विरह वेदना का प्रलाप ,
आज मैं सुनकर आया हूँ ,
सर पटक पटक का रो रहा ,
मुट्ठी में राख ही पाया हूँ ,
भ्रम इश्क़ का क्यों उसे था ,
तन की चाहत जब रही उम्र भर ,
अश्को का सैलाब फिर क्यों है ,
जब जिया न उसको कभी जी भर .........
शुभ रात्रि
,
आज मैं सुनकर आया हूँ ,
सर पटक पटक का रो रहा ,
मुट्ठी में राख ही पाया हूँ ,
भ्रम इश्क़ का क्यों उसे था ,
तन की चाहत जब रही उम्र भर ,
अश्को का सैलाब फिर क्यों है ,
जब जिया न उसको कभी जी भर .........
शुभ रात्रि
,
No comments:
Post a Comment