गुरु .........क्यों
देवासुर संग्राम चल रहा था और देवताओ ने असुरों को मात दे दी थी पर कुछ असुर जब युद्ध स्थान से भागे तो इन्द्र सहित कुछ देवताओं ने उनका पीछा किया और असुर भागते हुए भार्गव के आश्रम में पहुंच गए उस समय भार्गव पत्नी अकेली थी और असुरों ने दौड़ कर उनके पैर पकड़ कर त्राहिमाम त्राहिमाम कह कर प्राणो की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे | शरणागत की रक्षा के भाव से भार्गव पीटीआई ने उनको अभय दान दे दिया पर जब देवता वह पहुंचे तो वो असुरो को आश्रम से बाहर निकालने की मांग करने लगे और दलील देने लगे कि भार्गव देवताओ के गुरु है तो उनकी पत्नी कैसे असुरों की सहायता कर सकती है पर भार्गव पत्नी असुरों को देने को तैयार नही थी |भार्गव पुत्र उसी समय अपनी शिक्षा पूरी करके घर वापस आ रहे थे और यह विचार कर रहे थे क़ि अब वो भी पिता की तरह देवताओ के गुरु के रूप में प्रतिष्ठित होंगे पर यही सब सोचते हुए जब वो आश्रम के नजदीक पहुंचे तो देखो देवता माँ से उची आवाज में बात कर रहे है | जब उन्होंने माँ से पूछा तो माँ ने साड़ी बात बताई और कहा की जब वो इन असुरों को अभयदान दे चुकी है तो कैसे देवताओ को दे सकती है | भार्गव पुत्र ने भी देवताओं से कहा कि जिन असुरों को माँ अबैदान दे चुकी है उनको छोड़ दीजिये पर देवता तैयार नहीं हुए | अपने ही सामने अपनी माँ का अपमान देख कर भार्गव पुत्र नाराज होकर देवताओ से युद्ध करने लगे और अंत में देवता को हरा कर आश्रम से खदेड़ दिया | असुर को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि देवताओं के गुरु का पुत्र उनके लिए लड़ा और उनकी जान बचायी और उन्होंने भर्गव पुत्र के पावँ पकड़ लिए और आग्रह करने लगे कि वो उनके गुरु बन जाये और अंततः भार्गव पुत्र ने उनकी बात मान ली और असुरो के गुरु शुक्राचार्य के रूप में प्रतिष्ठित हुए | क्या अब भी आप को बताना पड़ेगा क्यों आज भी असुर ऐसे गुरुओं को ढूढ़ रहे है जो उनके हर नारकीय कार्य में शुक्राचार्य बन कर उनकी रक्षा कर सके | शायद इसी लिए आअज गुरु का मान सम्मान सभी इतनी उचाई पर है कि कोई भी गुरु के साथ अकेले में मिलना ही नहीं चाहता | क्या आपने अपने गलत काम के लिए गुरु तलाश लिया है ???
देवासुर संग्राम चल रहा था और देवताओ ने असुरों को मात दे दी थी पर कुछ असुर जब युद्ध स्थान से भागे तो इन्द्र सहित कुछ देवताओं ने उनका पीछा किया और असुर भागते हुए भार्गव के आश्रम में पहुंच गए उस समय भार्गव पत्नी अकेली थी और असुरों ने दौड़ कर उनके पैर पकड़ कर त्राहिमाम त्राहिमाम कह कर प्राणो की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे | शरणागत की रक्षा के भाव से भार्गव पीटीआई ने उनको अभय दान दे दिया पर जब देवता वह पहुंचे तो वो असुरो को आश्रम से बाहर निकालने की मांग करने लगे और दलील देने लगे कि भार्गव देवताओ के गुरु है तो उनकी पत्नी कैसे असुरों की सहायता कर सकती है पर भार्गव पत्नी असुरों को देने को तैयार नही थी |भार्गव पुत्र उसी समय अपनी शिक्षा पूरी करके घर वापस आ रहे थे और यह विचार कर रहे थे क़ि अब वो भी पिता की तरह देवताओ के गुरु के रूप में प्रतिष्ठित होंगे पर यही सब सोचते हुए जब वो आश्रम के नजदीक पहुंचे तो देखो देवता माँ से उची आवाज में बात कर रहे है | जब उन्होंने माँ से पूछा तो माँ ने साड़ी बात बताई और कहा की जब वो इन असुरों को अभयदान दे चुकी है तो कैसे देवताओ को दे सकती है | भार्गव पुत्र ने भी देवताओं से कहा कि जिन असुरों को माँ अबैदान दे चुकी है उनको छोड़ दीजिये पर देवता तैयार नहीं हुए | अपने ही सामने अपनी माँ का अपमान देख कर भार्गव पुत्र नाराज होकर देवताओ से युद्ध करने लगे और अंत में देवता को हरा कर आश्रम से खदेड़ दिया | असुर को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि देवताओं के गुरु का पुत्र उनके लिए लड़ा और उनकी जान बचायी और उन्होंने भर्गव पुत्र के पावँ पकड़ लिए और आग्रह करने लगे कि वो उनके गुरु बन जाये और अंततः भार्गव पुत्र ने उनकी बात मान ली और असुरो के गुरु शुक्राचार्य के रूप में प्रतिष्ठित हुए | क्या अब भी आप को बताना पड़ेगा क्यों आज भी असुर ऐसे गुरुओं को ढूढ़ रहे है जो उनके हर नारकीय कार्य में शुक्राचार्य बन कर उनकी रक्षा कर सके | शायद इसी लिए आअज गुरु का मान सम्मान सभी इतनी उचाई पर है कि कोई भी गुरु के साथ अकेले में मिलना ही नहीं चाहता | क्या आपने अपने गलत काम के लिए गुरु तलाश लिया है ???
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