गंगा भी महिला ही है .........
हम उस देश के वासी है जिस देश में गंगा बहती है और गंगा यानि महिला का स्वरुप और गति करती महिला को चंचल कहके खुद वाचाल होने की सदियों पुरानी परम्परा रही है | वैसे हमारे देश में नारी को देवी का दर्जा प्राप्त है जब वो देवी है तो दिखाए ! थोड़ा इतिहास के पैन पलटिये तो आपको वैष्णव देवी के पीछे भैरव दौड़ता मिल जायेगा , देवे पाटन में सूअर के सर के साथ लगी मंदिर के बाहर एक पुरुष की मूर्ति भी यही कहानी कहती है कि कैसे वो देवी के प्रति आसक्त हो गया | और ये नारी का सम्मान नहीं तो क्या है कि एक पत्निव्रता नारी ( अनुसूया ) से भगवान कहे कि अगर नग्न होकर खाना खिलाओगी तो हम खाएंगे | इस से अच्छा नारी का सम्मान और क्या हो सकता है कि जनक के दरबार में गार्गी के सामने शास्त्रार्थ की शर्त यही थी कि वो नग्न होकर आये | जब कि सागर के साठ हज़ार पुत्रो को टर्न वाली गंगा ने ब्रम्हा का कमंडल इसी लिए छोड़ा कि पुरुषो का कल्याण हो जाये , वो शिव कि जता से पृथ्वी और पृथ्वी से रसातल में चली गयी कि सभी का कल्याण हो गंगा ( महिला ) ने अपना स्तर सर जिन लोगो के कल्याण के लिए गिरा लिया उन्होंने ही उसको सिर्फ अपने को मोक्ष दिलाने वाला मान कर गन्दा किया और ऐसे ही तो सम्मान किया जाता है महिला का | पहले उसका उपभोग कीजिये फिर गंगा कि तरह मैला कह कर उसी के उद्धार की बात कीजिये पर कभी ना सोचियेगा की गन्दा करने वाले आप ही है | वैसे महिला से याद आया की अहिल्या को इसी लिए पत्थर बनना पड़ा क्योकि ब्रह्म मुहूर्त में उन्होंने इंद्रा को गौतम समझ कर सम्बन्ध बना लिए थे पर क्या आपको कभी लगा की ऋषि शब्द से विभूषित व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में अक्सर ऐसा किये करते होंगे तभी तो भोग्या बन चुकी अहिल्या को कभी शक नहीं हुआ पर मिला क्या पत्थर बनने का आशीर्वाद ? इस देश में पहले मुरली , बसावी, देवदासी प्रथा चलायी जाती है फिर उनके उद्धार की योजना | यह महिला ठीक वैसे है कि पहले पॉलिथीन की तरह उपयोग कीजिये फिर उसी की बात करके पर्यावरण बचाइये | गंगा को पुरखो को टर्न वाली बता कर अब उसके अस्तित्व के लिए लड़ाई ठीक उसी तरह है जैसे पहले किसी महिला से ताबड़ तोड़ बच्चे पैदा कीजिये पहिये जिन्दा लाश हो चुकी महिला को मानवता के नाम पर बचने पर जुट जाइये | मैं यह बिलकुल नहींकह रहा कि आप गंगा साफ़ न कीजिये पर थूक कर चाटने वाली कहावत को मिटा दीजिये | गंगा महिला है और महिला सिर्फ घर चलाने वाली मशीन की तरह नहीं पुरुष की तरह गंगा को धारण करने वाली होना चाहिए | क्या कभी महिला को अपने से आगे मान पाएंगे आप | क्यों माने अपने को मेहरा कहने से भी बचाना है ( व्यंग्य को व्यंग्य समझिए तथ्यों के साथ)
हम उस देश के वासी है जिस देश में गंगा बहती है और गंगा यानि महिला का स्वरुप और गति करती महिला को चंचल कहके खुद वाचाल होने की सदियों पुरानी परम्परा रही है | वैसे हमारे देश में नारी को देवी का दर्जा प्राप्त है जब वो देवी है तो दिखाए ! थोड़ा इतिहास के पैन पलटिये तो आपको वैष्णव देवी के पीछे भैरव दौड़ता मिल जायेगा , देवे पाटन में सूअर के सर के साथ लगी मंदिर के बाहर एक पुरुष की मूर्ति भी यही कहानी कहती है कि कैसे वो देवी के प्रति आसक्त हो गया | और ये नारी का सम्मान नहीं तो क्या है कि एक पत्निव्रता नारी ( अनुसूया ) से भगवान कहे कि अगर नग्न होकर खाना खिलाओगी तो हम खाएंगे | इस से अच्छा नारी का सम्मान और क्या हो सकता है कि जनक के दरबार में गार्गी के सामने शास्त्रार्थ की शर्त यही थी कि वो नग्न होकर आये | जब कि सागर के साठ हज़ार पुत्रो को टर्न वाली गंगा ने ब्रम्हा का कमंडल इसी लिए छोड़ा कि पुरुषो का कल्याण हो जाये , वो शिव कि जता से पृथ्वी और पृथ्वी से रसातल में चली गयी कि सभी का कल्याण हो गंगा ( महिला ) ने अपना स्तर सर जिन लोगो के कल्याण के लिए गिरा लिया उन्होंने ही उसको सिर्फ अपने को मोक्ष दिलाने वाला मान कर गन्दा किया और ऐसे ही तो सम्मान किया जाता है महिला का | पहले उसका उपभोग कीजिये फिर गंगा कि तरह मैला कह कर उसी के उद्धार की बात कीजिये पर कभी ना सोचियेगा की गन्दा करने वाले आप ही है | वैसे महिला से याद आया की अहिल्या को इसी लिए पत्थर बनना पड़ा क्योकि ब्रह्म मुहूर्त में उन्होंने इंद्रा को गौतम समझ कर सम्बन्ध बना लिए थे पर क्या आपको कभी लगा की ऋषि शब्द से विभूषित व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में अक्सर ऐसा किये करते होंगे तभी तो भोग्या बन चुकी अहिल्या को कभी शक नहीं हुआ पर मिला क्या पत्थर बनने का आशीर्वाद ? इस देश में पहले मुरली , बसावी, देवदासी प्रथा चलायी जाती है फिर उनके उद्धार की योजना | यह महिला ठीक वैसे है कि पहले पॉलिथीन की तरह उपयोग कीजिये फिर उसी की बात करके पर्यावरण बचाइये | गंगा को पुरखो को टर्न वाली बता कर अब उसके अस्तित्व के लिए लड़ाई ठीक उसी तरह है जैसे पहले किसी महिला से ताबड़ तोड़ बच्चे पैदा कीजिये पहिये जिन्दा लाश हो चुकी महिला को मानवता के नाम पर बचने पर जुट जाइये | मैं यह बिलकुल नहींकह रहा कि आप गंगा साफ़ न कीजिये पर थूक कर चाटने वाली कहावत को मिटा दीजिये | गंगा महिला है और महिला सिर्फ घर चलाने वाली मशीन की तरह नहीं पुरुष की तरह गंगा को धारण करने वाली होना चाहिए | क्या कभी महिला को अपने से आगे मान पाएंगे आप | क्यों माने अपने को मेहरा कहने से भी बचाना है ( व्यंग्य को व्यंग्य समझिए तथ्यों के साथ)
कटु सत्य है - तीखा व्यंग्य है लेकिन जो व्यंजित किया है उस से कोई इन्कार नहीं कर सकता .ये बातें गले से उतारना लोगों को मुश्किल लगेगा ,और शुरू से जो सुविधाएँ और अधिकार मिले हैं उन्हें त्यागना उनके बस की बात नहीं .फिर भी कोई लिख सका यही बहुत है -आभार !
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