Friday, 4 July 2014

लीजिये आपके यहाँ अतिथि आये है

अतिथि देवो भव...............
अब आपको यह बताने की जरूरत नहीं है कि अतिथि किसे कहते है , जी अ .......तिथि जो बिना किसी तिथि के आ जाये यही ना पर आपके लिए वो देवता है मतलब देवता आ सकते है और वही अतिथि है देवी नहीं और अगर अतिथि महिला आई तो ? तो क्या वो देवी तो है नहीं तो जो चाहो करो , मैं कोई ऐसी बात नहीं कह रहा कि आप महिला आंदोलन खड़ा कर दे देखिये हम उस देश के वासी है जहा प्राण जाये पर बचन ना जाये और यही तो शब्द ब्रह्म है और जब अतिथि देवता है तो लिंग भेद तो हो गया ना तो लीजिये विदेश से महिला घूमने क्या आई कि यहाँ के देवता ? नहीं नहीं पुरुषओ ने कर दिया शील हरण पर उनकी गलती भी क्या हमारे यहाँ महिला को अतिथि के रूप में स्वीकार किया ही नहीं गया | वैसे छोड़िये इन बातों को और आपको बताता हूँ कि चाणक्य ने क्या कहा है अतिथि के लिए , उनके अनुसार कोई व्यक्ति पहले दिन अतिथि , दूसरे दिन भार और तीसरे दिन कंटक हो जाता है | समझ रहे है ना किसी के घर एक दिन से ज्यादा नहीं तभी अतिथि और अगर दिल नहीं मान रहा तो सरए या होटल ढूंढ़ लीजिये क्योकि कोई भी अपने घर भार या कंटक नहीं रखता | वैसे अगर आपको ना विश्वास हो तो चलिए किसी मंदिर कि डीवर या किसी पेड़ के नीचे चलते है | देखा देखा यहाँ वो भगवन पड़े है जो मनुष्य के घर एक दो तीन दिन नहीं पूरे साल रहने की जुर्रत कर बैठे और देखिये कल तक जिनकी आरती होती थी आज एक लावारिश लाश से बदत्तर हालत में है , लाश को तो सरकार लावारिश घोषित करके उन्हें सम्मान से अंतिम संस्कार करती है पर भगवान के लिए ? अतिथि देवो भव ? खैर कभी किसी के घर रोज जाने लगिए पहले नाश्ता चाय , फिर चाय , फिर सिर्फ पानी और एक दिन सिर्फ गप्प अब भी क्या आपको कोई शक है अतिथि देवो भव के दर्शन से , हा मैं तो भूल ही गया जब कोई अतिथि आपके घर आता है तो दरवाजा खोलते ही आप सबसे पहले यही पूछते है और कैसे आना हुआ ? क्योकि हमें देवता के घर आने की आदत नहीं हम तो मनुष्य है और घर का भेदी लंका डाहे में विश्वास करते है वो अतिथि ही क्या जो सीता के अपहरण का ताना ना बुन दे या पद्मिनी को जौहर के लिए मजबूर ना कर दे ? क्या आपके यहाँ कोई अतिथि आ रहा है ??( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

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