Wednesday 23 July 2014

ना ................री

ना .....................री
बचपन से नाग पंचमी के दिन यही देखा कि लड़कियां घर की बुरी आत्माओ को प्रतीक बना कर बहियों के साथ चौराहे तक जाती है और लड़कियां वह उसे डाल देती है जिसे लड़के अपने साथ लए डंडे से पीटते है यानि  घर की बुरी आत्मा सिर्फ लड़की पर सवार होकर ही बाहर जा सकती है अब अगर घर में आई किसी भी समस्या के लिए पुरुष औरतो पर अपना गुस्सा निकालते है या पीट देते है तो ठीक ही तो है आखिर जो सीखा है वही तो करेंगे | खैर आपको मेरी बात ना मानने की आदत है तो चलिए कुछ और सुन लीजिये वर्ष १६०० तक दुनिया में कोई नहीं जनता था की शुक्राणु का मतलब क्या होता है और १६०० में इंग्लॅण्ड के हैम नामक व्यक्ति ने इसकी खोज की पर इस से पहले यूरोपीय देशो में डायन प्रथा जोर पकड़ चुकी थी क्योकि माना जाता था कि जो लड़की अपने शरीर से विपरीत शरीर वाले ( लड़के ) को जन्म दे सकती है उसमे जरूर कोई अद्भुत शक्ति होती है और इसी लिए जब भी कुछ उच्च नीच होती थी तो लड़की को डायन कह कर उसका शोषण होता था | आज भी पूरे विश्व में २५०० महिलाये डायन कह कर मार दी जाती है इस देश में ४२६ मारी जाती है | अब अगर आज लड़कियों कि दुर्दशा हो रही है तो इस में बुराई क्या है ? शरीर उनका , गर्भ उनका और पैदा किया लड़की के बजाये लड़के को | जान जब किसी ने भी अपने घर(गर्भ) में किसी को पैठ दी है तो बेडा गर्क हुआ है क्या आपको अपने देश का हाल नहीं पता , जिसको देखो अतिथि कह कर पहले पनाह दी फिर उसी की गुलामी की | अब जब खुद गर्भ से लड़का पैदा करने का शौक पाला है तो भुगतिये वैसे भी लड़की को लड़की पैदा करना कभी गौरव का विषय लगा ही नहीं और सुना है खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है यानि दोनों एक जैसे रंग में होते है जब दोनों खरबूजे ( जब लड़की के गर्भ में लड़का हो ) है ही नहीं तो रंग क्या एक जैसा होगा तो लीजिये बदरंग होने का मजा |पूरे पृथ्वी पर पाये जाने वाले हर जीव जंतु में मादा के लिए नर आपस में लड़ाई लड़ते है और मादा को कोई हानि नहीं होती है जो नर जीता मादा उसकी पर हम तो मनुष्य है ना कुछ तो अलग होना चाहिए यहाँ पर पुरुषो को कुछ नहीं होता मारी जाती है सिर्फ और सिर्फ नारी आखिर संस्कृति का ये मजा तो हम सबको मिलना ही चाहिए ! लीजिये प्रोफ़ेसर साहब ने अपनी पत्नी को अपनी माशुका के सामने मार मार कर घर से निकाल दिया पर इसमें परेशान होने वाली क्या बात है आखिर मर्द है इधर उधर मुहं नहीं मारेंगे तो किस बात के मर्द | और इतिहास में तो पत्नियों से ज्यादा प्रेमिकाओं का ही बोलबाला रहा है तो भला कोई क्यों पीछे रहे !पत्नी मार खाए तो खाए काम से काम प्रेमिका बन कर टी वी अखबार में तो छा गयी | वैसे देश पद , पैसा के लिए कब नहीं औरत को बंधुआ मजदुर बनाया गया लेकिन औरत अपने पैरो पर खड़ी तो हो गयी वो तो भला हो चाणक्य का जिन्होंने विष कन्या का चलन चला कर दुनिया को ये तो बता दिया कि औरत कितनी जहरीली हो सकती है अब भला पुरुष ऐसी महिला का मर्दन क्यों ना करें और लीजिये आपके समर्थन में भतृहरि भी आ गए , वो भी औअर्ट के मर्दन के लिए वकालत कर रहे है | क्या इतने उदाहरण काफी नहीं है तो लीजिये कबीर को सुन लीजिये जिस नारी की छाया पड़ने से नाग अँधा हो जाता है , कबीर कहते है उन पुरुषो की क्या कहे जो हमेशा नारी के साथ रहते है अब ऐसे अंधे पुरष क्या जाने कि कि औरत के साथ वो क्या कर रहे है | खैर आप जैसे आधुनिक लोग ऐसी बात सुन कर क्यों गभीर होंगे मत होइए लेकिन सांप आपके सामने निकला नहीं कि सब लाठी लेकर दौड़ पड़े | रात में एक औरत  भी सड़क पर निकल पड़ी क्या हुआ सुबह मारी पायी गयी क्या अब भी बताना शेष है कि बिल से निकली नारी को समाज क्या समझ रहा है | मैंने सोचा किसी नारी से ही पूछते है तो बोली ना ........री  जिसका आरम्भ ही नकारात्मक  है उसके जीवन में सकारत्मक सोचना !!!!!!!!! लेकिन आपने तो औरत कि तारीफ करके ही ??????( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

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