Wednesday, 30 July 2014

खुद में मैं रहता हूँ

तन्हाई जब ,
दर्द से मिलती है ,
ये मत पूछो रात भर ,
क्या बात चलती है ,
दीवारों के पीछे कुछ ,
नंगे होते बेशर्म सच ,
साकी सी आँखे ,
बार बार मचलती है ,
शब्दों की खुद की ,
न सुनने की आदत ,
दिल की आवाज बस ,
हर रात ही सुनती है ,
तारों के साथ गुजरी ,
लम्हों में सांसो के बाद ,
सुबह की आहट आलोक ,
क्यों मुझको खलती है ,
अकेले में अकेले का ,
एहसास जब मिलता है ,
जिंदगी क्या बताऊँ ,
तू कैसे संग चलती है

Sunday, 27 July 2014

क्या आप मुष्य है

मौत मेरी हो रही है ,
रोये तुम जा रहे हो ,
दुनिया से जो जा रहा हूँ ,
पहुँचाने तुम आ रहे हो ,
दर्द की इन्तहा पा चुप ,
तुम बिलखते जा रहे हो ,
काश यही हमदर्दी दिखाते ,
तो हम दुनिया से क्यों जाते ,
जिन्दा के लिए वक्त नहीं ,
मरने पर कहा से पाते ,
सच किसे समझूँ आलोक ,
जब जिन्दा था या अब ,
मौत पर हुजूम साथ में है ,
पर अकेला जिन्दा था तब ...............
जानवरों की तरह जीने वालो से निवेदन है कि जब जिन्दा मनुष्य तुमसे सहायता की दरकार करें तो मौश्य की तरह व्यवहार कीजिये ना की जंगल के उन जानवरों के समूहों की तरह जो अपने साथी को शेर द्वारा मारे जाने को देखते रहते है और घास चरते रहते है .क्या कहने के लिए मनुष्य कहते है अपने को ..................क्षमा अगर किसी को बुरा लगे 

Friday, 25 July 2014

क्या यही औरत की पूजा है

१-अनुसूया अगर खाना खिलायेगी तो तभी जब वो खाना नग्न होकर बनाएगी |
२- अगर द्रौपदी कौरवों के ऊपर हस दी तो उसको हस्तिनापुर के राज दरबार में अगर कोई सजा दी जानी  थी तो वो थी उसको भरे दरबार में नग्न करना
३- गार्गी जैसी महिला अगर अपने को विदुषी साबित करना चाहती है तो पुरुष  शासित दरबार में उसको शास्त्रार्थ के नग्न  आने की शर्त
इस देश में देवता वही निवास करते है जहाँ स्त्री की पूजा होती है |\स्त्री की पूजा का मतलब क्या आपको पता है ???

Thursday, 24 July 2014

मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है जल्दी कीजिये

ख़बरदार जो मुझे जानवर कहा ..........
तुम मुझे जानवर कह कर व्यंग्य कर रहे हो !! मैं मनुष्य हूँ मनुष्य और मनुष्य का जीवन बड़े पुण्य कर्म करके मिलता है ८४ हज़ार योनियों से गुजरने के बाद तब कही जाकर मानव जीवन मिलता है | भगवन तक तरसते है मानव के रूप में धरती पर आने के लिए | और तुमने मुझको जानवर कहा| माफ़ कीजियेगा मुझसे शायद गलती हो गयी क्योकि मुझे तो आज तक पता था कि मानव को खत्म की राक्षसी आदतो को समाप्त करने के लिए भगवन ने ना जाने कितने जानवरो के अवतार लिए पर आप भी सही कह रहे है भला आप जानवर कैसे हो सकते है | किसी जानवर के समाज में क्या मजाल जो बिना मादा की मर्जी के कोई नर उसको छू भर ले | कितना सम्मान से जीती है गली की कुतिया भी जो रात दिन कही भी कभी भी आ सकती है लेट सकती पर कोई कुत्ता बिना उसकी मर्जी के उसके साथ कुछ नहीं कर सकता खैर आप मनुष्य है और कुतिया शब्द को लेकर आप मुझे बिना जानवर बनाये तो मानेंगे नहीं तो चलिए शेरनी , नागिन किसी का उदहारण ले लीजिये , सब कितनी सुरक्षित है उनकी अस्मिता के साथ शेर , नाग इतनी आसानी से खिलवाड़ नहीं कर सकते ? पर आप तो मानव है जिसने औरत को जब चाहा चाहा अनावृत किया , तेजाब फेका , ब्लैक मेल किया , और तो और शादी का तमगा लगाने के बाद तो पत्नी की इच्छा का कोई मतलब ही नहीं , बस आपकी हर भूख मिटने  के लिए ही तो मानव बने है आप और ऐसे योग तो लाखो साल में कभी कभी आते है और जब आप मानव बने है तो चूकिए नहीं आप जितने अतयाचार अनाचार , हिंसा औरत  के साथ कर सकिये कर डालिये  क्योकि आपके मानव के इसी उच्च कोटि के काम से ही तो ८४ हज़ार योनियों का अस्तित्व बना रहेगा | अब भला आप जानवर कैसे हो सकते है ? औरत को कोठे पर बैठा कर पैसा कमाना, दहेज़ के लिए जला देना , बेच देना , सोशल मीडिया में उसकी फोटो डाल का बदनाम करना भला जानवर क्या करेगा | ये तो दुनिया की सबसे सुन्दरतम कृति और करोडो पुण्य के बाद मिले मानव जीवन से ही उम्मीद की जा सकती है | सच में आप मनुष्य ही है ( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

Wednesday, 23 July 2014

ना ................री

ना .....................री
बचपन से नाग पंचमी के दिन यही देखा कि लड़कियां घर की बुरी आत्माओ को प्रतीक बना कर बहियों के साथ चौराहे तक जाती है और लड़कियां वह उसे डाल देती है जिसे लड़के अपने साथ लए डंडे से पीटते है यानि  घर की बुरी आत्मा सिर्फ लड़की पर सवार होकर ही बाहर जा सकती है अब अगर घर में आई किसी भी समस्या के लिए पुरुष औरतो पर अपना गुस्सा निकालते है या पीट देते है तो ठीक ही तो है आखिर जो सीखा है वही तो करेंगे | खैर आपको मेरी बात ना मानने की आदत है तो चलिए कुछ और सुन लीजिये वर्ष १६०० तक दुनिया में कोई नहीं जनता था की शुक्राणु का मतलब क्या होता है और १६०० में इंग्लॅण्ड के हैम नामक व्यक्ति ने इसकी खोज की पर इस से पहले यूरोपीय देशो में डायन प्रथा जोर पकड़ चुकी थी क्योकि माना जाता था कि जो लड़की अपने शरीर से विपरीत शरीर वाले ( लड़के ) को जन्म दे सकती है उसमे जरूर कोई अद्भुत शक्ति होती है और इसी लिए जब भी कुछ उच्च नीच होती थी तो लड़की को डायन कह कर उसका शोषण होता था | आज भी पूरे विश्व में २५०० महिलाये डायन कह कर मार दी जाती है इस देश में ४२६ मारी जाती है | अब अगर आज लड़कियों कि दुर्दशा हो रही है तो इस में बुराई क्या है ? शरीर उनका , गर्भ उनका और पैदा किया लड़की के बजाये लड़के को | जान जब किसी ने भी अपने घर(गर्भ) में किसी को पैठ दी है तो बेडा गर्क हुआ है क्या आपको अपने देश का हाल नहीं पता , जिसको देखो अतिथि कह कर पहले पनाह दी फिर उसी की गुलामी की | अब जब खुद गर्भ से लड़का पैदा करने का शौक पाला है तो भुगतिये वैसे भी लड़की को लड़की पैदा करना कभी गौरव का विषय लगा ही नहीं और सुना है खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है यानि दोनों एक जैसे रंग में होते है जब दोनों खरबूजे ( जब लड़की के गर्भ में लड़का हो ) है ही नहीं तो रंग क्या एक जैसा होगा तो लीजिये बदरंग होने का मजा |पूरे पृथ्वी पर पाये जाने वाले हर जीव जंतु में मादा के लिए नर आपस में लड़ाई लड़ते है और मादा को कोई हानि नहीं होती है जो नर जीता मादा उसकी पर हम तो मनुष्य है ना कुछ तो अलग होना चाहिए यहाँ पर पुरुषो को कुछ नहीं होता मारी जाती है सिर्फ और सिर्फ नारी आखिर संस्कृति का ये मजा तो हम सबको मिलना ही चाहिए ! लीजिये प्रोफ़ेसर साहब ने अपनी पत्नी को अपनी माशुका के सामने मार मार कर घर से निकाल दिया पर इसमें परेशान होने वाली क्या बात है आखिर मर्द है इधर उधर मुहं नहीं मारेंगे तो किस बात के मर्द | और इतिहास में तो पत्नियों से ज्यादा प्रेमिकाओं का ही बोलबाला रहा है तो भला कोई क्यों पीछे रहे !पत्नी मार खाए तो खाए काम से काम प्रेमिका बन कर टी वी अखबार में तो छा गयी | वैसे देश पद , पैसा के लिए कब नहीं औरत को बंधुआ मजदुर बनाया गया लेकिन औरत अपने पैरो पर खड़ी तो हो गयी वो तो भला हो चाणक्य का जिन्होंने विष कन्या का चलन चला कर दुनिया को ये तो बता दिया कि औरत कितनी जहरीली हो सकती है अब भला पुरुष ऐसी महिला का मर्दन क्यों ना करें और लीजिये आपके समर्थन में भतृहरि भी आ गए , वो भी औअर्ट के मर्दन के लिए वकालत कर रहे है | क्या इतने उदाहरण काफी नहीं है तो लीजिये कबीर को सुन लीजिये जिस नारी की छाया पड़ने से नाग अँधा हो जाता है , कबीर कहते है उन पुरुषो की क्या कहे जो हमेशा नारी के साथ रहते है अब ऐसे अंधे पुरष क्या जाने कि कि औरत के साथ वो क्या कर रहे है | खैर आप जैसे आधुनिक लोग ऐसी बात सुन कर क्यों गभीर होंगे मत होइए लेकिन सांप आपके सामने निकला नहीं कि सब लाठी लेकर दौड़ पड़े | रात में एक औरत  भी सड़क पर निकल पड़ी क्या हुआ सुबह मारी पायी गयी क्या अब भी बताना शेष है कि बिल से निकली नारी को समाज क्या समझ रहा है | मैंने सोचा किसी नारी से ही पूछते है तो बोली ना ........री  जिसका आरम्भ ही नकारात्मक  है उसके जीवन में सकारत्मक सोचना !!!!!!!!! लेकिन आपने तो औरत कि तारीफ करके ही ??????( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

Tuesday, 22 July 2014

देश प्रगति कर रहा है

देश लगातार विकास कर रहा है .....
जनजाति ......क्या इस शब्द से आप परिचित है ? नहीं तो चलिए मैं आपको बता देता हूँ जनजाति भारत के संविधान के अनुच्छेद ३४२ के अनुसार राष्ट्रपति जी द्वारा घोषित की जाती हैं पर एक विषय है मानव शास्त्र और उसके अनुसार जनजाति एक ऐसा समूह है जिसकी विशेष  वेशभूषा , बोली , व्यव्हार की एक विशेष रीति का पालन करने वाले लोग जो सामन्यतया सभयता या शहरी सस्कृति से दूर रहते है ये प्रकृति के ज्यादा करीब होते है यानि आपकी तरह तो बिलकुल नहीं होते !!!!!!!!!!!!!!!!!! आप सोच रहे होंगे कि मैं यह सब आपको क्यों बता रहा हूँ ? वो इस लिए क्योकि १९५० में जनजातियों की संख्या २१२ थी आउट वर्ष २०११ की सेन्सस के अनुसार इन समूहों कि संख्या बढ़ कर करीब ७०० हो गयी है | १९५० में इनकी कुल जनसँख्या थी करीब तीन करोड़ जो आज बढ़ कर १० करोड़ के आस पास  हो गयी है | उत्तर प्रदेश जहाँ १९५० में एक भी जनजाति नहीं थी वही १९६७ में ५ जनजातीय समूह पैदा हो गए और वर्ष २००२ के बाद बढ़ कर १५ हो गए | अब आपको ये बताने कि क्या जरूरत है कि देश में विकास का मतलब क्या है ? वैसे सरकार ने ये अच्छा तरीका निकला है भूखे प्यासे , और आधुनिकता  से दूर , फटेहाल लोगो को जनजाति कहकर देश में गरीबी हटाने का और बदले में मिलता क्या है संस्कृति पूर्ण विविधता से पूर्ण एक देश | अब तो मान लीजिये कि संस्कृति का जादू और समझ लीजिये कि कैसे हम दुनिया में उन्नति कर रहे है क्या सरकार आपको भी जनजाति घोषित करने जा रही है ? चलो कुछ प्रतिशत और उन्नति का ग्राफ बढ़ गया | जिन लोगो के पास कपडा न हो तो बल्ले बल्ले कह दीजिये ये आदमी जनजाति है और जो कंदमूल जड़ खा कर जिंदगी जी रहे हो कह दीजिये कि ये सांस्कृतिक उद्विकास के अवशेष है सरकार ने इनको विशेष दर्ज दिया है | दवा बनाने वाली विदेशी कंपनी के लिए ऐसी जनजातियों को खोजिए जिनमे चचेरे मौसेरे भाई बहन शादी करते हो आखिर अनुवांशिक रोगो की दवा बनाने के लिए कंपनी प्रयोग किन पर करेंगी ? क्या आप अभी भी यही मानते है कि देश प्रगति नहीं कर रहा है ? आखिर हम जनजाति को १९५० में २१२ समूहों से आज ७०० तक ले आये क्या ये प्रगति नहीं है क्या हमको ऐसी प्रगति पर नाज़ नहीं होना चाहिए ? आखिर इसी प्रगति के लिए ही तो हम सरकार बनाते है ? क्या आप ऐसी प्रगति के लिए संघर्ष कर रहे है ? तो आप धन्य है क्योकि आप देश के लिए ही तो सोच रहे है ? ( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

Monday, 21 July 2014

बलात्कार का दर्शन

यथा राजा तथा प्रजा ..............
बचपन से यही पढ़ते आये कि जैसा राजा वैसी प्रजा , जैसी भूमि वैसा बीज तो क्या जनता बलात्कार इस लिए कर रही है क्योकि राजा ही ???? खैर मेरी क्या औकात जो प्रजा तंत्र में सच कह सकूँ आखिर मुझे जिन्दा रहना है कि नहीं और राजा भी तो अब प्रजातंत्र का ही है | मेरी मानिये तो पूछ कर देखिये राजा से वो कहेंगे कि राजा मुझको बनाया किसने ? जनता ने और जनता ने उसको ही तो राजा बनाया होगा जिसको अपने अनुरूप पाया होगा तो फिर भला इसमें राजा का क्या दोष और वो किसी लड़की के बलात्कार पर क्यों पागल हो ? वैसे तो चाणक्य ने भी कहा है कि राजा को प्रजा की ख़ुशी में ही खुश होना चाहिए और प्रजा के दुःख में दुखी और अब अगर प्रजा लड़की के साथ बलात्कार करके ही खुश है तो भला रजज की कैसे इस कृत्य पर दुखी हो सकता है ? लेकिन आप बार बार राजा को ही क्यों दोष दिलाना चाहते है आखिर आपने भी तो मादा भ्रूण हत्या करके लड़कियों की संख्या घटाई है ! १००० पुरुषो पर ९१४ स्त्रियां यानि ८६ पुरुष स्त्री विहीन यानि ८६ स्त्रियां असुरक्षित लेकिन यह तो सिर्फ एक हज़ार पर है ना  ! एक लाख पर ८६०० और एक करोड़ पर ८६००००( आठ लाख साथ हज़ार स्त्रियां ) और १०० करोड़ पर ८६००००००( ८ करोड़ साथ लाख स्त्रियां ) | क्या अब भी आप कहते है की आप भी दोषी नहीं है रोज करीब नव करोड़ स्त्रियों का जीवन , इज्जत खतरे में रहती है क्योकि मादा भ्रूण हत्या करके हमने ऐसी स्थितियां पैदा कर दी है | लीजिये अब इन साहब को कौन समझाए चिल्ला रहे है कि क्या वही लोग स्त्री का बलात्कार कर रहे है जिनको स्त्री नहीं मिली ? जी जी नहीं मैंने ऐसा कब कहा यह देश तो अनुबह्व को प्राथमिकता देता है तो इस काम में भी अनुभवी लोग न हो ऐसा कैसे हो सकता है ? वैसे नागा जनजाति में एक प्रथा है जिसमे पुरुष महिलाओ के जननांग को तलाल लगा कर रखते है | समाओ जनजाति और नायर लोगो में लड़की कि प्रजनन क्षमता ग्रहण करने पर एक जलूस निकला जाता था कि उपयुक्त पुरुष उसके साथ रह सके पर कितना सुखद है कि अब इन सब का कोई चक्कर ही नहीं जहा भी सन्नाटा देखिये बस देख लीजिये कि बेचारी की क्षमता कितनी है ?वैसे आप ने कभी किसी लड़की की चीख सुनी तो क्या दौड़े या फिर सब कुछ राजा पर ही छोड़ दिया आखिर नियम से चलना आपके खून में है और ये काम तो राजा का है देश में लड़की बचाये आप तो सिर्फ दहेज़ से बचने के लिए लड़की की गर्भ में हत्या कीजिये वैसे आप कानून कभी अपने हाथ में लेते नहीं है वो तो आप इस लिए मादा हत्या करते है आखिर देश की तरक्की के लिए जनसँख्या रोकना जरुरी है कि नहीं , काम से काम इसी बहाने देश सेवा कर लेते है और अगर नहीं कर पाये और लड़की जिन्दा बच कर बड़ी हो गयी तो बलात्कार करके हत्या कर देते है आखिर इन सब में फायदा किस को  हुआ ? देश को ना काम से काम एक प्रजन क्षमता वाली स्त्री खत्म आपने की कि नहीं ? तो ऐसे महापुरुष के लिए राजा क्यों बोले आखिर कोई तो त्यागी है जो चुप चाप नीव के पत्थर की तरह देश की सेवा कर रहा है ? अरे आप रात में कहा चल दिए क्या आज रात आप भी देश की सेवा करने वाले है आखिर राजा का ख्याल जो रखना है प्रजा को >>>( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

Thursday, 17 July 2014

चूहा और आदमी


चूहे की भूल ..........
ग़ुरबत में कोई मुरव्वत नहीं होती है  ,
रोटी की तलाश हर किसी को होती है ,
मैं भी एक रोटी तलाशता  हूँ हर दिन ,
बनाता भी दो अपने लिए  रोज रात ,
पर कमरे का चूहा पूछता है एक बात ,
क्या आज भी मेरा हिस्सा नहीं है ,
मैंने भी तो तुम पर भरोसा किया ,
रात दिन तुम्हारे  इर्द गिर्द जिया ,
कितना खाऊंगा एक टुकड़ा ही तो ,
उसके लिए भी तुमने मुझे जहर दिया ,
आदमी तुम कितने गरीब हो ,
रिश्तो के तो पूरे रकीब हो ,
जब मुझे एक टुकड़ा नहीं खिला सके ,
अपने कमरे में मुझे बसा ना सके ,
तो भला उन मानुस का क्या होगा ,
जो तेरी जिंदगी में यही  कही होगा ,
कितना हिसाब लगाते होगे रोटी का ,
जहर क्या मोल है उसकी भी रोटी का ,
मैं जानता नहीं गर्रीबी क्या होती है ,
चूहा हूँ बताओ आदमियत क्या होती है ..........
,


Wednesday, 16 July 2014

किसको कहते तुम इश्क़ हो

विरह वेदना  का प्रलाप ,
आज मैं सुनकर आया हूँ ,
सर पटक पटक का रो रहा ,
मुट्ठी में राख ही पाया हूँ ,
भ्रम इश्क़ का क्यों उसे था ,
तन की चाहत जब रही उम्र भर ,
अश्को का सैलाब फिर क्यों है ,
जब जिया न उसको कभी जी भर .........
शुभ रात्रि
 ,

Tuesday, 15 July 2014

तुमने तो इतने पत्थर भी नही मारे

तुमने इतने पत्थर भी नहीं मारे ,
जितने जख्म हुए है मुझको ,
मेरे वजूद का लगता है कोई ,
और भी है आलोक कातिल ,
मैंने कोई नहीं की जद्दो जहद ,
जितना मैं हमेशा अकेला रहा ,
कौन साथ चल रहा है ,
उसकी आहट भी है बातिल ...शुभ रात्रि

Saturday, 12 July 2014

क्या गुरु ढूंढ रहे है

गुरु .........क्यों
देवासुर संग्राम चल रहा था और देवताओ ने असुरों को मात दे दी थी पर कुछ असुर जब  युद्ध स्थान से भागे तो इन्द्र सहित कुछ देवताओं ने उनका पीछा किया और असुर भागते हुए भार्गव के आश्रम में पहुंच गए उस समय भार्गव पत्नी अकेली थी और असुरों ने दौड़ कर उनके पैर पकड़ कर त्राहिमाम त्राहिमाम कह कर प्राणो की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे | शरणागत की रक्षा के भाव से भार्गव पीटीआई ने उनको अभय दान दे दिया पर जब देवता वह पहुंचे तो वो असुरो को आश्रम  से बाहर निकालने की मांग करने लगे और दलील देने लगे कि भार्गव देवताओ के गुरु है तो उनकी पत्नी कैसे असुरों की सहायता कर सकती है पर भार्गव पत्नी असुरों  को देने को तैयार नही थी |भार्गव पुत्र उसी समय अपनी शिक्षा पूरी करके घर वापस आ रहे थे और यह विचार कर रहे थे क़ि अब वो भी पिता की तरह देवताओ के गुरु के रूप में प्रतिष्ठित होंगे पर यही सब सोचते हुए जब वो आश्रम के नजदीक पहुंचे तो देखो देवता माँ से उची आवाज में बात कर रहे है | जब उन्होंने माँ से पूछा तो माँ ने साड़ी बात बताई और कहा की जब वो इन असुरों को अभयदान दे चुकी है तो कैसे देवताओ को दे सकती है | भार्गव पुत्र ने भी देवताओं से कहा कि जिन असुरों को माँ अबैदान दे चुकी है उनको छोड़ दीजिये पर देवता तैयार नहीं हुए | अपने ही सामने अपनी माँ का अपमान देख कर भार्गव पुत्र नाराज होकर देवताओ से युद्ध करने लगे और अंत में देवता को हरा कर आश्रम से खदेड़ दिया | असुर को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि देवताओं के गुरु का पुत्र उनके लिए लड़ा और उनकी जान बचायी और उन्होंने भर्गव पुत्र के पावँ पकड़ लिए और आग्रह करने लगे कि वो उनके गुरु बन जाये और अंततः भार्गव पुत्र ने उनकी बात मान ली और असुरो के गुरु शुक्राचार्य के रूप में प्रतिष्ठित हुए | क्या अब भी आप को बताना पड़ेगा क्यों आज भी असुर ऐसे गुरुओं को ढूढ़ रहे है जो उनके हर नारकीय कार्य में शुक्राचार्य बन कर उनकी रक्षा कर  सके | शायद इसी लिए आअज गुरु का मान सम्मान सभी इतनी उचाई पर है कि कोई भी गुरु के साथ अकेले में मिलना ही नहीं चाहता | क्या आपने अपने गलत काम के लिए गुरु तलाश लिया है ???

Friday, 11 July 2014

जनसँख्या बढाइये , महंगाई से निजात पाइए

जनसँख्या और देश की नीति बुध्दिमानी का प्रतीक है ..............
आज विश्व जनसँख्या दिवस है अब ये न पूछिये कि आज के दिन क्यों ? बात साफ़ है आपको लगता है कि एक और एक दो होते है पर सरकार जानती है एक और एक ग्यारह भी होता है अब जब दो मिलेंगे तो ग्यारह का दर्शन आप समझ गये होंगे पर मैं आप एक और राज की बात बताता हूँ | सरकार आखिर एक से बढ़ कर लोग बुद्धि लगा रहे है | आई ए एस भी अपनी बुद्धि कर परिचय देते ही रहते है तभी तो यह योजना बनी होगी की जिनके एक या दो बच्चे होंगे उनको वेतन में अतिरिक्त वृद्धि मिलेगी पर जो शादी ना करे या बच्चे न पैदा करे उनके वेतन में कोई वृद्धि नहीं अब आप ही बताइये कोई पागल तो है नहीं जो बच्चे न पैदा करे आखिर उसको अतिरिक्त वेतन वृद्धि जो मिलनी है | अब तो आप जान गए ना की हम जगत गुरु क्यों कहलाये | इस लिए आज ही शादी कीजिये और सरकार की इस अनोखी जनसँख्या नीति का समर्थन कीजिये | और मजे की बात ये कि संविधान के प्रस्तावना में साफ़ साफ़ लिखा है कि हम भारत के लोग ......यानि हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई .आपस में सब भाई भाई | आखिर देश धर्म निरपेक्ष है तो ये क्या बात हुई कि किसी एक धर्म के लोगो की जनसंख्या ज्यादा रहे और किसी की काम आखिर संविधान का अनुच्छेद १४ हम सबको समानता का अधिकार देता है और इसी लिए सरकार ने सब धर्मो को खुली छूट दे रखी है कि जल्दी से जल्दी अपनी जनसँख्या बढ़ा का समानता के स्तर  पर आ जाये ताकि कोई धर्म अपने को अल्पसंख्यक न कह सके | आखिर आरक्षण में भी तो सरकार १९५० से यही प्रयास कर रही है कि सभी को अवसर मिल सके तो भला में समानता  क्यों नही | और इसी लिए सरकार ने आज तक एक सामान जनसँख्या नीति नहीं बनी क्या अभी भी नहीं समझ पाये कि विश्व में हमारा देश क्यों अनूठा है | और सब जाने भी दीजिये जापान में जनसँख्या नकारात्मक हो गयी है आखिर भूमण्ड़लीकरण के दौर में अगर किसी देश को मानव बीज की जरूरत पड़ गयी तो हमारे देश को बैठे बैठाये एक न बिज़नेस मिल जायेगा | वैसे आज मैंने देखा की बच्चे जनसँख्या जागरूकता का जलूस सड़क पर निकाल रहे थे पर ये बच्चे तो यह भी नहीं जानते कि बच्चे पैदा कैसे होते है और नेता जी वैसे भी यौन शिक्षा के विरोधी है तो ये बच्चे  क्या बैल योजना में देश कि तरक्की में योगदान देंगे ? खैर जो भी हो अगर आपको आज के दौर में महंगाई से लड़ना है तो सरकार की मानो और झट पट एक या दो बच्चे पैदा  आकर लो कम से कम वेतन में वृद्धि तो हो ही जाएगी | अरे भैया  बात तो पूरी सुन लो ये कमरे की लाइट क्यों बुझा ली ? ओह हो जनसँख्या दर्शन समझ गए शायद ? क्या आप भी समझे ( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

Thursday, 10 July 2014

चमड़े का थैला या बजट

चमड़े के थैले से बजट तक
इंग्लॅण्ड में जो वित्त मंत्री होता था वो बजट को रखने के लिए चमड़े का थैले में अपने दस्तावेज लाता था और ग्रीक में बूजट कहते है और इसी लिए उपनिवेश में रहने के कारण हमारे देश में भी अंग्रेज यही करते रहे और इसी लिए आज भी वित्तमंत्री एक चमड़े की अटैची में दस्तावेज रख कर लाते है तो अब तो आप समझ गए होंगे कि बजट क्यों कहा जाता है ? लेकिन आज तक यह किसी ने नहीं जाना कि चमड़ा किसका होता है काम से काम जानवर का तो बिलकुल नहीं जब बजट पेश करके तेल जनता का निकाला जाता है तो चमड़ा भी तो उसी का होगा फिर भी जिसे देखिये यही कहता मिल जायेगा कि बजट में देखो क्या होता है ? अब होगा क्या आदमी के चमड़ी ऐठ जाती है टैक्स और दाम के नाम सुन कर और सरकार अगले साल उसी चमड़े के थैले दस्तावेज रख कर पेश कर देता है बजट | अब काम से काम यह तो ना ही पूछिये कि मानवाधिकार के युग कोई मानव के चमड़े को कहा से ला सकता है | काम से काम कही तो अपनी बुद्धि लगा लेते आखिर देश चलना है कि नहीं वो बात अलग है कि जनसँख्या नीति नहीं बनाएंगे , खूब मजे लो और पैदा करते रो , कौन देश अपने बाप का है जिसका है वो जाने और देश को चलने के लिए पैसा कहा से आएगा आपके पास से ! अब आपके पास पैसा नहीं तो सरकार क्या करें मरिये और मर कर चमड़ा दान कर दीजिये आखिर अगले साल का बजट यानि चमड़े का थैला कहा से आएगा ? जाते आको एक बात बताऊ मैंने तो २००२ में ही अपना चमड़ा सरकार को दान कर दिया था पर अभी मेरे चमड़े कि जरूरत नहीं पड़ी है क्या आपके चमड़े में इस साल का बजट झेल लेने की ताकत है ??  व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

Wednesday, 9 July 2014

त्रिया चरित्रं देवम न जानम

त्रिया चरित्रं देवम जा जानम......
शायद आप सब को पता होगा कि भगवान और देवता में फर्क होता है | देवता यानि इंद्रा जिन्होंने गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का जीवन नरक बना दिया अब ऐसे देवता नहीं कहेंगे तो कौन कहेगा कि त्रिया चरित्रं ........ना जाने क्यों त्रिया की सारी क्रिया अगर किसी ने  समझी है तो वो है पुरुष क्योकि पुरुष ही है जो सदाचारी है चरित्रवान है उसके दिल में कभी कुछ भी नहीं छिपा है , इतना नाराज होने की जरूरत नहीं है यह मैंने नहीं महान राजा भतृहरि ने अपने श्रृंगार शतक में लिखा है कि महिला दिल से काली होती है इसी लिए उसका मर्दन किया जाता है और उसके जहर को शरीर से बाहर निकलने के लिए ही उसके अधरों का पान किया जाता है अब आप बताइये क्या अब भी कोई शक है आपको त्रिया चरित्र के बारे में | वैसे त्रिया चरित्रं को आज तक अगर किसी ने समझा है तो हम ही तो है अगर आप किसी महफ़िल में बैठे तो जब तक किसी महिला के बारे में पूरा शोध पत्र लिख कर आपके छाती को ठंडक न मिल जाये तब तक खाना ही कहा पचता है | और दुनिया में औरत को सिर्फ एक काम के लिए समझा गया और इसी लिए लोक मर्यादा की रक्षा के लिए उसको अग्नि परीक्षा देनी है वो तो ठीक है कि मुझे कोई शक नहीं पर दुनिया कुछ न कहे इस लिए और अगर ऐसा है तो वो कौन सा देश है या लोग जो बताते थकते नहीं ये देश भाई बहनो का है | अगर आप कोठे पर जा रहे है तो भला आपके चरित्र में क्या दोष पर लड़की के चरित्र में तो दोष आ ही जाता है | वैसे त्रिया चरित्र का मतलब क्या है क्या ये औरत का चरित्र नहीं कि पूरे घर को खाना खिला कर खुद भूखी सो जाती है ? क्या यह त्रिया चरित्र नहीं कि जब वो सुबह उठती है तो आप सोते रहते है और जब रात में आप सोने जाते है तो वो सारा काम निपटाया करती है | क्या ये भी त्रिया चरित्र नहीं जब आप रात में नींद में दुबे होते है तब वो रात में जग कर कभी आपके बच्चे को दूध पिला रही होती है या फिर उसका मॉल मूत्र साफ़ कर रही होती है | या फिर त्रिया चरित्र का मतलब यह भी नहीं कि घर के अलावा नौकरी करने वाली त्रिया कभी भी अपने ऊपर अपना ही पैसा नहीं खर्च कर पाती ? अगर ये सारी बात आप त्रिया चरित्र नहीं मान रहे तो सच क्या नहीं कहते आखिर आपके भाई हरिश्चंद्र तो सत्य के पुजारी थे कहिये कि आपको सिर्फ जिन्दमानस में त्रिया चरित्र देखने की आदत नहीं नहीं लत पड़| गयी है , सच बताइये जब आप शब पीकर एकमहिला के करीब जाते है तो क्या आपको बर्दाश्त करना उसका चरित्र नहीं है | जब आप उसको अपनी जलती सिगरेट से जला देते है और वो रात के अँधेरे में घुट कर जी जाती है और आप अपनी भूख शांत कर सो जाते है तो क्या ये भी त्रिया चरित्र नहीं है | जब सात फेरों के बाद आप उसको सिंदूर के पंजीकरण के नाम पर रात दिन मारते है , हिंसा करते है और वो कर्ज में दुबे अपने माँ बाप का ध्यान करके नरक को सहती है तो क्या ये त्रिया चरित्र नहीं है | शायद औरत की इस सहन शक्तिको देवता भी नहीं समझ पाये | पर कही ये देवता पति देव तो नहीं जिसके हर जुल्म को सह कर वो हसती है| अच्छा अगर आपको मेरी सारी बात गलत लग रही है तो खुद सोच कर देखिये कि आप चरित्र किसको समझ रहे है आखिर आपको त्रिया क्या और क्या दिखाई देता है पर जरा संभल कर क्योकि चरित्र सिर्फ औरत का गिरना है कभी पुरुष के चरित्र में देवता को कोई परेशानी थोड़ी ना हुई , पर आप तो शायद मनुष्य है तो फिर ये पति देव का मतलब ? नारी तुम केवल ???????????????

Tuesday, 8 July 2014

म .....................हिला

म....................हिला
बड़ी अजीब  सी बात है कि कभी महिला जैसा शब्द कोई समझ नहीं पाया उसे अबला कह डाला पर जब समुन्द्र मंथन हुआ तो लक्ष्मी जी १४ रत्नो में से एक थी यानि वो हाड मांस से पैदा नहीं हुई शायद यही कारन हो कि हम कभी महिला को जिन्दा हाड मांस का नहीं समझ पाते उसे एक रत्न समझ कर अपने जीवन में सजाना चाहते है पर आपको इतनी सच्ची बात क्यों सही लगने लगी | पर सच तो सच है किसी एक पुरुष के पास महिला जैसी शक्ति का निर्माण करना आसान नहीं इस लिए दुर्गा का अवतार भी कई देवताओ की शक्ति से हुआ | सीता का जन्म हल के सीत से हुआ यानि जमीन के अंदर से प्रकट हुई | कितनी अजीब सी बात है कि कंस देवकी से पैदा होने वाले सभी संतानो को मार सका पर जब लड़की हुई तो वह पटकने पर मरी नहीं बल्कि वह उड़ कर आसमान में चली गयी और कंस को चेताया कि उसकी मौत कैसी होगी ?इन सारे सच्चे उदाहरणों से इतना तो साफ़ है कि औरत ने कभी अपने लिए जन्म लिया नहीं हमेशा उसने किसी उद्देश्य से जन्म लिया | क्या आपको नहीं लगता कि जब आपको महिला के उद्देश्य के बारे में पता नहीं होता तो या आप उसको गर्भ में मार देते है या जिन्दा जला देते है वैसे आपको जंगल में शिकार करने कि इतनी आदत रही है अभी १५०० साल पहले तक तो आप शिकार ही करते रहे है पर वन्य जीव अधिनियम क्या आया कि आप ने औरत को जी जानवर की बना डाला , कभी अपहरण , कभी बलात्कार अब इतनी आसानी से तो आदत जाती नहीं पर इससे जो पूरा हिल जाता है और उसे ही आप महिला कहने लगे | क्या आप आज महिला के उद्देश्य को समझने की कोशिश कर रहे है पर क्या वो अपने लिए कभी पैदा नहीं हो सकती ? क्या अपने ही गर्भ पर उसका अधिकार नहीं क्योकि उसके किसान बनने का ठेका तो आपके ही पास है |क्या किसी म ......हिला या कोई महिला को आपने देख लिया

Monday, 7 July 2014

गंगा भी तो महिला है

गंगा भी महिला ही है .........
हम उस देश के वासी है जिस देश में गंगा बहती है और गंगा यानि महिला का स्वरुप और गति करती महिला को चंचल कहके खुद वाचाल होने की सदियों  पुरानी परम्परा रही है | वैसे हमारे देश में नारी को देवी का दर्जा प्राप्त है जब वो देवी है तो दिखाए ! थोड़ा इतिहास के पैन पलटिये तो आपको वैष्णव देवी के पीछे भैरव दौड़ता मिल जायेगा , देवे पाटन में सूअर के सर के साथ लगी मंदिर के बाहर एक पुरुष की मूर्ति भी यही कहानी कहती है कि कैसे वो देवी के प्रति आसक्त हो गया | और ये नारी का सम्मान नहीं तो क्या है कि एक पत्निव्रता नारी ( अनुसूया ) से भगवान कहे कि अगर नग्न होकर खाना खिलाओगी तो हम खाएंगे | इस से अच्छा नारी का सम्मान और क्या हो सकता है कि जनक के दरबार में गार्गी के सामने शास्त्रार्थ की शर्त यही थी कि वो नग्न होकर आये | जब कि सागर के साठ हज़ार पुत्रो को टर्न वाली गंगा ने ब्रम्हा का कमंडल इसी लिए छोड़ा कि पुरुषो का कल्याण हो जाये , वो शिव कि जता से पृथ्वी और पृथ्वी से रसातल में चली गयी कि सभी का कल्याण हो गंगा ( महिला ) ने अपना स्तर सर जिन लोगो के कल्याण के लिए गिरा लिया उन्होंने ही उसको सिर्फ अपने को मोक्ष दिलाने वाला मान कर गन्दा किया और ऐसे ही तो सम्मान किया जाता है महिला का | पहले उसका उपभोग कीजिये फिर गंगा कि तरह मैला कह कर उसी के उद्धार की बात कीजिये पर कभी ना सोचियेगा की गन्दा करने वाले आप ही है | वैसे महिला से याद आया की अहिल्या को इसी लिए पत्थर बनना पड़ा क्योकि ब्रह्म मुहूर्त में उन्होंने इंद्रा को गौतम समझ कर सम्बन्ध बना लिए थे पर क्या आपको कभी लगा की ऋषि शब्द से विभूषित व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में अक्सर ऐसा किये करते होंगे तभी तो भोग्या बन चुकी अहिल्या को कभी शक नहीं हुआ पर मिला क्या पत्थर बनने का आशीर्वाद ? इस देश में पहले मुरली , बसावी, देवदासी प्रथा चलायी जाती है फिर उनके उद्धार की योजना | यह महिला ठीक वैसे है कि पहले पॉलिथीन की तरह उपयोग कीजिये फिर उसी की बात करके पर्यावरण बचाइये | गंगा को पुरखो को टर्न वाली बता कर अब उसके अस्तित्व के लिए लड़ाई ठीक उसी तरह है जैसे पहले किसी महिला से ताबड़ तोड़ बच्चे पैदा कीजिये पहिये जिन्दा लाश हो चुकी महिला को मानवता के नाम पर बचने पर जुट जाइये | मैं यह बिलकुल नहींकह रहा कि आप गंगा साफ़ न कीजिये पर थूक कर चाटने वाली कहावत को मिटा दीजिये | गंगा महिला है और महिला सिर्फ घर चलाने वाली मशीन की तरह नहीं पुरुष की तरह गंगा को धारण करने वाली होना चाहिए | क्या कभी महिला को अपने से आगे मान पाएंगे आप | क्यों माने अपने को मेहरा कहने से भी बचाना है ( व्यंग्य को व्यंग्य समझिए तथ्यों के साथ)

Sunday, 6 July 2014

स से शं तक का सफर

स से शं तक का सफर .....
वैसे मुझे हिंदी नहीं आती पर आपको आती है और इसी लिए दिमाग पर बिना जोर डाले बताइये की हिंदी वर्ण माला में पहले स आता है की श ? जी बिलकुल ठीक पहले स आता है तो पहले स का ही नाम लिया जायेगा ना ! अब चाहे वो स से संसार हो या साईं फिर शंकर जी ने यह विवाद क्यों किया वैसे भी शंकर तो भोले कहलाते है फिर क्या कलयुग का असर उन पर क्यों ? वैसे मैं अज्ञानी कुछ कह नहीं सकता पर बचपन से क्या आपने यह पढ़ा है की गुरु गोविन्द में गुरु इस लिए बड़ा है क्योकि उसने गोविन्द के बारे में बताया है तो गुरु की ही पूजा पहले होनी चाहिए तो फिर इतना बवाल क्यों | देखिये हम तो ठहरे भेड़िया धसान यानि अगर एक भेड़ कुँए में गिरी नही कि सब कूद गयी और हम तो यही बचपन से सुनते आये है कि भारत को अखंड रखने में शंकराचार्य ने चार मठों या धाम की स्थापना की और इसी लिए कोई शंराचार्य को धर्मगुरु से ज्यादा राष्ट्र निर्माता के रूप में ज्यादा समझता है लेकिन अगर शंकराचार्य के उन चमत्कारी गुणों के बारे में बताया जाता जैसे कैसे उन्होंने अपनी माँ के लिए माँ गंगा को घर के दरवाजे पर लेकर खड़ा कर दिया और कैसे उन्होंने सारे आवंला के पेड़ को सोने के आवंला का बना दिया तो इतना पक्का है कि अगर शंकराचार्य जी को ऐसे गुरु साधु के रूप में प्रस्तुत किया गया होता तो कोई कारण नहीं था कि हर मंदिर , मजार , चर्च में अपनी मनोकामना के लिए चक्कर लगाने वालो ने शंकरचर्या के पीठो पर सर पटक पटक का उसे खून और पैसे से भर दिया होता पर जैसा प्रदर्शन वैसा सुदर्शन वरना जिस देश में गली के साधु बाबा को लोग चढ़ावा चढ़ा देते है वो भला शंकराचार्य को कैसे भूलते और यही कारण है शंकराचार्य पीछे है साईं से और साईं हिन्दू हो या मुसलमान , हिन्दू दर्शन तो आत्मा में विश्वास रखता है फिर साईं के धर्म पर चर्चा ? क्या हम अपने ही धर्म को खुद नहीं भूल रहे है | साईं का दरसन सिर्फ इतना है कि आप एक छोटे से गॉव में रहकर भी मानवता के लिए कार्य करके वह पहुंच सकते है जिसके लिए कृष्णा ने गीता में धर्म अधर्म को समझते हुए अपने जन्म का मर्म अर्जुन को समझाया था साईं मांस खाते थे पर राम कृष्ण परम हंस भी माँ काली को मांस का भोग लगते थे | कितना अजीब है कि एक तरफ गोस्वामी  तुलसी दास कहते है जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तेहि तैसी  तो क्या हमारी भावना दूषित है या फिर हम ही ?(इस व्यंग्य को सत्य के अर्थ में देखिये )

Saturday, 5 July 2014

सच बोलिए आप गॉव में ही रहते है

ये देश तो गॉवों का है .................
भारत में करीब छह लाख से ज्यादा गॉव है और यही नहीं करीब ५००० साल की संस्कृति समेटे आज हम सभ्यता के इस दौर में   आये ग्रामीण संस्कृति से | अब आप यह न कहियेगा कि आप ने गॉव नहीं देखा | क्या अभी आप टूटी और खड्डों वाली सड़क पर चल कर नहीं आया हूँ , सोचा चलो जल्दी से नहीं लूँ पर लाइट नही आ रही थी | क्या करूँ क्या करूँ कुऑं तो है नहीं सोचा हैंड पंप से ही पानी ले आऊ और मैं दौड़ पड़ा पानी लाने पर जहा पंप लगा था पर ये क्या वह तो करीब दो मीटर में कीचड़ ही कीचड़ , कोई नाली नहीं जिससे पानी निकल सके | बड़े दुखी मन से लौटा सोचा चाय पी लू दूध लेने गया तो दुकानदार ने बताया कि आज नकली दूध बनाने वालो को पकड़ा गया है , मुझे याद आया कि मेरे एक मित्र ने क्यों गाय पाल रखी है ? आप तो यह सब मानेंगे नहीं क्योकि आपको इतिहास में सिद्धू घाटी सभ्यता  जो पढ़ाया गया है पर उस समय में सड़क के दोनों और लैंप हुआ करते थे , घरों में कुँए और ढकी हुई नाली होती थी पर आप जानते है कि देश में कितने आक्रमण  हुए है , इस लिए आपने सेना कि तरह सारे रस्ते , जीवन इतना कठिन बना दिया कि दुश्मन कभी अब सोच ही ना सके इस देश में आने के लिए और इसी लिए ये देश छह लाख गावों का देश बन गया ! क्या आप शहर में रहते है ? कितनी बार कहा दिन में मत पिया करो पर इतने दर्द में पिने के सिवा चारा भी क्या है | वैसे एक बात कहु बीरबल कि खिचड़ी वाली कहानी सुन सुन कर बड़े हुए हम सब को इस बात से सुकून मिलता है कि कम से कम घर में नल की टोटी और बल्ब लगे तो है और एक गॉव में लड़का लड़की शादी कर ले तो लोग मार देते है कम से कम यहाँ ( शहर ) पार्क में पकडे जाने पर भाई बहन बता कर छूट तो जाते है और ऐसे में हम भूल से क्यों कहे कि हम आज भी गॉव जैसी ही जिंदगी  जी रहे है प्रगति के नाम जान है तो शान है हम तो शहर में ही रहते है पर शहर है कहाँ ? लैला मजनूं वाले पार्क में या टूटी सड़क में कभी तो सच बोलिए , हम सब गॉव में रहते है कि नहीं ???????? व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

Friday, 4 July 2014

लीजिये आपके यहाँ अतिथि आये है

अतिथि देवो भव...............
अब आपको यह बताने की जरूरत नहीं है कि अतिथि किसे कहते है , जी अ .......तिथि जो बिना किसी तिथि के आ जाये यही ना पर आपके लिए वो देवता है मतलब देवता आ सकते है और वही अतिथि है देवी नहीं और अगर अतिथि महिला आई तो ? तो क्या वो देवी तो है नहीं तो जो चाहो करो , मैं कोई ऐसी बात नहीं कह रहा कि आप महिला आंदोलन खड़ा कर दे देखिये हम उस देश के वासी है जहा प्राण जाये पर बचन ना जाये और यही तो शब्द ब्रह्म है और जब अतिथि देवता है तो लिंग भेद तो हो गया ना तो लीजिये विदेश से महिला घूमने क्या आई कि यहाँ के देवता ? नहीं नहीं पुरुषओ ने कर दिया शील हरण पर उनकी गलती भी क्या हमारे यहाँ महिला को अतिथि के रूप में स्वीकार किया ही नहीं गया | वैसे छोड़िये इन बातों को और आपको बताता हूँ कि चाणक्य ने क्या कहा है अतिथि के लिए , उनके अनुसार कोई व्यक्ति पहले दिन अतिथि , दूसरे दिन भार और तीसरे दिन कंटक हो जाता है | समझ रहे है ना किसी के घर एक दिन से ज्यादा नहीं तभी अतिथि और अगर दिल नहीं मान रहा तो सरए या होटल ढूंढ़ लीजिये क्योकि कोई भी अपने घर भार या कंटक नहीं रखता | वैसे अगर आपको ना विश्वास हो तो चलिए किसी मंदिर कि डीवर या किसी पेड़ के नीचे चलते है | देखा देखा यहाँ वो भगवन पड़े है जो मनुष्य के घर एक दो तीन दिन नहीं पूरे साल रहने की जुर्रत कर बैठे और देखिये कल तक जिनकी आरती होती थी आज एक लावारिश लाश से बदत्तर हालत में है , लाश को तो सरकार लावारिश घोषित करके उन्हें सम्मान से अंतिम संस्कार करती है पर भगवान के लिए ? अतिथि देवो भव ? खैर कभी किसी के घर रोज जाने लगिए पहले नाश्ता चाय , फिर चाय , फिर सिर्फ पानी और एक दिन सिर्फ गप्प अब भी क्या आपको कोई शक है अतिथि देवो भव के दर्शन से , हा मैं तो भूल ही गया जब कोई अतिथि आपके घर आता है तो दरवाजा खोलते ही आप सबसे पहले यही पूछते है और कैसे आना हुआ ? क्योकि हमें देवता के घर आने की आदत नहीं हम तो मनुष्य है और घर का भेदी लंका डाहे में विश्वास करते है वो अतिथि ही क्या जो सीता के अपहरण का ताना ना बुन दे या पद्मिनी को जौहर के लिए मजबूर ना कर दे ? क्या आपके यहाँ कोई अतिथि आ रहा है ??( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

Thursday, 3 July 2014

क्या आप जिन्दा है ?

कमरों में ए . सी . या मुर्दा घर
मुझको मालूम है की आप यही कहेंगे कि बन्दर क्या जाने अदरख का स्वाद , बिलकुल सही आप बन्दर को नहीं पहचानेंगे तो भला कौन पहचानेंगे आखिर हम दोनों उसी के वंशज जो ठहरे , मैं मानता हूँ कि गरीब आदमी के मुहं से आपको ए . सी की बात अच्छी नहीं लग रही फिर आपको अमीर कौन कहेगा ? इसी लिए तो आपने पेड़ काट डाले क्योकि जब ए सी है तो इन सब का क्या काम , आखिर आपके पास पैसा है कोई मजाक थोड़ी ना है ! और फिर आपको ठंडी हवा की क्या फ़िक्र गाड़ी भी तो ए सी है ! सच सोच रहे है आप अगर मेरी ए सी खरीदने की औकात होती तो भला मेरी क्या मजाल जो मैं यह सब अनाप सनाप बात करता , आखिर आप ही तो एक मनुष्य है मैं तो एक ???? वैसे क्या आपको मालूम है की जब कोई मरता है और मुर्दा हो जाता है तो शरीर से दुर्गन्ध ना आये और शरीर  के अंग ख़राब न हो जाये इस लिए या तो उसो बर्फ से ठंडा रखा जाता है या फिर आप जैसे अमीर लोग ए सी में रखते है पर आप तो जिन्दा हैं फिर ए सी , मतलब आप अपने अंगो को स्थिर कर रहे है यानि जिन्दा रहते हुए अंदर ही अंदर दुर्गन्ध तो क्या हुआ अगर इस से सौ बीमारी और ब्लड प्रेशर हो जाये आखिर आपके पास पैसा है , अगर इसके अंदर की रेडॉन गैस ( रेडिओ एक्टिव तत्व ) से फेफड़े के रोग होते है तो कौन अमर होकर आये है पर हम ना पेड़ लगाएंगे न पर्यावरण सुधारेंगे! हम तो मुर्दे कीतरह ए सी में रहेंगे , वैसे भी आपके अनुसार ईमानदारी की बात वही करता है जो चोरी नहीं कर पाता ! आखिर मैं मुर्दा घर में इन रहने वाली लाशो को कैसे समझाऊ ? अब मुझे दोष ना दीजियेगा मैंने तो लाशो को ही ठंडक में रखते देखा है क्या बढ़ती लाशो की दुनिया में कब तक सब जिन्दा रह पाएंगे ? क्या आप भी मेरी तरह जिन्दा है ? ( व्यंग्य समझ कर पढ़े )

Wednesday, 2 July 2014

ganga maili hai !!!!!

राम तेरी गंगा मैली हो गयी .........
अच्छा आप को मालूम है कि कीचड़ में कौन लोटता है और किसे कीचड़ ही जीने के लिए पसंद है |???????? अब आप ही कह रहे है मैंने कुछ नहीं कहा ! आप कितने समझदार हो और आपको कितनी समझ है | आपने ही सही पहचाना वो सूअर है | आज गंगा मैली हो गयी है कीचड़ से भरी है लेकिन इसको तो मनुष्य प्रयोग करते रहे है और उन्होंने ही इसमें डुबकी लगायी है | तो क्या डुबकी लगाने वाले मनुष्य नहीं ? काश कुछ आदमी तो मिलते गंगा को !!! ( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

Tuesday, 1 July 2014

अच्छे दिन आने वाले हैं

अच्छे दिन आने वाले है ......
मुझे वायरल हो गया डॉ को दिखाने के लिए पैसे थे नहीं पर मुझे तो अच्छा होना था क्या करता ? अपने देश में सलाह देने वालो की कमी नहीं है किसी ने कहा पैसे नहीं है तो सरकारी अस्पताल में दिखा लो पर एक ने कहा परेशान होने कोई जरूरत नहीं है बस किसी तरह सात दिन काट लो बस तुम्हरे अच्छे दिन आ जायेंगे |मुझे अपनी गरीबी पर बहुत गुस्सा आया पर क्या करता अच्छे दिन जो लाना था | तभी याद की सही तो कह रहे है लोग आखिर मोती पाना है तो सीपी को स्वाति नक्षत्र का इंतज़ार तो करना ही पड़ेगा तो क्या अच्छे दिन इंतज़ार से आते है ? और नहीं तो क्या अब आप मानिए या ना मानिये कृष्णा ने तो अर्जुन से यही कहा था कि जब जब धर्म कि हानि होती है , हे अर्जुन तब तब मैं धर्म कि स्थापना के लिए अवतार लेता हूँ यानि अगर आपको अच्छे दिन नहीं दिखाई दे रहे तो मान लीजिये कि अभी दिन इतने ख़राब भी नही हुए और अगर आपको बहुत ख़राब लग रहे है तो मान लीजिये कि जन्म हो चुका है | पर आप क्यों मैंने लगे मेरी बात लेकिन सच यही है कि अच्छे दिन लेन के लिए मम्मी पापा को भी ९ महीने का इंतज़ार करना पड़ता है और हर साल उस अच्छे दिन के लिए आपको ३६५ दिन इंतज़ार करना पड़ता है | लीजिये अब यही सुन्ना बाकि था मैं किसी पार्टी का चमचा नहीं मैं तो अच्छे दिन के लिए बाँट जोह रहा हूँ कल ही बीज बोया था पर अभी जमीन से अच्छे दिन के संकेत नहीं मिले है वैसे आप तो मैली गंगा में गोटा लगाने के इतने आदी हो चके है  कि गंगा के अच्छे दिन आएंगे आप मानेंगे ही नहीं और लीजिये बनारस में १९३२ से शहर भर का कूड़ा गंगा में मिला कर आप पूछ रहे है आखिर अच्छे दिन आएंगे कब ? भैया आएंगे पर अब साफ़ पानी को गंदे पानी के साथ बराबर मिलाना पड़ेगा और एक दिन पानी साफ़ दिखाई देने लगेगा लेकिंग आप तो द्रौपदी की तरह बस अपमान करने में ही विश्वास करते है , इसी लिए चिल्ला रहे है कि क्या हुआ अच्छे दिन का . अरे भाई आप अमीबा जैसे एक कोशकीय प्राणी में विभाजन अँधेरे में ही देख सकते है और वाही एक से दो होने में सबसे काम समय लेता है पर आप तो गलती से जटिल प्राणी मानव है तो इंतज़ार कीजिये अच्छे दिन के पर उससे पहले दर्द चीखना चिल्लाना , प्रसव पीड़ा को सहने ( महंगाई , मुद्रा स्फीति , अपराध ) की आदत तो डाल लीजिये, मान भी लीजिये कि आप दूसरे जन्तुओ से ज्यादा अकल्मन्द है और जानते है कि अँधेरे के बाद ही उजाला आता है \ क्या नहीं मानेगे , चलिए आपकी मर्जी मैं तो आपको आदमी समझ कर बात कर रहा था \ क्या मैं जानवर हूँ !!! वह क्या पहचाना आपने मैं दो पैर पर चलने वाला जानवर ही हूँ जो चार पैरो वालो से ज्यादा विवस भूखा , गरीब , दुखी और अपने को कोसने वाला हूँ क्या आप मनुष्य है !!!!!!!!!!! तब तो अच्छे दिन आने चाहिए ( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )