Tuesday 22 July 2014

देश प्रगति कर रहा है

देश लगातार विकास कर रहा है .....
जनजाति ......क्या इस शब्द से आप परिचित है ? नहीं तो चलिए मैं आपको बता देता हूँ जनजाति भारत के संविधान के अनुच्छेद ३४२ के अनुसार राष्ट्रपति जी द्वारा घोषित की जाती हैं पर एक विषय है मानव शास्त्र और उसके अनुसार जनजाति एक ऐसा समूह है जिसकी विशेष  वेशभूषा , बोली , व्यव्हार की एक विशेष रीति का पालन करने वाले लोग जो सामन्यतया सभयता या शहरी सस्कृति से दूर रहते है ये प्रकृति के ज्यादा करीब होते है यानि आपकी तरह तो बिलकुल नहीं होते !!!!!!!!!!!!!!!!!! आप सोच रहे होंगे कि मैं यह सब आपको क्यों बता रहा हूँ ? वो इस लिए क्योकि १९५० में जनजातियों की संख्या २१२ थी आउट वर्ष २०११ की सेन्सस के अनुसार इन समूहों कि संख्या बढ़ कर करीब ७०० हो गयी है | १९५० में इनकी कुल जनसँख्या थी करीब तीन करोड़ जो आज बढ़ कर १० करोड़ के आस पास  हो गयी है | उत्तर प्रदेश जहाँ १९५० में एक भी जनजाति नहीं थी वही १९६७ में ५ जनजातीय समूह पैदा हो गए और वर्ष २००२ के बाद बढ़ कर १५ हो गए | अब आपको ये बताने कि क्या जरूरत है कि देश में विकास का मतलब क्या है ? वैसे सरकार ने ये अच्छा तरीका निकला है भूखे प्यासे , और आधुनिकता  से दूर , फटेहाल लोगो को जनजाति कहकर देश में गरीबी हटाने का और बदले में मिलता क्या है संस्कृति पूर्ण विविधता से पूर्ण एक देश | अब तो मान लीजिये कि संस्कृति का जादू और समझ लीजिये कि कैसे हम दुनिया में उन्नति कर रहे है क्या सरकार आपको भी जनजाति घोषित करने जा रही है ? चलो कुछ प्रतिशत और उन्नति का ग्राफ बढ़ गया | जिन लोगो के पास कपडा न हो तो बल्ले बल्ले कह दीजिये ये आदमी जनजाति है और जो कंदमूल जड़ खा कर जिंदगी जी रहे हो कह दीजिये कि ये सांस्कृतिक उद्विकास के अवशेष है सरकार ने इनको विशेष दर्ज दिया है | दवा बनाने वाली विदेशी कंपनी के लिए ऐसी जनजातियों को खोजिए जिनमे चचेरे मौसेरे भाई बहन शादी करते हो आखिर अनुवांशिक रोगो की दवा बनाने के लिए कंपनी प्रयोग किन पर करेंगी ? क्या आप अभी भी यही मानते है कि देश प्रगति नहीं कर रहा है ? आखिर हम जनजाति को १९५० में २१२ समूहों से आज ७०० तक ले आये क्या ये प्रगति नहीं है क्या हमको ऐसी प्रगति पर नाज़ नहीं होना चाहिए ? आखिर इसी प्रगति के लिए ही तो हम सरकार बनाते है ? क्या आप ऐसी प्रगति के लिए संघर्ष कर रहे है ? तो आप धन्य है क्योकि आप देश के लिए ही तो सोच रहे है ? ( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

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