा के बाद लोग न तो उसे अच्छा मानते है और न ही उस ओर देखना पसंद करते है और यही नही व्यक्ति खुद ज्यादा कीचड़ का इलाज करता है पर देश की राजनीति में कीचड़ क्यों नही हमें दिखाई दे रहा है ??????????क्या अभी कीचड़ इतना नही हुआ जिस पर इलाज जैसे शब्द प्रयोग किये जाये या फिर हमें कीचड़ में लोटने की आदत नही लत पड़ती जा रही है .....जिसके कारण हम आनंद का अनुभव महसूस करने लगे है वरना पुरे चुनाव में हम फिर से उन्ही पार्टियो के पीछे भाग थे है जिनके ऊपर भ्रष्टाचार का दाग लगा है और जिन्होंने भर्ष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लदी थी वो या तो सुसुप्तावस्था में चले गए है या फिर एक बलत्कार की शिकार हुई महिला की तरह भर्ष्टाचार के तांडव को हतप्रभ होकर देख रहे है और जिन्होंने इस भर्ष्टाचार के नाद को सच समझ कर चुनाव में भाग्य अजमाने की कोशिश की है उनकी स्थिति रावन के राज्य में विभीषण से ज्यादा बेहतर नही है ....क्या आप किसी विभीषण के बारे में जानते है जिसकी सहायता आप इस चुनाव में इस लिए कर रहे हो क्यों कि विभीषण ने अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाई और राम रूपी जनता पर विश्वास करके उनके बीच आये हो .....आप सब इमानदार को चुनिए और कीचड़ में कमल कि कहावत को झूठा साबित करते हुए बता दीजिये कि कीचड़ का मतलब कीचड़ है और उसका एक कतरा भी आंख में बर्दाश्त नही है तो पुरे समज में तो कतई नही ....आइये हम मतदान करे अखिल भारतीय अधिकार संगठन के साथ अभियान करे ......डॉ आलोक चान्टिया
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