स से शं तक का सफर .....
वैसे मुझे हिंदी नहीं आती पर आपको आती है और इसी लिए दिमाग पर बिना जोर डाले बताइये की हिंदी वर्ण माला में पहले स आता है की श ? जी बिलकुल ठीक पहले स आता है तो पहले स का ही नाम लिया जायेगा ना ! अब चाहे वो स से संसार हो या साईं फिर शंकर जी ने यह विवाद क्यों किया वैसे भी शंकर तो भोले कहलाते है फिर क्या कलयुग का असर उन पर क्यों ? वैसे मैं अज्ञानी कुछ कह नहीं सकता पर बचपन से क्या आपने यह पढ़ा है की गुरु गोविन्द में गुरु इस लिए बड़ा है क्योकि उसने गोविन्द के बारे में बताया है तो गुरु की ही पूजा पहले होनी चाहिए तो फिर इतना बवाल क्यों | देखिये हम तो ठहरे भेड़िया धसान यानि अगर एक भेड़ कुँए में गिरी नही कि सब कूद गयी और हम तो यही बचपन से सुनते आये है कि भारत को अखंड रखने में शंकराचार्य ने चार मठों या धाम की स्थापना की और इसी लिए कोई शंराचार्य को धर्मगुरु से ज्यादा राष्ट्र निर्माता के रूप में ज्यादा समझता है लेकिन अगर शंकराचार्य के उन चमत्कारी गुणों के बारे में बताया जाता जैसे कैसे उन्होंने अपनी माँ के लिए माँ गंगा को घर के दरवाजे पर लेकर खड़ा कर दिया और कैसे उन्होंने सारे आवंला के पेड़ को सोने के आवंला का बना दिया तो इतना पक्का है कि अगर शंकराचार्य जी को ऐसे गुरु साधु के रूप में प्रस्तुत किया गया होता तो कोई कारण नहीं था कि हर मंदिर , मजार , चर्च में अपनी मनोकामना के लिए चक्कर लगाने वालो ने शंकरचर्या के पीठो पर सर पटक पटक का उसे खून और पैसे से भर दिया होता पर जैसा प्रदर्शन वैसा सुदर्शन वरना जिस देश में गली के साधु बाबा को लोग चढ़ावा चढ़ा देते है वो भला शंकराचार्य को कैसे भूलते और यही कारण है शंकराचार्य पीछे है साईं से और साईं हिन्दू हो या मुसलमान , हिन्दू दर्शन तो आत्मा में विश्वास रखता है फिर साईं के धर्म पर चर्चा ? क्या हम अपने ही धर्म को खुद नहीं भूल रहे है | साईं का दरसन सिर्फ इतना है कि आप एक छोटे से गॉव में रहकर भी मानवता के लिए कार्य करके वह पहुंच सकते है जिसके लिए कृष्णा ने गीता में धर्म अधर्म को समझते हुए अपने जन्म का मर्म अर्जुन को समझाया था साईं मांस खाते थे पर राम कृष्ण परम हंस भी माँ काली को मांस का भोग लगते थे | कितना अजीब है कि एक तरफ गोस्वामी तुलसी दास कहते है जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तेहि तैसी तो क्या हमारी भावना दूषित है या फिर हम ही ?(इस व्यंग्य को सत्य के अर्थ में देखिये )
वैसे मुझे हिंदी नहीं आती पर आपको आती है और इसी लिए दिमाग पर बिना जोर डाले बताइये की हिंदी वर्ण माला में पहले स आता है की श ? जी बिलकुल ठीक पहले स आता है तो पहले स का ही नाम लिया जायेगा ना ! अब चाहे वो स से संसार हो या साईं फिर शंकर जी ने यह विवाद क्यों किया वैसे भी शंकर तो भोले कहलाते है फिर क्या कलयुग का असर उन पर क्यों ? वैसे मैं अज्ञानी कुछ कह नहीं सकता पर बचपन से क्या आपने यह पढ़ा है की गुरु गोविन्द में गुरु इस लिए बड़ा है क्योकि उसने गोविन्द के बारे में बताया है तो गुरु की ही पूजा पहले होनी चाहिए तो फिर इतना बवाल क्यों | देखिये हम तो ठहरे भेड़िया धसान यानि अगर एक भेड़ कुँए में गिरी नही कि सब कूद गयी और हम तो यही बचपन से सुनते आये है कि भारत को अखंड रखने में शंकराचार्य ने चार मठों या धाम की स्थापना की और इसी लिए कोई शंराचार्य को धर्मगुरु से ज्यादा राष्ट्र निर्माता के रूप में ज्यादा समझता है लेकिन अगर शंकराचार्य के उन चमत्कारी गुणों के बारे में बताया जाता जैसे कैसे उन्होंने अपनी माँ के लिए माँ गंगा को घर के दरवाजे पर लेकर खड़ा कर दिया और कैसे उन्होंने सारे आवंला के पेड़ को सोने के आवंला का बना दिया तो इतना पक्का है कि अगर शंकराचार्य जी को ऐसे गुरु साधु के रूप में प्रस्तुत किया गया होता तो कोई कारण नहीं था कि हर मंदिर , मजार , चर्च में अपनी मनोकामना के लिए चक्कर लगाने वालो ने शंकरचर्या के पीठो पर सर पटक पटक का उसे खून और पैसे से भर दिया होता पर जैसा प्रदर्शन वैसा सुदर्शन वरना जिस देश में गली के साधु बाबा को लोग चढ़ावा चढ़ा देते है वो भला शंकराचार्य को कैसे भूलते और यही कारण है शंकराचार्य पीछे है साईं से और साईं हिन्दू हो या मुसलमान , हिन्दू दर्शन तो आत्मा में विश्वास रखता है फिर साईं के धर्म पर चर्चा ? क्या हम अपने ही धर्म को खुद नहीं भूल रहे है | साईं का दरसन सिर्फ इतना है कि आप एक छोटे से गॉव में रहकर भी मानवता के लिए कार्य करके वह पहुंच सकते है जिसके लिए कृष्णा ने गीता में धर्म अधर्म को समझते हुए अपने जन्म का मर्म अर्जुन को समझाया था साईं मांस खाते थे पर राम कृष्ण परम हंस भी माँ काली को मांस का भोग लगते थे | कितना अजीब है कि एक तरफ गोस्वामी तुलसी दास कहते है जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तेहि तैसी तो क्या हमारी भावना दूषित है या फिर हम ही ?(इस व्यंग्य को सत्य के अर्थ में देखिये )
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