अखिल भारतीय अधिकार संगठन के केंद्रीय ऑफिस में ज्यादा तर काम रत्रि १२ बजे तक चलता ही रहता है औत इसी लिए ज्यादा तर लोग अपनी समस्या भी बिना घडी देखे लेकर चले आते है पर मैं यह सोच कर उनका स्वागत करता हूँ क्योकि अगर उन्हें ज्यादा दर्द न होता तो वह इतनी रात में क्यों आकर आपको परेशां करते , खैर कल रात के करीब १०.५० हो चूका था और मैं अपना सारा काम समेत रहा था कि किसी ने बेल बजाई ...मैं खोला तो देखा एक जन ने वाले खड़े है और मुझे देखे ही बोले कि आपको डिस्टर्ब किया इसके लिए क्षमा पर मेरा मिलना जरुरी था इस लिए इस समय आया हूँ क्योकि आपसे दिन में मुलाकात हो ही नही पाती है | मैंने कहा कि कोई बात नही अखिल भारतीय अधिकार संगठन बना ही इसी लिए है कि जब आपको सब तरफ अँधेरा दिखाई दे तो आप उसकी तरफ आशा भरी नजरो से देखे और यह कहते हुए मैंने उन्हें अंदर बुलाया , बैठाया | पहले वह श्री अखिलेश यादव मुख्या मंत्री की बात करते रहे क्यों कि उन्हें पता है कि मैं उनको पसंद करता हूँ पर जब मैंने उन्हें टोक कर आने का कारण इतनी रात में पूछा तो बोले कि आप तो जानते ही है कि मेरी पत्नी भी सरकारी नौकरी में है और व अपने माँ के साथ रहती है क्योकि उसकी तबियत ठीक नही है और मेरे ससुराल वाले मानते है कि मई ठीक से इलाज नही करा पाउँगा ( इसी हस्तक्षेप के कारण ही कितनी शादिया टूटने के कगार पर है भारत में , पहले लड़की वाले शादी करते है फिर पानी लड़की के जीवन में इतना दखल कर देते है कि शादी का मतलब ही शुन्य हो जाता है ) पर मैंने कुछ नही कहा लेकिन अभी मुझे पता चला है कि मेरी पत्नी कि दोनों किडनी ख़राब (८०%) हो चुकी है और ख़राब हुई नही है बल्कि उनके यह का यह खानदानी रोग है जिसमे किडनी सिकुड़ जाती है और आदमी मर जाता है | उन्होंने कहा कि मेरी पत्नी के पिता कि मृत्यु भी इसी कारण हुई थी | मेरे साले की भी किडनी एक है ही नही और दूसरी प्रभावित है | मई अपनी पत्नी से मिलना चाहता हूँ पर मिलने नही देते और मेरी एक छोटी सी बेटी है उस से भी नही मिलने नही देते | जब ससुराल जाता भी हूँ तो दरवाजे पर ही गली गलुज़ होने लगती है और मेरी सास यही चिल्लाती है की तुमने मेरी बेटी का जीवन बर्बाद कर दिया , उसे मार डाला जब की यह बीमारी उनके यह की खानदानी है और शादी से पहले उन लोगो ने मुझ से यह सा बात छिपाई बल्कि आज तक मुझे नही जानने नही दिया गया है की मेरी पत्नी का इलाज कौन और कहा पिछले ४ साल से कर रहा है ?????? यह कह कर वह चुप हो गए पर तुरंत ही बोले कि कही झूठे केस में तो नही फसा दिया जाऊंगा ???? क्या मै अपनी बेटी से नही मिल सकता ??????? क्या उन लोगो के खिलाफ कुछ हो सकता है जिन्होंने गलत शादी करके मेरी जिन्दगी बर्बाद कर दी ?????????? मैं यूनकी साडी बात सुन कर पूछा कि आपकी पत्नी क्या कहती है ???? वह बोले कि वह तो नाराज होती है कि तुम सब लोग मेरे पाती को क्यों इतना भला बुरा कहते हो ????? मुझे तो लगता है कि मेरे ससुराल वाले मेरी पत्नी कि कमी पर नजर लगाये है क्यों कि मै तो कुछ लेता नही और वह लोग भी जानते है कि मेरी पत्नी मर जाएगी , इसी लिए वह अभी से प्लान कर रहे है कि किस तरह मुझे मरने के बाद कुछ न मिले और मेरी बेटी भी मुझे न मिले ?????????? मैंने कहा कि सब से पहले तो कोई बीमारी छिपा कर शादी होने की दशा में तलाक का प्राविधान है और जब आप की पाती आपकी तरफ है तो एक प्रार्थना पत्र पोलिस में दे दीजिये की ससुराल वाले मेरी पत्नी को बंधक बनाये है | यही नही आप रोज पत्नी से फ़ोन करके , मैसेज करके उनकी बीमारी का पूछा करिए | आप परेशां न हो आप एक रजिस्ट्री भेज कर उस डॉक्टर का नाम पता पूछिये जिस से आप की पत्नी का इलाज हो रहा है | इन सब से यह साबित कर सकते है की आप गलत नही थे बल्कि ससुराल वाले का व्यवहार ठीक नही था अपर यह भी यद् रखिये की आप जिस के लिए लड़ रहे है वह मरने के कगार पर है , उस से इस स्थिति में न तो तलाक लेना मानवीय कृत्य होगा और न ही झगडा करना | पर उन्होंने कहा की सब ठीक है पर अगर वह मर गई और मै फर्जी फस गया तो ?????? इस लिए मुझे अपना बचाव तो करना ही होगा | मैंने उन्हें एक प्रर्थन पत्र लिखने की सलाह दी जो पुलिस को भेजना था , मैसेज की सलाह दी पर इन सब के बीच यह भी समझाया की पत्नी की भावना इस दशा में आहत नही होनी चाहिए | मेरी बात और सलाह से वह काफी संतुष्ट हो गए और यह कहते हुए चले गए की अब वह काफी हल्का महसूस कर रहे है पर मै फिर भी यही सोच रहा था कि विवाह का सात जन्मो , स्वर्ग में जोड़ी बनती है , आदि साडी बाते इस देश में कहा खो गई अब तो सब शादी से ज्यादा इस बात के लिए परेशां है कि कही यह अनूठा रिश्ता उन्हें किसी परेशानी में फसा न दे और कानून के ज्ञान ने इस विवाह का जिस तरह सत्यानाश किया है उसमे एक पाती को अपनी मरती पत्नी से ज्यादा पाने को किसी केस में फसने से बचने कि चिंता ज्यादा दिखी और मरती पत्नी की माँ को भी अपनी बेटी से ज्यादा उसकी नौकरी का पैसा, अपनी नातिन पर अधिकार का नशा ज्यादा दिखा और इन सब के बीच इस देश में एक बीमार लड़की सिर्फ शादी के बाद भी मैयाके और ससुराल के झंझावातो के बीच मौत के इंतज़ार .................इसमें कौन सी संस्कृति दिखाई दे रही बताइयेगा जरुर .....डॉ आलोक चांत्टिया
Friday, 30 March 2012
Thursday, 29 March 2012
white clour crime
कहते है कि सामान्य आँखों से समाज में चल रहे अपराध दिखाई नही देता और आप उसे अपराध ख भी कैसे पाएंगे जब कि वह सब कुछ इस तरह किया जा रहाहो मानो आप ही की गलती के कारण आपका नुकसान हो रहा हो या फिर आप ही लापरवाह है | ऐसा ही कुछ मैंने अपने अध्ययन के लिए चुने गए लखनऊ विकास प्राधिकरण में पाया | एक आदमी इस लालच में कि एक दिन उसका भी माकन लखनऊ में सरकारी दरो पर होगा और वह वर्ष २००४ में एक योजना में आवेदन करता है और भाग्य वश उसका नाम भी आ जाता है | उसको हर तीन महीने पर करीब ५२००० रूपए की १० किश्त देनी थी और उसने देना शुरू किया जो फ़रवरी २००७ में पूरी हो गयी | अब बारी थी की वह आदमी अपने प्लाट का निबंधन कराके अपने लिए एक छोटा सा माकन बना ले क्यों की किराये से बेहतर है कि अपना मकान हो | जब भी उसने निबंधन के लिए बात की टी बताया गया कि अभी नही हो सकती क्यों कि कुछ तकनिकी मामला है पर इन सब में महंगाई और सभी चीजो के महंगे होने के कारण जो मकान उसको १ या २ लाख में बन सकता था वह वर्ष २०१२ तक में २० लाख में बनना मुश्किल हो गया पर यह हर्जाना कौन भरेगा , इस पर प्राधिकरण मौन है | कुछ निर्लज्ज अधिकारी और बाबु कह देते है कि आरे भाई जमीन भी तो महंगी हुई है पर उन अक्लमंदो से कौन कहे कि जिसे मकान बनाना है उसी जमीन पर , उसके लिखे लिए इस बात का क्या मतलब कि जमीन करोडो की हो गई है और यही नही इस बीच न जाने कितना किरय अमकन में लग गया वह अलग | खैर जन सुचना अधिकार अधिनियम जनता के लिए अमृत नही तो ओस की बूंद जरुर है जिस से कई बातो का खुलासा करना आसान होता है और यही हुआ इस तकनिकी से यह बात खुल कर सामने आई कि आज तक प्रदिकरण के पास जमीन ही नही थी और जब जमीन आ गई तो लीज प्लान नही बना था पर सूचना के कारण वह भी बन गया लेकिन इस बीच में २००७ से करीब ७ लाख रूपए पर ब्याज कितना हो गया यह आप खुद ही सोच ले यानि हर तरफ से उपभोक्ता का नुकसान चलता रहा और देरी के कारण निबंदहं पर लगने वाले स्टंप शुल्क का भी बोझ लगातार उपभोक्ता पर ही बढ़ता रहता है | यह सब चल ही रहा था कि एक सरकारी सूचना आई कि जिन लोगो ने आज तक ( यह नही लिखा गया कि सरकार की लापरवाही के कारण ) निबंधन नही कराया है वह लोग १ मार्च से ३१ मार्च के बीच निबंधन करा ले अन्यथा स्टंप शुल्क सिर्किल रेट पर लगेगा | शायद यह एक अच्छी खबर मानी जा सकती है और वह आदमी भी फिर दौड़ने लगा | पहले दल्लो ने यह कह कर कि जमीन बकवास है बिकवाने की कोशिश की पर अपनी पसीने की कमी भला कौन कौन बेचता है ?????वह से बच कर जब वह लिपिक महोदय के पास पंहुचा तो उन्होंने कहा कि होली के बाद आओ | उसे लगा कि भला आदमी मिल गया है काम हो जायेगा और उसने अपना मोबाइल नम्बर भी दे दिया कि आने कि कोई जरुरत नही है आप इसी से पूछ लीजियेगा | अब क्या था उसे भी लगा कि दुनिया अभी अच्छे लोगो से खाली नही हुई है और वह घर चला गया | होली आकर बीत गई पर जब भी व ह्फोने से पूछता एक ही जवाब मिलता ४ दिन बाद पूछियेगा और ऐसे करते करते २२ मार्च २०१२ आ गया अब उसके हाथ पैर फोलने लगे क्योकि ९ दिन ही ३१ मार्च में शेष थे और इसी लिए वह फिर सीधे उनसे मिला अपनी बात खी तो लिपिक महोदय ने फिर कहा परेशां क्यों है २६ तारिख को आपका काम देखूंगा | इस पर उसने कहा कि फिर निबंधन कब होगा तो वह हस कर कहने लगे कि यह आप जानो | उस आदमी को लगा कोइ वह किसी ऐसे गिरोह के साथ फसा है जो ऐसे ही बहकाते है पर उसका दिमाग काम कर गया उसने लौटे समय अपने मोबाइल से उन्ही लिपिक को साडी बातो का हवाला देते हुए एक मैसेज कर दिया और लिखा कि ३१ के बाद बढ़ी हुई रकम कौन अदा करेगा आप या फिर लखनऊ विकास प्राधिकरण ????????? कुछ ही देर में उनका फ़ोन आ गया कि आप ने मैसेज क्यों किया ??? उसने कहा कि जल्दी जायेंगे पर लिपिक ने कहा कि आप आइये आपका निबंधन होगा | वह फिर उनके पास पहुच गया और लिपिक ने फाइल निकाली और पूछना शुरू किया अंत में उसने कहा कि आपका प्लाट चुकी सड़क के किनारे है इस लिए आभी आपको ५३००० रूपए और जमा करने होंगे तो वह बोला कि आपने पहले क्यों नही बतया मानलीजिये किसी के पास इतने पैसे न ही तो ???????????? और फिर प्राधिकरण ने आज तक इसकी सूचना क्यों नही दी ????????क्या ये सब धांधली नही है ??????पर वह मोटी खाल का आदमी चुप रहा और कुछ देर बाद उस आदमी ने सारी जानकारी लेकर पैसा जमा करने कि बात खी तो लिपिक महोदय ने कहा कि आप ड्राफ्ट बनवा कर जमा कर दीजिये पर यह नही बताया कि ५०००० से ज्यादा कि रकम को पैन नंबर के साथ सीधे जमा किया जा सकता है और प्राधिकरण में उको बैंक की शाखा है भी | उस आदमी ने २७ मार्च को किसी तरह ड्राफ्ट बनवाया और फिर पहुचा तो लिपिक महोदय ने कहा कि जब ड्राफ्ट क्लेअर हो जाये गा तभी आपकी रजिस्ट्री हो सकती है , वह आदमी हताश हो गया अपर हरा नही उसने पूछा कितने दिन लगते है क्लेअर होने में तो उत्तर्मिला ३ दिन | आज २९ मार्च है अभी ड्राफ्ट क्लेअर नही है और ३० और ३१ को ही अंतिम कैंप लगना है उसके बाद कोई छूट नही | वह आदमी सचिव , अधिकरियो से मिला सब ने यही कहा कि जब पैसा प्राधिकार के अकाउंट में आ जायेगा तभी रजिस्ट्री होगी जबकि स्टेट बैंक से बने ड्राफ्ट को इस देश में क्यों संधिग्ध माना जा रहा है और किस स्तर का भर्ष्टाचार नकली ड्राफ्ट में भी आ गया है यह आसानी से समझा जा सकता है | उसने अधिकारिओ से कहा कि आपने अपने प्राधिकरण के बैंक के काउंटर पर क्यों नही लिखा रखा है कि ५०००० से ज्यादा कि रकम भी डिरेक्ट पैन नंबर के साथ जमा की जा सकती है पर इसका कोई सार्थक उत्तर देने के बजाये वह काम अधिक होने का बहाना करके बचते दिखाई देते है | यह है सफ़ेद पोश अपराध जिसमे लोग अपने पद के अनुरूप काम न करके जनता को ऐसी जगह ले जाकर खड़ा कर देते है झा या तो वह घुस का सहारा ले या फिर अपनी सम्पति के आर्थिक नुकसान को नंगी आँखों से होता हुआ देखते रहे पर ऐसा नही है ड्राफ्ट बनवाने के समय एक बैंक कर्मी ने बताया था की परेशां होने की कोई जरुरत नही मेरे ( बैंक कर्मी ) तो सरे कागज ही खो गए थे और मैंने सिर्फ २५००० रुपये दिए और आराम से रजिस्ट्री हो गई थी \ पिछले वर्षो में प्राधिकरण के बाबुओ के पास से करोडो की सम्पति बरामद हुई है पर यह सम्पति कहा से आई यह कहने की कोई जरुरत है ऊपर लिखी सच्ची कहानी सुनने के बाद जहा आज तक रजिस्ट्री २००७ से अर्झी पड़ी है क्या यह कहने की जरुरत है की इस देश में अपराध कैसे होते है ?????और आप कह भी नही सकते वह अपराध है क्योकि प्रदर्शन ऐसा होगा मानो वह आप द्वारा अपने मन से किया गया लापरवाही पूर्ण कार्य हो जिसके कारण आपका काम न हो पाया हो >>>>>>>>>क्या आप इस तरह के श्वेत अपराध के बारे में कुछ कहना चाहेंगे ?????????? डॉ आलोक चान्त्टिया
aurat ka sach
अखिल भारतीय अधिकार संगठन ने लुअक्टा के साथ मिल कर महिला डिग्री कॉलेज लखनऊ के प्रबंधतंत्र को बर्खास्त करने का किया समर्थन
आज जब की भारत में हर तरफ महिला के सशक्ति करण की वकालत हो रही है और महिला को भी लग रहा है कि सरकार की नीतिया और संविधान के निति निदेशक तत्व उसको पुरुष से के बराबर लाने में विश्व के किसी अन्य देश से ज्यादा बेहतर प्रयास कर रहे है तब महिला डिग्री कॉलेज लखनऊ के प्रबंध तंत्र की तनाशी इन सरे दावो को कोरा साबित कर रही है | महिला का जिस तरह का उत्पीडन पुरुष प्रभावी प्रबंध तंत्र कर रहा है | उस से खी भी महिला के गरिमा पूर्ण स्थिति का आभास नही हो पा रहा है | महिला टीचर्स को उनकी छुट्टियो को देने में आना कानी की जाती है और सरकार द्वारा दी जाने वाली अधिकृत बाल्य लालन पालन के २ वर्षीय अवकाश को भी नही दिया जाता है | अखिल भारतीय अधिकार संगठन की महा मानती और लुअक्टा की वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ अंशु केडिया ने कहा की भारत में औरत का इतना अपमान उत्तर प्रदेश की राजधानी में राज्य सरकार के सामने हो रहा है और फिर भी सरकार प्रबंध तंत्र के खिलाफ कुछ नही कर रही है | इसका मतलब क्या लगाया जाये क्या औरत की गरिमा का ख्याल प्रदेश सरकार को भी नही है ?????? लुअक्टा के अध्यक्ष डॉ मनोज पांडे ने कहा कि संविधान के अनुरूप ही महिलाओ के साथ व्यवहार किया जाये और वह महिला शिक्षक है न कि नौकरी करने वाली एक वेतन भोगी कर्मचारी जिनका शोषण प्रबंध तंत्र जिस तरह से चाहे करे | उन्हों ने चेतावनी दी कि अगर महिलाओ को सामान्य प्रस्थिति में काम नही करने दिया गया तो आने वाले १५ अप्रैल से शिक्षक परीक्षाओ का बहिष्कार करेंगे | अखिल बहर्तिये अधिकार संगठन के अध्यक्ष डॉ आलोक चान्त्टिया ने कहा कि यह दुःख का विषय है कि प्रदेश की राजधानी में संविधान के अनुच्छेद १४ का उल्लंघन हो रहा है और सरकार सब कुछ देख रही है | प्रबंध तन्त्र ने यह साबित करने की कोशिश की है कि आज भी पुरुष के आगे महिला दोयम दर्जे की है जो एक असंवैधानिक कृत्य है | उन्होंने कहा कि सरकार की यह निति है कि महिला कॉलेज में पुरुष शिक्षक नियुक्त नही किया जा सकता और किया भी नही जाता पर किन नियमो के अंतर्गत प्रबंधतंत्र महिला कॉलेज में पुरुष का हो सकता है ??? जिन बिन्दुओ की शंका करके पुरुष टीचर के नियुक्ति पर रोक है वही संशय पुरुष प्रबंध तंत्र में भी तो है इस लिए तुरंत ऐसे प्रबंध तंत्र को भंग कर दिया जाना चाहिए और महिला प्रधान प्रबंध तंत्र बनाया जाना चाहिए | ताकि समानता की सही व्याख्या की जा सके | यह दुखद है कि आज धरने के समय कॉलेज का गेट पर ताला लगा दिया गया था | जब कि संविधान हम सब को शांति पूर्वक किसी भी आन्दोलन या बैठक की अनुमति देता है | पुलिस लगी थी मनो हम सब शिक्षक नही कोई अराजकता फ़ैलाने वाले असामजिक तत्व हो | महिला कॉलेज में महिलाये स्वयं चाहती है की सरकार का हस्तक्षेप हो , आज आन्दोलन में करीब १०० से ज्यादा शिक्शो ने भाग लिया | यही सही स्थिति है भारत में महिलाओ की | क्या आप इसे सही मानते है ????????????? डॉ आलोक चान्टिया
आज जब की भारत में हर तरफ महिला के सशक्ति करण की वकालत हो रही है और महिला को भी लग रहा है कि सरकार की नीतिया और संविधान के निति निदेशक तत्व उसको पुरुष से के बराबर लाने में विश्व के किसी अन्य देश से ज्यादा बेहतर प्रयास कर रहे है तब महिला डिग्री कॉलेज लखनऊ के प्रबंध तंत्र की तनाशी इन सरे दावो को कोरा साबित कर रही है | महिला का जिस तरह का उत्पीडन पुरुष प्रभावी प्रबंध तंत्र कर रहा है | उस से खी भी महिला के गरिमा पूर्ण स्थिति का आभास नही हो पा रहा है | महिला टीचर्स को उनकी छुट्टियो को देने में आना कानी की जाती है और सरकार द्वारा दी जाने वाली अधिकृत बाल्य लालन पालन के २ वर्षीय अवकाश को भी नही दिया जाता है | अखिल भारतीय अधिकार संगठन की महा मानती और लुअक्टा की वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ अंशु केडिया ने कहा की भारत में औरत का इतना अपमान उत्तर प्रदेश की राजधानी में राज्य सरकार के सामने हो रहा है और फिर भी सरकार प्रबंध तंत्र के खिलाफ कुछ नही कर रही है | इसका मतलब क्या लगाया जाये क्या औरत की गरिमा का ख्याल प्रदेश सरकार को भी नही है ?????? लुअक्टा के अध्यक्ष डॉ मनोज पांडे ने कहा कि संविधान के अनुरूप ही महिलाओ के साथ व्यवहार किया जाये और वह महिला शिक्षक है न कि नौकरी करने वाली एक वेतन भोगी कर्मचारी जिनका शोषण प्रबंध तंत्र जिस तरह से चाहे करे | उन्हों ने चेतावनी दी कि अगर महिलाओ को सामान्य प्रस्थिति में काम नही करने दिया गया तो आने वाले १५ अप्रैल से शिक्षक परीक्षाओ का बहिष्कार करेंगे | अखिल बहर्तिये अधिकार संगठन के अध्यक्ष डॉ आलोक चान्त्टिया ने कहा कि यह दुःख का विषय है कि प्रदेश की राजधानी में संविधान के अनुच्छेद १४ का उल्लंघन हो रहा है और सरकार सब कुछ देख रही है | प्रबंध तन्त्र ने यह साबित करने की कोशिश की है कि आज भी पुरुष के आगे महिला दोयम दर्जे की है जो एक असंवैधानिक कृत्य है | उन्होंने कहा कि सरकार की यह निति है कि महिला कॉलेज में पुरुष शिक्षक नियुक्त नही किया जा सकता और किया भी नही जाता पर किन नियमो के अंतर्गत प्रबंधतंत्र महिला कॉलेज में पुरुष का हो सकता है ??? जिन बिन्दुओ की शंका करके पुरुष टीचर के नियुक्ति पर रोक है वही संशय पुरुष प्रबंध तंत्र में भी तो है इस लिए तुरंत ऐसे प्रबंध तंत्र को भंग कर दिया जाना चाहिए और महिला प्रधान प्रबंध तंत्र बनाया जाना चाहिए | ताकि समानता की सही व्याख्या की जा सके | यह दुखद है कि आज धरने के समय कॉलेज का गेट पर ताला लगा दिया गया था | जब कि संविधान हम सब को शांति पूर्वक किसी भी आन्दोलन या बैठक की अनुमति देता है | पुलिस लगी थी मनो हम सब शिक्षक नही कोई अराजकता फ़ैलाने वाले असामजिक तत्व हो | महिला कॉलेज में महिलाये स्वयं चाहती है की सरकार का हस्तक्षेप हो , आज आन्दोलन में करीब १०० से ज्यादा शिक्शो ने भाग लिया | यही सही स्थिति है भारत में महिलाओ की | क्या आप इसे सही मानते है ????????????? डॉ आलोक चान्टिया
Wednesday, 28 March 2012
Anna OR Balwant singh ????????????? Indian ?????????
अन्ना हजारे और बलवंत सिंह ?????????????????????????????? कौन भारतीय ज्यादा !!!!!!
आज और कल में फर्क इतना है कि कल संसद में अन्ना के लिए चीख पुकार मची थी और आज बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह के फांसी पर पंजाब सहित पूरा देश चिल्ला रहा था पर यक्ष प्रश्न यही है कि असली भारतीय कौन है ?????????????? अन्ना या बलवंत या फिर एक आम आदमी ज्यादा भारतीय ज्यादा है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! अन्ना एक ऐसा नाम जो पिछले एक साल में भ्रष्टाचार के खिलाफ हर लड़ने वाले के लिए एक ब्रांड है जिस के सहारे पूरा देश यह बताने में जुटा दिखाई देता है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ है पर सच क्या यही है ?????? अन्ना जानते है कि पढाना एक टीचर का फर्ज है पर विश्वास से उन्होंने कभी नही पूछा कि तुम्हारे कॉलेज के लड़के कहते है कि तुम पढ़ाते नही फिर देश का दर्द तुम क्या समझोगे ??????????????? यही नही उन्होंने कभी नही खा कि केजरीवाल तुम सरकार का पैसा रोक कर गलत कर रहे थे फिर तुम्हरे और टैक्स चुराने वालो में फर्क क्या है और तुम क्यों भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते हो ????????????तुम लखनऊ जाकर सिर्फ वातानुकूलित कमरों में बैठते हो तुम कैसे जन पाओगे कि एक किसान का दर्द क्या है ?????????? और किरण बेदी से कभी नही कहा कि एक ही यात्रा के लिए दो दो पैसा लेकर और उच्चा श्रेणी का किराया लेकर निम्न श्रेणी में यात्रा करना भी धोखाधडी ही है तो तू उस धोखे बाज से कैसे बेहतर हो जो देश में धोखा देकर चूना लगा रहा है ?????????? उन्हों ने खुद से नही पूछा कि गाँधी कि तरह वह सेकेंड क्लास में सफ़र क्यों नही कर सके ...उन्होंने हमेशा हवाई जहाज़ से सफ़र किया पर गाँधी कि तरह साधारण क्लास में सफ़र करके हर स्टेशन पर क्यों नही देश कि जनता से मिले ???????उन्हों ने कभी आम जनता के पत्रों का जवाब दिया ??उन्हों ने अपने आलवा कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ बैठने वाले अनशन करिओ को तरजीह दी ऐसा लगता है जैसे गलत तरीके से रमन मग्सेसे पुरस्काए पाए लोगो ने यह निशित किया कि भरष्टाचार की बात करके क्यों न अन्ना को भी यह पुरुस्कार दिला दिया जाये और इसके लिए सिर्फ देश की जनता को समय समय पर उकसाया गया | उकसाना शब्द इस लिए ख रहा हूँ क्यों की उन्होंने अनशन करिओ को कभी गंभीरता से नही लिया और न ही गलत दवाओ और चोरी की चादर के प्रकरण में उन्होंने कोई बोलने की जरुरत समझी| यानि सिर्फ अपने को उठाने का एक प्रयास और अगर आपको ऐसा न लगे तो बताइए की जब देश के ५ राज्यों में चुनाव हो रहे थे तो उन्होंने क्यों नही देश की जनता से कहा कि इस बार देश कि हर विधान सभा को इमानदारो से भर दो | उनको देश ने इतना समर्थन और सम्मान दिया था कि पूरा देश उन्हें यह भी करके दिखा देता पर उस समय यही दिखाने में पूरा समय बीता कि वह बीमार है , चल नही सकते पर लकवा तो नही मार गया था | जिस मीडिया ने उन्हें इतना स्थान दिया वह बीमार अन्ना की अपील भी दिखा देता और बीमार अन्ना की अपील जादू सा असर करती और देश का भविष्य सुधर जाता पर वह तब तक बीमार बने रहे जब तक चुनाव समाप्त नही हो गया और अब वह पूरी तरह ठीक है | क्या यह सिर्फ इतेफाक है ??????? और जब देश को बदलने का विकल्प शुन्य ( चुनाव और मत ) कीस्थिति में है तो वह फिर देश को समझने की कोशिश कर रहे है कि देश के नेता चोर है , भ्रष्टाचारी है | क्या यह सिर्फ गलत समय पर देश के लोगो कि कोमल भवन अको उकसाने का प्रयास नही है ?????? क्या भूमंडली करण के समय गांधीवाद को बाजारीकरण कि वास्तु बना कर गाँधी को बेचने का प्रयास भर नही है अन्ना का प्रयास ??????अगर ऐसा नही तो उन्होंने सही समय पर सही बात क्या नही उठाई ????????????? अन्ना जन गए कि इस देश में भावना उकसा कर कैसे अपने को महान बनाया जा सकता है | इस शोर गुल से इतर देश में इस लिए भी शोर मचाया जा रहा है कि बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह को क्यों फांसी दी जा रही है जब कि उच्चतम न्यायलय का आदेश आना शेष है और संविधान के अनुच्छेद ७२ के अंतर्गत राष्ट्रपति की क्षमा याचना आना भी शेष है पर यह भी जनन होगा कि ०१ अगस्त २००७ से एक आदमी जिन्दा जो मर जाना चाहिए था मैंने राष्ट्रपति जी के यह से सुचना भी मांगी कि आखिर कब तक हत्यारों को जिन्दा रख कर देश का पैसा और जनता से पैसा का दुरपयोग करने का प्राविधान है पर आज तक उसका उत्तर नही दिया गया है ?????????? जिस देश में हत्या करने के बाद कोर्ट और राष्ट्रपति की क्षमा याचना के प्राविधान के सहारे एक अपराधी २० २० साल जिन्दा रह सकता हो तो उस देश में अपराध बढ़ना स्वाभाविक है और आम जनता में यह सन्देश जा रहा है कि देश में अपराधियों को ज्यादा संरक्षण है और इसी लिए उन्हें किसी तरह जिन्दा रहने के लिए कम करना चाहिय क्योकि न्याय के नाम पर एक अपराधी तो वर्षो जिन्दा रह सकता है पर जिस का घर उजाड़ गया उसके लिए न्याय क्या हो , इस के लिए देस मौन है और यही कारण है कि विगर में अपराध बढ़ा है और लोगो में डर बढ़ा है और इसने ने भर्ष्टाचार को बढ़ाने में भी मदद की है \ इस लिए गलत करने वालो को तुरंत फांसी हो और यही कानून हर जगह मान्य होना चहिये क्यों कि एक तरफ देश की जनता को इस लिए उकसाया जा रहा है कि भर्ष्टाचार है और दूसरी तरफ एक हत्यारे को बचाने के लिए यह कहकर उकसाया जा रहा है कि देश में कानून का मतलब नही है जब कि देश कि सामान्य जनता को उकसाने के लिए दोनों को देश का गुनाहगार माना जाना चाहिए और जनता को स्वयं एक साफ़ सुथरा देश बनाना चाहिए न कि उन लोगो के साथ जाना चाहिए जो फिर से देश को बाटना चाहते है और सिर्फ इनाम, सम्मान पाने के लिए देश को गलत तरीके से गलत समय पर भटकाते है ..आप भी उतने ही संवेदन शील भारतीय है जितना वो अपने को कहकर भर्ष्टाचार करने वालो के साथ मिल कर देश से भर्ष्टाचार मिटने कि बात करते है ...........सोचिये और कुछ कहिये जरुर ........डॉ आलोक चांत्टिया
आज और कल में फर्क इतना है कि कल संसद में अन्ना के लिए चीख पुकार मची थी और आज बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह के फांसी पर पंजाब सहित पूरा देश चिल्ला रहा था पर यक्ष प्रश्न यही है कि असली भारतीय कौन है ?????????????? अन्ना या बलवंत या फिर एक आम आदमी ज्यादा भारतीय ज्यादा है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! अन्ना एक ऐसा नाम जो पिछले एक साल में भ्रष्टाचार के खिलाफ हर लड़ने वाले के लिए एक ब्रांड है जिस के सहारे पूरा देश यह बताने में जुटा दिखाई देता है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ है पर सच क्या यही है ?????? अन्ना जानते है कि पढाना एक टीचर का फर्ज है पर विश्वास से उन्होंने कभी नही पूछा कि तुम्हारे कॉलेज के लड़के कहते है कि तुम पढ़ाते नही फिर देश का दर्द तुम क्या समझोगे ??????????????? यही नही उन्होंने कभी नही खा कि केजरीवाल तुम सरकार का पैसा रोक कर गलत कर रहे थे फिर तुम्हरे और टैक्स चुराने वालो में फर्क क्या है और तुम क्यों भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते हो ????????????तुम लखनऊ जाकर सिर्फ वातानुकूलित कमरों में बैठते हो तुम कैसे जन पाओगे कि एक किसान का दर्द क्या है ?????????? और किरण बेदी से कभी नही कहा कि एक ही यात्रा के लिए दो दो पैसा लेकर और उच्चा श्रेणी का किराया लेकर निम्न श्रेणी में यात्रा करना भी धोखाधडी ही है तो तू उस धोखे बाज से कैसे बेहतर हो जो देश में धोखा देकर चूना लगा रहा है ?????????? उन्हों ने खुद से नही पूछा कि गाँधी कि तरह वह सेकेंड क्लास में सफ़र क्यों नही कर सके ...उन्होंने हमेशा हवाई जहाज़ से सफ़र किया पर गाँधी कि तरह साधारण क्लास में सफ़र करके हर स्टेशन पर क्यों नही देश कि जनता से मिले ???????उन्हों ने कभी आम जनता के पत्रों का जवाब दिया ??उन्हों ने अपने आलवा कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ बैठने वाले अनशन करिओ को तरजीह दी ऐसा लगता है जैसे गलत तरीके से रमन मग्सेसे पुरस्काए पाए लोगो ने यह निशित किया कि भरष्टाचार की बात करके क्यों न अन्ना को भी यह पुरुस्कार दिला दिया जाये और इसके लिए सिर्फ देश की जनता को समय समय पर उकसाया गया | उकसाना शब्द इस लिए ख रहा हूँ क्यों की उन्होंने अनशन करिओ को कभी गंभीरता से नही लिया और न ही गलत दवाओ और चोरी की चादर के प्रकरण में उन्होंने कोई बोलने की जरुरत समझी| यानि सिर्फ अपने को उठाने का एक प्रयास और अगर आपको ऐसा न लगे तो बताइए की जब देश के ५ राज्यों में चुनाव हो रहे थे तो उन्होंने क्यों नही देश की जनता से कहा कि इस बार देश कि हर विधान सभा को इमानदारो से भर दो | उनको देश ने इतना समर्थन और सम्मान दिया था कि पूरा देश उन्हें यह भी करके दिखा देता पर उस समय यही दिखाने में पूरा समय बीता कि वह बीमार है , चल नही सकते पर लकवा तो नही मार गया था | जिस मीडिया ने उन्हें इतना स्थान दिया वह बीमार अन्ना की अपील भी दिखा देता और बीमार अन्ना की अपील जादू सा असर करती और देश का भविष्य सुधर जाता पर वह तब तक बीमार बने रहे जब तक चुनाव समाप्त नही हो गया और अब वह पूरी तरह ठीक है | क्या यह सिर्फ इतेफाक है ??????? और जब देश को बदलने का विकल्प शुन्य ( चुनाव और मत ) कीस्थिति में है तो वह फिर देश को समझने की कोशिश कर रहे है कि देश के नेता चोर है , भ्रष्टाचारी है | क्या यह सिर्फ गलत समय पर देश के लोगो कि कोमल भवन अको उकसाने का प्रयास नही है ?????? क्या भूमंडली करण के समय गांधीवाद को बाजारीकरण कि वास्तु बना कर गाँधी को बेचने का प्रयास भर नही है अन्ना का प्रयास ??????अगर ऐसा नही तो उन्होंने सही समय पर सही बात क्या नही उठाई ????????????? अन्ना जन गए कि इस देश में भावना उकसा कर कैसे अपने को महान बनाया जा सकता है | इस शोर गुल से इतर देश में इस लिए भी शोर मचाया जा रहा है कि बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह को क्यों फांसी दी जा रही है जब कि उच्चतम न्यायलय का आदेश आना शेष है और संविधान के अनुच्छेद ७२ के अंतर्गत राष्ट्रपति की क्षमा याचना आना भी शेष है पर यह भी जनन होगा कि ०१ अगस्त २००७ से एक आदमी जिन्दा जो मर जाना चाहिए था मैंने राष्ट्रपति जी के यह से सुचना भी मांगी कि आखिर कब तक हत्यारों को जिन्दा रख कर देश का पैसा और जनता से पैसा का दुरपयोग करने का प्राविधान है पर आज तक उसका उत्तर नही दिया गया है ?????????? जिस देश में हत्या करने के बाद कोर्ट और राष्ट्रपति की क्षमा याचना के प्राविधान के सहारे एक अपराधी २० २० साल जिन्दा रह सकता हो तो उस देश में अपराध बढ़ना स्वाभाविक है और आम जनता में यह सन्देश जा रहा है कि देश में अपराधियों को ज्यादा संरक्षण है और इसी लिए उन्हें किसी तरह जिन्दा रहने के लिए कम करना चाहिय क्योकि न्याय के नाम पर एक अपराधी तो वर्षो जिन्दा रह सकता है पर जिस का घर उजाड़ गया उसके लिए न्याय क्या हो , इस के लिए देस मौन है और यही कारण है कि विगर में अपराध बढ़ा है और लोगो में डर बढ़ा है और इसने ने भर्ष्टाचार को बढ़ाने में भी मदद की है \ इस लिए गलत करने वालो को तुरंत फांसी हो और यही कानून हर जगह मान्य होना चहिये क्यों कि एक तरफ देश की जनता को इस लिए उकसाया जा रहा है कि भर्ष्टाचार है और दूसरी तरफ एक हत्यारे को बचाने के लिए यह कहकर उकसाया जा रहा है कि देश में कानून का मतलब नही है जब कि देश कि सामान्य जनता को उकसाने के लिए दोनों को देश का गुनाहगार माना जाना चाहिए और जनता को स्वयं एक साफ़ सुथरा देश बनाना चाहिए न कि उन लोगो के साथ जाना चाहिए जो फिर से देश को बाटना चाहते है और सिर्फ इनाम, सम्मान पाने के लिए देश को गलत तरीके से गलत समय पर भटकाते है ..आप भी उतने ही संवेदन शील भारतीय है जितना वो अपने को कहकर भर्ष्टाचार करने वालो के साथ मिल कर देश से भर्ष्टाचार मिटने कि बात करते है ...........सोचिये और कुछ कहिये जरुर ........डॉ आलोक चांत्टिया
kyaisa jivan ka sach
आज मै एक ऐसी बात महसूस कर रहा हूँ जो आप से बाटना चाहता हूँ क्योकि अखिल भारतीय अधिकार संगठन का उद्देश्य भी यही है कि समाज को संवेदन शील बनाया जाये ...कल रात कर्रें १०.१५ पर मेरे सबसे प्रिये विद्द्यार्थी का फ़ोन आया कि सर मेरी माँ का देहांत हो गया है और मुझे भी लगा कि माँ का देहांत हो जाना चाहिए था क्यों कि जिस तरह वह कैंसर से पीड़ित थी उसमे मौत से बेहतर कोई विकल हो ही नही सकता पर मनुष्य ने संस्कृति बना कर जो नातेदारी और मनुष्यता का बीजा रोपण किया वह किसी भी मनुष्य को ऐसे मरते नही देख सकता और जब भी ऐसी कोई बात आती है तो अपवाद को यदि छोड़ दिया जाये तो मनुष्य धन से ज्यादा अपनों को जिन्दा रखने को तरजीह देता है भले ही वह जनता हो कि उस बीमारी का कोई इलाज नही है और एक दिन उसे मरना ही है पर वह दह बहाना श्र्येश्कर समझता है और यही पर धन और रिश्ते के बीच का फर्क पता चलता है और यही मेरे पुत्र जैसे विद्द्यार्थी कि माँ के साथ हो रहा था ..पूरा घर आर्थिक परेशानियो से जूझ रहा था ..कर्ज कि मार से भी नही बच प् रहे थे पर सभी एक निशित परिणाम को जानने के बाद भी अपना सब कुछ लुटा देना चाहते थे और लुटाया | कल रात जब मुझे यह सुचना मिली तो मुझे दुःख जरुर हुआ पर वह दुःख एक माँ के जाने का अधिक था क्यों कि इस शब्द माँ कोअ कोई विकल्प मै इस दुनिया में नही पाता हूँ | खैर आज उनका अंतिम संस्कार हो गया मै फिर भी नही गया क्यों कि मै माँ को जलते नही देख सकता | करीब आज ३ बजे मैंने पाने पुत्र को फ़ोन किया और पूछा तो उसने बताया कि माँ का अंतिम संस्कार पंचग्नि देकर कर दिया गया है | मैंने पूछा ये क्या है ? तो बोला कि सर मेरी और पापा दोनों कि तबियत ( शुगर ) के कारण इतनी ख़राब है कि हम दोनों लोग क्रिया पर बैठ नही सकते और जब तक सनातन धर्म से सब कुछ होगा तो हमारी चचेरी बहन कि शादी की तिथि आ जाएगी और ऐसे कामो के बाद या बीच में शादी ठीक नही इस लिए माँ के देहांत के बाद की साडी क्रियाये अब शादी के बाद होंगी | मै साडी बात सुन कर हैरान था क्यों की मन यह सोच रहा था कि माँ जब तक जिन्दा थी तब तक इस घर अपना सब कुछ लुटा दिया पर जब माँ ( मनुष्य ) मर गई तो इन लोगो ने उस लड़की की शादी को तरजीह दी जो माँ की क्रिया के कारण बाधित हो सकती थी | तो क्या निष्कर्ष यह निकला की जिन्दा मनुष्य ज्यादा महत्वपूर्ण है?????????? ? या फिर संस्कृति में गतिशीलता को बाधित होने नही दिया जाता ?????????? या फिर संस्कृति का मतलब ही जिन्दा व्यक्तियों का क्रिया कलाप है ???????? माँ , बहन या कोई और मनुष्य का नाम महतवपूर्ण है या फिर एक मनुष्य को जिन्दा रखने का नम्म ही संस्कृति है ???????????? मनुष्य के जीवन में ख़ुशी के काम मृत्यु के काम से ज्यादा महत्व पूर्ण क्यों माने गए जब की व शरीर देवत्व को प्राप्त हुआ ?????ऐसे ही कई उलझनों के बीच मुझे लगा कि क्यों न आप से बात करके देखू कि आप क्या कहते है ?????अखिल भारतीय अधिकार संगठन आप को सुनना चाहता है .....डॉ आलोक चांत्टिया
kya sach hai ???????????????
आज मै एक ऐसी बात महसूस कर रहा हूँ जो आप से बाटना चाहता हूँ क्योकि अखिल भारतीय अधिकार संगठन का उद्देश्य भी यही है कि समाज को संवेदन शील बनाया जाये ...कल रात कर्रें १०.१५ पर मेरे सबसे प्रिये विद्द्यार्थी का फ़ोन आया कि सर मेरी माँ का देहांत हो गया है और मुझे भी लगा कि माँ का देहांत हो जाना चाहिए था क्यों कि जिस तरह वह कैंसर से पीड़ित थी उसमे मौत से बेहतर कोई विकल हो ही नही सकता पर मनुष्य ने संस्कृति बना कर जो नातेदारी और मनुष्यता का बीजा रोपण किया वह किसी भी मनुष्य को ऐसे मरते नही देख सकता और जब भी ऐसी कोई बात आती है तो अपवाद को यदि छोड़ दिया जाये तो मनुष्य धन से ज्यादा अपनों को जिन्दा रखने को तरजीह देता है भले ही वह जनता हो कि उस बीमारी का कोई इलाज नही है और एक दिन उसे मरना ही है पर वह दह बहाना श्र्येश्कर समझता है और यही पर धन और रिश्ते के बीच का फर्क पता चलता है और यही मेरे पुत्र जैसे विद्द्यार्थी कि माँ के साथ हो रहा था ..पूरा घर आर्थिक परेशानियो से जूझ रहा था ..कर्ज कि मार से भी नही बच प् रहे थे पर सभी एक निशित परिणाम को जानने के बाद भी अपना सब कुछ लुटा देना चाहते थे और लुटाया | कल रात जब मुझे यह सुचना मिली तो मुझे दुःख जरुर हुआ पर वह दुःख एक माँ के जाने का अधिक था क्यों कि इस शब्द माँ कोअ कोई विकल्प मै इस दुनिया में नही पाता हूँ | खैर आज उनका अंतिम संस्कार हो गया मै फिर भी नही गया क्यों कि मै माँ को जलते नही देख सकता | करीब आज ३ बजे मैंने पाने पुत्र को फ़ोन किया और पूछा तो उसने बताया कि माँ का अंतिम संस्कार पंचग्नि देकर कर दिया गया है | मैंने पूछा ये क्या है ? तो बोला कि सर मेरी और पापा दोनों कि तबियत ( शुगर ) के कारण इतनी ख़राब है कि हम दोनों लोग क्रिया पर बैठ नही सकते और जब तक सनातन धर्म से सब कुछ होगा तो हमारी चचेरी बहन कि शादी की तिथि आ जाएगी और ऐसे कामो के बाद या बीच में शादी ठीक नही इस लिए माँ के देहांत के बाद की साडी क्रियाये अब शादी के बाद होंगी | मै साडी बात सुन कर हैरान था क्यों की मन यह सोच रहा था कि माँ जब तक जिन्दा थी तब तक इस घर अपना सब कुछ लुटा दिया पर जब माँ ( मनुष्य ) मर गई तो इन लोगो ने उस लड़की की शादी को तरजीह दी जो माँ की क्रिया के कारण बाधित हो सकती थी | तो क्या निष्कर्ष यह निकला की जिन्दा मनुष्य ज्यादा महत्वपूर्ण है?????????? ? या फिर संस्कृति में गतिशीलता को बाधित होने नही दिया जाता ?????????? या फिर संस्कृति का मतलब ही जिन्दा व्यक्तियों का क्रिया कलाप है ???????? माँ , बहन या कोई और मनुष्य का नाम महतवपूर्ण है या फिर एक मनुष्य को जिन्दा रखने का नम्म ही संस्कृति है ???????????? मनुष्य के जीवन में ख़ुशी के काम मृत्यु के काम से ज्यादा महत्व पूर्ण क्यों माने गए जब की व शरीर देवत्व को प्राप्त हुआ ?????ऐसे ही कई उलझनों के बीच मुझे लगा कि क्यों न आप से बात करके देखू कि आप क्या कहते है ?????अखिल भारतीय अधिकार संगठन आप को सुनना चाहता है .....डॉ आलोक चांत्टिया
Cuture??????????????????
आज मै एक ऐसी बात महसूस कर रहा हूँ जो आप से बाटना चाहता हूँ क्योकि अखिल भारतीय अधिकार संगठन का उद्देश्य भी यही है कि समाज को संवेदन शील बनाया जाये ...कल रात कर्रें १०.१५ पर मेरे सबसे प्रिये विद्द्यार्थी का फ़ोन आया कि सर मेरी माँ का देहांत हो गया है और मुझे भी लगा कि माँ का देहांत हो जाना चाहिए था क्यों कि जिस तरह वह कैंसर से पीड़ित थी उसमे मौत से बेहतर कोई विकल हो ही नही सकता पर मनुष्य ने संस्कृति बना कर जो नातेदारी और मनुष्यता का बीजा रोपण किया वह किसी भी मनुष्य को ऐसे मरते नही देख सकता और जब भी ऐसी कोई बात आती है तो अपवाद को यदि छोड़ दिया जाये तो मनुष्य धन से ज्यादा अपनों को जिन्दा रखने को तरजीह देता है भले ही वह जनता हो कि उस बीमारी का कोई इलाज नही है और एक दिन उसे मरना ही है पर वह दह बहाना श्र्येश्कर समझता है और यही पर धन और रिश्ते के बीच का फर्क पता चलता है और यही मेरे पुत्र जैसे विद्द्यार्थी कि माँ के साथ हो रहा था ..पूरा घर आर्थिक परेशानियो से जूझ रहा था ..कर्ज कि मार से भी नही बच प् रहे थे पर सभी एक निशित परिणाम को जानने के बाद भी अपना सब कुछ लुटा देना चाहते थे और लुटाया | कल रात जब मुझे यह सुचना मिली तो मुझे दुःख जरुर हुआ पर वह दुःख एक माँ के जाने का अधिक था क्यों कि इस शब्द माँ कोअ कोई विकल्प मै इस दुनिया में नही पाता हूँ | खैर आज उनका अंतिम संस्कार हो गया मै फिर भी नही गया क्यों कि मै माँ को जलते नही देख सकता | करीब आज ३ बजे मैंने पाने पुत्र को फ़ोन किया और पूछा तो उसने बताया कि माँ का अंतिम संस्कार पंचग्नि देकर कर दिया गया है | मैंने पूछा ये क्या है ? तो बोला कि सर मेरी और पापा दोनों कि तबियत ( शुगर ) के कारण इतनी ख़राब है कि हम दोनों लोग क्रिया पर बैठ नही सकते और जब तक सनातन धर्म से सब कुछ होगा तो हमारी चचेरी बहन कि शादी की तिथि आ जाएगी और ऐसे कामो के बाद या बीच में शादी ठीक नही इस लिए माँ के देहांत के बाद की साडी क्रियाये अब शादी के बाद होंगी | मै साडी बात सुन कर हैरान था क्यों की मन यह सोच रहा था कि माँ जब तक जिन्दा थी तब तक इस घर अपना सब कुछ लुटा दिया पर जब माँ ( मनुष्य ) मर गई तो इन लोगो ने उस लड़की की शादी को तरजीह दी जो माँ की क्रिया के कारण बाधित हो सकती थी | तो क्या निष्कर्ष यह निकला की जिन्दा मनुष्य ज्यादा महत्वपूर्ण है?????????? ? या फिर संस्कृति में गतिशीलता को बाधित होने नही दिया जाता ?????????? या फिर संस्कृति का मतलब ही जिन्दा व्यक्तियों का क्रिया कलाप है ???????? माँ , बहन या कोई और मनुष्य का नाम महतवपूर्ण है या फिर एक मनुष्य को जिन्दा रखने का नम्म ही संस्कृति है ???????????? मनुष्य के जीवन में ख़ुशी के काम मृत्यु के काम से ज्यादा महत्व पूर्ण क्यों माने गए जब की व शरीर देवत्व को प्राप्त हुआ ?????ऐसे ही कई उलझनों के बीच मुझे लगा कि क्यों न आप से बात करके देखू कि आप क्या कहते है ?????अखिल भारतीय अधिकार संगठन आप को सुनना चाहता है .....डॉ आलोक चांत्टिया
India that is Bharat ????????????????
हम भारत के लोग ,
हम भारत के लोग |
जमीं नही इसको हम माने,
माँ कहने का मतलब जाने ,
बटने नही देंगे अब इसको ,
हम भारत के लोग, हम भारत के लोग .....
भाई बहन बन कर हम रहते ,
दुनिया को भी आपना कहते ,
रिश्तो के खातिर यहा पर ,
पल पल जीते है लोग ..........
हम भारत के लोग ..हम भारत के लोग ...
दुनिया पूरी परिवार सी लगती ,
संस्कृति अनूठी शान है रखती ,
मूल्यों की खातिर यहा पर ,
कट मरते है लोग .....
हम भारत के लोग ...हम भारत के लोग ...
कहा गए वो सब लोग ,
खो क्यों गए वो लोग ,
भटक गए हम सब आज यू,
क्यों भारत के लोग ...
हम भारत के लोग ...हम भारत के लोग ....
इस गीत को लिखते समय मेरे मन में सिर्फ यही ख्याल था कि हम किस भारत की बात करना चाहते है .....डॉ आलोक चांत्टिया
हम भारत के लोग |
जमीं नही इसको हम माने,
माँ कहने का मतलब जाने ,
बटने नही देंगे अब इसको ,
हम भारत के लोग, हम भारत के लोग .....
भाई बहन बन कर हम रहते ,
दुनिया को भी आपना कहते ,
रिश्तो के खातिर यहा पर ,
पल पल जीते है लोग ..........
हम भारत के लोग ..हम भारत के लोग ...
दुनिया पूरी परिवार सी लगती ,
संस्कृति अनूठी शान है रखती ,
मूल्यों की खातिर यहा पर ,
कट मरते है लोग .....
हम भारत के लोग ...हम भारत के लोग ...
कहा गए वो सब लोग ,
खो क्यों गए वो लोग ,
भटक गए हम सब आज यू,
क्यों भारत के लोग ...
हम भारत के लोग ...हम भारत के लोग ....
इस गीत को लिखते समय मेरे मन में सिर्फ यही ख्याल था कि हम किस भारत की बात करना चाहते है .....डॉ आलोक चांत्टिया
Monday, 26 March 2012
jivan ??????????????????
उम्र के दायरों से घर के दायरे घट गए ,
अपनों के साथ चल कर खुद में सिमट गए ,
न जाने क्यों दिल सुकून नही पाया घर में ,
किसी अनजाने के साथ कमरे में सिमट गए ...................क्या ऐसा नही है जीवन .....डॉ आलोक चांत्टिया
अपनों के साथ चल कर खुद में सिमट गए ,
न जाने क्यों दिल सुकून नही पाया घर में ,
किसी अनजाने के साथ कमरे में सिमट गए ...................क्या ऐसा नही है जीवन .....डॉ आलोक चांत्टिया
kya sach hai
मौत को लेकर चला जिन्दगी कहता रहा ,
उम्र बढती गयी मै जन्मदिन कहता रहा ,
लोग कहते मै आलोक हूँ पर रहता अँधेरा ,
कदम घर की तरफ पर दूर मै होता गया .........................हम जो दिखाना चाहते है वह होता नही और जो होता है वो हम जान पाते .....डॉ आलोक चांत्टिया
उम्र बढती गयी मै जन्मदिन कहता रहा ,
लोग कहते मै आलोक हूँ पर रहता अँधेरा ,
कदम घर की तरफ पर दूर मै होता गया .........................हम जो दिखाना चाहते है वह होता नही और जो होता है वो हम जान पाते .....डॉ आलोक चांत्टिया
Saturday, 24 March 2012
mera jivan
कैसे देखू बूंद में अपनी कहानी ,
रेत में आती नही नींद सुहानी ,
मेरी साँसों के लिए थपेड़े क्यों
अपने नही दोस्ती भी अनजानी .......................शहर में भागती दौड़ती जिन्दगी में कौन आपके साथ खड़ा होना चाहता है ....डॉ आलोक चांत्टिया
रेत में आती नही नींद सुहानी ,
मेरी साँसों के लिए थपेड़े क्यों
अपने नही दोस्ती भी अनजानी .......................शहर में भागती दौड़ती जिन्दगी में कौन आपके साथ खड़ा होना चाहता है ....डॉ आलोक चांत्टिया
suprabhat
मेरे हिस्से में राख सही ,
तेरे हिस्से में फूल मिले ,
पग पग पर कांटे हो मेरे ,
हर सुबह तुम्हे मुस्कान मिले ................आप सभी को एक खुबसूरत सुबह का नया आयाम मिले .....डॉ आलोक चांत्टिया
तेरे हिस्से में फूल मिले ,
पग पग पर कांटे हो मेरे ,
हर सुबह तुम्हे मुस्कान मिले ................आप सभी को एक खुबसूरत सुबह का नया आयाम मिले .....डॉ आलोक चांत्टिया
who is man
आदमी को आदमी, आदमी ने ही कहा,
जानवर को जानवर नाम भी उसी ने दिया ,
मार दुत्कार सह कर भी जानवर चुप रहा ,
आदमी कब मार दुत्कार खाकर जानवर रहा ........हम अपने को आदमी कह कर क्यों फक्र करते है
डॉ आलोक चांत्तिया
जानवर को जानवर नाम भी उसी ने दिया ,
मार दुत्कार सह कर भी जानवर चुप रहा ,
आदमी कब मार दुत्कार खाकर जानवर रहा ........हम अपने को आदमी कह कर क्यों फक्र करते है
डॉ आलोक चांत्तिया
saanp aur aadmi
क्या तुम भी अपने को आदमी मान बैठे ,
ये सांप क्यों चल रहे तुम इतने ऐंठे ऐंठे ,
माना कि आदमी तुम्हारे जहर से नही डरा,
पर तू आदमी को कांट के क्यों नही मरा............................क्या आदमी और सांप ने पानी फितरत बदल ली है ....डॉ आलोक चान्त्टिया
ये सांप क्यों चल रहे तुम इतने ऐंठे ऐंठे ,
माना कि आदमी तुम्हारे जहर से नही डरा,
पर तू आदमी को कांट के क्यों नही मरा............................क्या आदमी और सांप ने पानी फितरत बदल ली है ....डॉ आलोक चान्त्टिया
Friday, 23 March 2012
khud se prem
साँसों की बेवफाई जान भी उस से आशनाई है ,
फिर टूटे दिल पर अश्को बाढ़ क्यों अब आई है ,
जिन्दगी जब तुम्हारी ही खुद की ना हो पाई तो ,
दूसरो की जिन्दगी पे क्यों ये कैसी रुसवाई है ..........पहले खुद को समझ लो फिर दूसरो को अपना समझो ...डॉ आलोक चान्टिया
फिर टूटे दिल पर अश्को बाढ़ क्यों अब आई है ,
जिन्दगी जब तुम्हारी ही खुद की ना हो पाई तो ,
दूसरो की जिन्दगी पे क्यों ये कैसी रुसवाई है ..........पहले खुद को समझ लो फिर दूसरो को अपना समझो ...डॉ आलोक चान्टिया
dhokha
मिलती नही है जिन्दगी अब चार दिन की कही,
भरोसा तुम करके चले कही साँसों पर तो नही ,
आदमी से भी ज्यादा मोहब्बत दिखता है दिल ,
बेवफा बन मौन हो जाता है किसी दिन ये यही ..................पता नही हम जिन्दगी से क्या क्या उम्मीद लगा बैठते है ..डॉ आलोक चान्टिया
भरोसा तुम करके चले कही साँसों पर तो नही ,
आदमी से भी ज्यादा मोहब्बत दिखता है दिल ,
बेवफा बन मौन हो जाता है किसी दिन ये यही ..................पता नही हम जिन्दगी से क्या क्या उम्मीद लगा बैठते है ..डॉ आलोक चान्टिया
shat shat tumko naman hai nandan
मै भी कहा सो पाया कल पूरी रात ,
करता ही तो रहा सारी रात बात ,
भगत, सुखदेव राजगुरु सब सुनते रहे,
काश आलोक में शहीद होता उनके साथ ........अखिल भारतीय अधिकार संगठन उन सभी शहीद के आगे शत शत नमन करता है जिन के कारण हा स्वतंत्र भारत में जी रहे है और प्रजातंत्र का मतलब समझ पाए है ..........आइये हम सब फिर धर्म , जाति, लिंग , प्रजाति के आधार पर फिर झगडा करके यह प्रदर्शित करे कि हम शहीदों के बलिदान के प्रति कितने संवेदनशील है
करता ही तो रहा सारी रात बात ,
भगत, सुखदेव राजगुरु सब सुनते रहे,
काश आलोक में शहीद होता उनके साथ ........अखिल भारतीय अधिकार संगठन उन सभी शहीद के आगे शत शत नमन करता है जिन के कारण हा स्वतंत्र भारत में जी रहे है और प्रजातंत्र का मतलब समझ पाए है ..........आइये हम सब फिर धर्म , जाति, लिंग , प्रजाति के आधार पर फिर झगडा करके यह प्रदर्शित करे कि हम शहीदों के बलिदान के प्रति कितने संवेदनशील है
Thursday, 22 March 2012
REPORT OF NATIONAL SEMINAR ON DISCRIMINATION BY AIRO&IAOSS ON 21ST MARCH 2012 IN LUCKNOW
कल अखिल भारतीय अधिकार संगठन ओर इंडियन असोसिअसन ऑफ़ सोशल साइंटिस्टस ने विश्व प्रजातीय भेद भाव दिवस पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी " मानव , मानवता और भारत में भेद भाव " विषय पर आयोजित हुई | कार्यक्रम का आरम्भ दीप प्रज्ज्वलन से हुआ फिर संगोष्ठी के सचिव डॉ आलोक चान्टिया ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि आज कि संगोष्ठी में सबसे मत्वा पूर्ण मुद्दा यह है कि क्या भारत का संविधान स्वयं यह मान चूका है कि यह पर भेद भाव कभी नही ख़त्म होगा और इसी लिए उसके अनुच्छेद १५, १६, और १७ को मूल अधिकार में रखा गया है ????? उन्हों में सभी अतिथियों का स्वागत किया | संगोष्ठी कि निदेशक डॉ प्रीती मिश्रा ने संगोष्ठी कि अवधारण को स्पष्ट करते हुए बताया कि देश में कितने तरह के भेद भाव चल रहे है और इतिहास ,राजनीति, विधिक , सामाजिक , आर्थिक , धार्मिक आदि आधारों पर किस तरह का भाद भाव चल रहा है | लखनऊ के महा पौर प्रोफ़ेसर दिनेश शर्मा ने की और मुख्या वक्ता प्रोफ़ेसर शिव नन्दन मिश्रा जी थे अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में महा पौर ने खा की भारत में भाद भाव के लिए हमें भाषा को धयान में रखना होगा क्यों की धीरे धीरे पढ़े लिखे होने का पैमाना ही अंग्रेजी जन जा होता जा रहा है जिस के कारण हिंदी जानने वाले को हीन समझा जा रहा है और यही भेद भाव का कारण है | मुख्या वक्ता प्रोफ़ेसर मिश्रा ने कहा कि भेद भाव को अगर हम इतिहास के आईने में देखे तो जिस बौध धर्म हम इतना गर्व करते है और दलित उस धर्म को अपना धर्म मानते है उसी बौध धर्म में २४ तीर्थंकर क्षत्रिये थे न कि ब्रह्मण या वैश्य या शुद्र थे जीओ यह साबित करने के लिए काफी है कि भेद भाव तब भी था और आज तो आरक्षण नीति में तो भेद भाव ही है | आतिथियो को स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया | इसके बाद पहला और दूसरा तकनिकी सत्र प्रोफ़ेसर आर . के . त्रिपाठी की अध्यक्षता में आरम्भ हुआ, इस सत्र में करीब ३२ शोध पत्र पढ़े | दूसरे तकनिकी सत्र में २२ शोध पत्र पढ़े गए और उसकी अध्यक्षता प्रोफ़ेसर डी.पी . तिवारी जी द्वारा की गयी ,इस सत्र में एक शोध पत्र इराक के शोधार्थी द्वारा पढ़ा गया जिस में दोनों देशो में भाद भाव की तुलना की गयी | समापन सत्र की अध्यक्षता प्रोफ़ेसर कामेश्वर चौधरी ने की और उन्हों ने भेद भाव के सिद्धांत पर प्रकाश डाला.| अंत में संगोष्ठी सचिव डॉ आलोक चान्टिया द्वारा सबको धन्यवाद् ज्ञापन दिया गया उन्हों ने कहा की सर्वाभौमिक मानवाधिकार घोषणा पत्र के अनुच्छेद १ में कहा गया है कि प्रत्येक मनुष्य स्वतंत्र और समानता को लेकर पैदा होता है और सभी बुद्धि तथा अंतरात्मा से युक्त है , इस लिए सभी को एक दूसरे से भाई चारे की तरह व्यवहार करना चाहिए | इस अनुच्छेद से स्पष्ट है कि पूरे विश्व में भेद भाव है और इस लिए सभी में भाई चारे को फ़ैलाने की बात कही गयी है | उन्होंने सभी को धन्यवाद् देते हुए कहा की ७१ शोध पत्र का प्राप्त होना और ज्यादा तर का प्रस्तुत किया जाना इस बात का प्रमाण है कि सभी भेद भाव के निवारण के प्रति संवेदन शील है और यही इस सेमिनार का उद्देश्य था जो सफल है | उन्होंने डॉ के.के . शुक्ल , डॉ एस. सी . हजेला . डॉ रमेश प्रताप सिंह , डॉ रेनू श्रीवास्तव , डॉ सुधा मिश्रा , डॉ श्वेता मिश्रा , डॉ अंशु केडिया , डॉ महिमा देवी , श्री मति सोनिया श्रीवास्तव , डॉ श्वेता तिवारी , वंदना त्रिपाठी , रोमी यादव , डॉ ब्रिजेध कुमार मिश्रा , प्रोफ़ेसर डी . पी तिवारी , प्रोफ़ेसर कामेश्वर चौधरी , प्रोफ़ास्र शिव नन्दन मिश्रा , प्रोफ़ेसर दिनेश शर्मा , प्रोफ़ेसर आर . के. त्रिपाठी , डॉ राहुल पटेल , डॉ केया पाण्डेय , डॉ संतोष उपाध्याय , रविन्द्र केशव, डॉ रोहित मिश्रा , डॉ सौरभ पालीवाल , डॉ के .एन त्रिपाठी , डॉ राजेश तिवारी , डॉ नीता , डॉ रोली श्रीवास्तव , श्री विनीत , डॉ अनीस , डॉ प्रीती मिश्रा , श्री उमेश शुक्ल , अतुल कुमार सिंह , श्री संदीप कुमार सिंह , श्री विश्वनाथ , श्री विष्णु प्रताप , श्री प्रेम कुमार , श्री प्रन्शुल गौतम , और पंजी कारण संयोजक श्री शशांक उपाध्याय को धन्यवाद् दिया तथा यह भी सूचित किया कि शीघ्र ही अखिल भारतीय अधिकार संगठन एक अंतर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन करने वाला है और इसी के साथ एक दिवसीय संगोष्ठी समाप्त हो गई
Monday, 19 March 2012
who i am
मेरे दामन को पकड़ कर चले ही क्यों थे, ,
अपनी ऊँगली में हाथ जड़े ही क्यों थे ,
पैर होकर भी निहारते सूने दरवाजे को ,
अपने दिल से दूसरे में धडके ही क्यों थे??????????? बेसहारे होकर भी हम हर वक्त अपने को न जाने क्यों पूरा समझते है ?
अपनी ऊँगली में हाथ जड़े ही क्यों थे ,
पैर होकर भी निहारते सूने दरवाजे को ,
अपने दिल से दूसरे में धडके ही क्यों थे??????????? बेसहारे होकर भी हम हर वक्त अपने को न जाने क्यों पूरा समझते है ?
Sunday, 18 March 2012
kaisa hai jivan
जिन्दगी आज कैसा ये गीत गा रही है ,
शमशान में आरती उतारी जा रही है ,
क्यों है अब जनाजो में ठहाको की मस्ती ,
चार कंधो पे क्या सांस वापस आ रही है ...............क्या आप आपको ऐसा लगता है की हम सब भेद भाव के लिए जिम्मेदार है www.seminar2012.webs.com
शमशान में आरती उतारी जा रही है ,
क्यों है अब जनाजो में ठहाको की मस्ती ,
चार कंधो पे क्या सांस वापस आ रही है ...............क्या आप आपको ऐसा लगता है की हम सब भेद भाव के लिए जिम्मेदार है www.seminar2012.webs.com
Saturday, 17 March 2012
discrimination in life
रोये नही हम आप मेरी हसी को समझ बैठे ,
कब से खामोश है हम आप लोरी समझ बैठे ,
तन्हाई का जाला यू शहनाई सी मयस्सर ,,
सूनी आँखों में देख आप जज्बात समझ बैठे ..............आसान नही है किसी के जीवन को समझना
कब से खामोश है हम आप लोरी समझ बैठे ,
तन्हाई का जाला यू शहनाई सी मयस्सर ,,
सूनी आँखों में देख आप जज्बात समझ बैठे ..............आसान नही है किसी के जीवन को समझना
jindgi ka sach
जिन्दगी बड़ी बेतरतीब सी लगती है ,
साँसे अब उसकी नसीब सी लगती है ,
जाने कौन देख रहा मेरी आँखों से ,
हाथो में राख भी हसीन सी लगती है ....................
साँसे अब उसकी नसीब सी लगती है ,
जाने कौन देख रहा मेरी आँखों से ,
हाथो में राख भी हसीन सी लगती है ....................
what is life
Nagaland governor.Nikhil Kumar
congratulated the Asiatic Society for completing 228 years and said the
society, formed in 1784, has come to occupy a premier place not only in
the academic field but also in our daily life.
"The Asiatic Society has managed to take focus away from Europe and lay emphasis on Asian countries and the world today recognizes Asia as an economic superpower with developing countries like Japan, China and India in the forefront," the governor said at the two-day seminar on 'Society, Culture and Development: Emerging issues in Nagaland' at Kohima Science College, Jotsoma on Wednesday. The seminar has been organized by the Asiatic Society, Kolkata in collaboration with the anthropology department of Kohima Science College, Jotsoma.
He said the ability to think and the capacity to come up with new ideas is the strength of any society and a country's prosperity and development depends on the culture in the country.
Referring to Nagaland, the governor said, "Nagaland has a history of violence and no society can develop or march towards progress in a violent environment. But, Nagaland has been peaceful for the last few years and I hope the state will soon make its way towards progress, development and prosperity."
Further, the governor underlined various aspects like connectivity, infrastructure, development of rural areas, exploitation of natural resources, agriculture and industrialization, which need to be looked into for the state to develop further. He also urged the people, especially the youth, to aim high and asked them to change their mindset to usher in progressive development.
Additional chief secretary & development commissioner, Alemtemshi said culture, traditions and the existing social order create conditions that foster and hinder the development of the society. He added that developmental initiatives have far reaching impacts on the culture and traditions of the society, which could be negative or positive.
"The Asiatic Society has managed to take focus away from Europe and lay emphasis on Asian countries and the world today recognizes Asia as an economic superpower with developing countries like Japan, China and India in the forefront," the governor said at the two-day seminar on 'Society, Culture and Development: Emerging issues in Nagaland' at Kohima Science College, Jotsoma on Wednesday. The seminar has been organized by the Asiatic Society, Kolkata in collaboration with the anthropology department of Kohima Science College, Jotsoma.
He said the ability to think and the capacity to come up with new ideas is the strength of any society and a country's prosperity and development depends on the culture in the country.
Referring to Nagaland, the governor said, "Nagaland has a history of violence and no society can develop or march towards progress in a violent environment. But, Nagaland has been peaceful for the last few years and I hope the state will soon make its way towards progress, development and prosperity."
Further, the governor underlined various aspects like connectivity, infrastructure, development of rural areas, exploitation of natural resources, agriculture and industrialization, which need to be looked into for the state to develop further. He also urged the people, especially the youth, to aim high and asked them to change their mindset to usher in progressive development.
Additional chief secretary & development commissioner, Alemtemshi said culture, traditions and the existing social order create conditions that foster and hinder the development of the society. He added that developmental initiatives have far reaching impacts on the culture and traditions of the society, which could be negative or positive.
Thursday, 15 March 2012
discrimination in life
शमशान की आग से हिलते बदन को सुकून ,
जिन्दा होने का एहसास तो आलोक में मिला ,
शहर भर में बदनाम किस घर में करूं बसर ,
खामोश ही सही कई लाशो का साथ तो मिला
जिन्दा होने का एहसास तो आलोक में मिला ,
शहर भर में बदनाम किस घर में करूं बसर ,
खामोश ही सही कई लाशो का साथ तो मिला
discrimination in India
मानव , मानवता और भारत में भेद भाव
डॉ आलोक चान्टिया
संगोष्ठी सचिव , अध्यक्ष -अखिल भारतीय अधिकार संगठन एवं आल इंडियन एसोसिअसन ऑफ़ सोशल साइंटिस्टस
अवधारणात्मक संगोष्ठी लेख
जीवन एक ऐसा शब्द है जिसके प्रति पृथ्वी के सभी जीव जन्तुओ में एक आकर्षण रहता है और इसकी निरंतरता बनाये रखने के लिए सभी प्रयास भी करते रहते है , शायद इसी लिए मनुष्य भी एक प्राणी से ऊपर लेकर नही देखा जा सकता है परन्तु संस्कृति के कारण व अपनी स्थिति को थोडा बेहतर कहने की स्थिति में दिखाई देता है जिस पर भी एक वृहत विश्लेषण की आवश्यकता है / संगोष्ठी की विषय वास्तु के प्रकाश में सबसे पहले यह जानना अति आवश्यक है कि मानव को मानव कहा से माना जाये और इसके लिए जब हम उद्विकास के क्रम को देखते है तो मानव के साक्ष्य सबसे पहले आज से करीब ६० लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में मिलते है जिस वैज्ञानिक रूप से हम ऑस्ट्रालो पिथेकस कहते है जब कि पृथ्वी की आयु करीब ४५४ लाख वर्ष है जो यह बताने के लिए प्रयाप्त है कि मानव का जन्म पृथ्वी की काफी बाद की घटना है लेकिन आज तक मानवशाश्त्री इस बात पर सहमत नही है कि इसे मानव की श्रेणी में रखा जाये या नही क्योकि ऐसे प्रमाण है कि यह दो पैरो पर खड़ा होकर नही चल पाता था लेकिन होमो हैबिलिस के लिए प्रयाप्त प्रमाण है कि वह न सिर्फ दो पैरो पर खड़ा होकर चल सकता था बल्कि वह उपकरण निर्माता था और यह घटना आज से करीब ३० लाख साल पहले की है / यह वह समय था जब मानव पूरी तरह प्रकृति के सहारे था और प्रमाणों के आधार पर यह भी कहा जाता है कि ये अपने लोगो को भो मार कर कहा लेते थे ( नागा जनजाति में १९६२ के पूर्व तक ऐसी स्थिति थी कि जो ज्यादा सर काट कर लाता था उसकी शादी ज्यादा अच्छी होती थी औत उड़ीसा की बोडो जनजाति में काफी समय तक मानव को मार कर खाने की प्रथा थी ) / इस लिए मानव तो आज से तीस लाख साल पहले थे पर आज जिस मानव के ऊपर संगोष्ठी हो रही है वह राष्ट्र -राज्य के अंतर्गत रहने वाले मानव की बात ज्यादा है लेकिन यह जन न जरुरी है कि हमारी आधार रेखा कहा से है ? मानव के उद्विकास में जब नव पाषण काल आया तो मानव ने व्यवस्थित जीवन जीना शुरू कर दिया , यह वह समय था जब मनुष्य ने खेती करना आरम्भ कर दिया , जानवर को पालने लगा और घरो में रहने लगे , इस लिए यही वह स्थिति है जहा पर फली बार मनुष्यता या मानवता के साक्ष्य खोजे जा सकते है / यह एक सामान्य सी बात सी बात है कि मानव का बच्चा करीब २-३ साल तक असहाय अवस्था में रहता है और उसके साथ हर समय कोई न कोई सुरक्षा के लिए होना चाहिए और इसी साथ रहने की भावना ने स्व का निर्माण किया जिसने अंततः मानवता की आधारशिला रखी पर यह भी सिद्ध हो चूका है कि मनुष्य कोई स्वाभाविक लक्षण नही है बल्कि यह उपार्जित लक्षण है जो पूरी पर्थिवी पर सामान नही है / मानवता जैसे ही गुण अन्य जीव जन्तुओ में पाए जाते है और वह भी अपने समाज, समूह के लिए संवेदन शील रहते है पर मनुष्यता में सिर्फ यह फर्क आ जाता है कि मनुष्य अपने समूह के अलावा भी दुसरे समूह के लिए सोचता है / मनुष्य को समझने के लिए हमें जंगली भैस और पालतू भैस के व्यवहार को समझना होगा , जंगली भैस से हम वही व्यवहार नही पा सकते जो हम पालतू भैस से पा लेते है जो यह स्पष्ट करता है कि व्यवहार एक प्रक्रिया है जो अंत में मनुष्यता में बदल जाती है .
यह भी एक स्पष्ट तथ्य है कि संस्कृति के निर्माण के बाद ही मनुष्यता का स्पष्टीकरण ज्यादा हुआ पर हर संस्कृति की पानी वहां क्षमता है और सीमा भी है जिसने मनुष्य को पृथ्वी पर प्रवजन के लिए प्रेरित किया पर इन सब में एक मानव समूह दूसरे मानव समूह से वातावरण, पर्यावरण और भौगोलिक आधार पर भिन्न होता गया जिसने प्रजाति और न्र जातीय सकेंद्रिता को जन्म दिया और एक ही अनुवांशिक आधार को रखने के बाद भी मानव मानव से खान पान , रंग आदि के कारण भिन्न दिखाई देने लगा और मानव समूहों ने इसे ही भेद भाव का आधार बना लिया /
मानव का प्रवजन जब एक बार शुरू हुआ तो भी अनवरत चलता ही रहा और उसी अनुपात में भेद भाव भी बढ़ता रहा जिसका सबसे बड़ा परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध था जो प्रजातीय आधार पर लड़ा ही गया और जिस के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ की न सिर्फ स्थापना हुई बल्कि सार्वभौमिक मनवधिअर घोषणा पत्र भी १० दिसम्बर १९४८ को लाया गया / इसका अनुच्छेद एक में कहा गया है कि प्रत्येक मनुष्य स्वतंत्र रूप से जन्म लेता है और हर तरह से समान है और बुद्धि तथा अंतरात्मा से युक्त है , इसलिए सभी को भाई चाय का व्यवहार करना चाहिए , इसमें अप्रत्यक्ष रूप से मानवता की ही वकालत की गई है .
भारत में भेद भाव कोई नई घटना नही है क्योकि यहाँ की जाति व्यवस्था अपने आप में भेद भाव को बढ़ावा देती है और समानता का विरोध करती है पर राष्ट्र राज्य की संकल्पना में इस बात का ध्यान रखने की कोशिश की गई है की भेद भाव को काम किया जा सके / भारत के संविधान का प्रस्तावना " हम भात के लोग .............. में समानता का भाव तो लाता है पर इसके अनुच्छेद १५ से स्पष्ट है कि भारत में हर तरह के भेद भाव का प्रसार है जिसका निषेध इस अनुच्छेद में किया गया है लेकिन इसके बाद भी अनुच्छेद १७ भी भेद भाव की ही बात करता है जो जातीय भेद भाव को भारत में खोल कर रखता है ./ संविधान को गतिशीलता देने के लिए बहुत कानून बनाये गए जिसमे हिन्दू विवाह अधिनियम १९५५ का उल्लेख महत्व पूर्ण है क्यों कि इस अधिनियम से परम्परिक शादी को छूट दे रखी है जिसके कारण जौन सार बावर, टोडाऔर लुशाई जनजाति में आज भी बहु पति विवाह चल रहा है जो महिला के साथ भेद भाव से ज्यादा कुछ नही है / इसके अतिरिक्त संस्कृति के नाम बछेड, सांसी , बेडिया आदि जनजाति में वेश्या व्रती का प्रचाल भी भेद भाव का ही प्रमाण है /
भेद भाव को सबसे ज्यादा बढ़ावा मिला कर्यो के केंद्र, राज्य और समवर्ती सूचि में बाटने से और इस विभाजन ने सामान्य मानव को भेद भाव के साथ जीने को मजबूर कर दिया और भेद भाव का सबसे बढ़िया उदहारण मातृत्व लाभ के लिए मिलने वाला अवकाश है ....प्राइवेट , सरकारी ,अर्ध सरकारी में अलग अलग प्राविधान है जो भेद भाव ही है /
विधिक भेद भाव के अलावा भारत में शिक्षा ,जाति , धर्म , लिंग , वर्ग आदि आधारों पर भी भेद भाव है लेकिन इन सब से इतर यह जानने के लिए कि किस स्तर का भेद भाव इस देश में है , किसी भी व्यक्ति को अपना आंकलन करके यह देख न चाहिए कि वह किन लोग के साथ उठना , बैठना , खाना, रहना नही चाहता है और ऐसा वह क्यों करना चाहता है ????? वह किनके घर , पार्टी , शादी , संस्कार आदि में नही जाना चाहता है और क्यों नही चाहता है अगर इसका आधार उसे आर्थिक, जाति , धर्म आदि लगता है तो समन्ता से इतर उसके मन में एक भेद भाव चल रहा है जिसका निदान उसे स्वयं ही करके एक समरसता और समानता वाला समाज बनाना होगा और यही भेद भाव भारत के भेद भाव का मूल कारण है
डॉ आलोक चान्टिया
संगोष्ठी सचिव , अध्यक्ष -अखिल भारतीय अधिकार संगठन एवं आल इंडियन एसोसिअसन ऑफ़ सोशल साइंटिस्टस
अवधारणात्मक संगोष्ठी लेख
जीवन एक ऐसा शब्द है जिसके प्रति पृथ्वी के सभी जीव जन्तुओ में एक आकर्षण रहता है और इसकी निरंतरता बनाये रखने के लिए सभी प्रयास भी करते रहते है , शायद इसी लिए मनुष्य भी एक प्राणी से ऊपर लेकर नही देखा जा सकता है परन्तु संस्कृति के कारण व अपनी स्थिति को थोडा बेहतर कहने की स्थिति में दिखाई देता है जिस पर भी एक वृहत विश्लेषण की आवश्यकता है / संगोष्ठी की विषय वास्तु के प्रकाश में सबसे पहले यह जानना अति आवश्यक है कि मानव को मानव कहा से माना जाये और इसके लिए जब हम उद्विकास के क्रम को देखते है तो मानव के साक्ष्य सबसे पहले आज से करीब ६० लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में मिलते है जिस वैज्ञानिक रूप से हम ऑस्ट्रालो पिथेकस कहते है जब कि पृथ्वी की आयु करीब ४५४ लाख वर्ष है जो यह बताने के लिए प्रयाप्त है कि मानव का जन्म पृथ्वी की काफी बाद की घटना है लेकिन आज तक मानवशाश्त्री इस बात पर सहमत नही है कि इसे मानव की श्रेणी में रखा जाये या नही क्योकि ऐसे प्रमाण है कि यह दो पैरो पर खड़ा होकर नही चल पाता था लेकिन होमो हैबिलिस के लिए प्रयाप्त प्रमाण है कि वह न सिर्फ दो पैरो पर खड़ा होकर चल सकता था बल्कि वह उपकरण निर्माता था और यह घटना आज से करीब ३० लाख साल पहले की है / यह वह समय था जब मानव पूरी तरह प्रकृति के सहारे था और प्रमाणों के आधार पर यह भी कहा जाता है कि ये अपने लोगो को भो मार कर कहा लेते थे ( नागा जनजाति में १९६२ के पूर्व तक ऐसी स्थिति थी कि जो ज्यादा सर काट कर लाता था उसकी शादी ज्यादा अच्छी होती थी औत उड़ीसा की बोडो जनजाति में काफी समय तक मानव को मार कर खाने की प्रथा थी ) / इस लिए मानव तो आज से तीस लाख साल पहले थे पर आज जिस मानव के ऊपर संगोष्ठी हो रही है वह राष्ट्र -राज्य के अंतर्गत रहने वाले मानव की बात ज्यादा है लेकिन यह जन न जरुरी है कि हमारी आधार रेखा कहा से है ? मानव के उद्विकास में जब नव पाषण काल आया तो मानव ने व्यवस्थित जीवन जीना शुरू कर दिया , यह वह समय था जब मनुष्य ने खेती करना आरम्भ कर दिया , जानवर को पालने लगा और घरो में रहने लगे , इस लिए यही वह स्थिति है जहा पर फली बार मनुष्यता या मानवता के साक्ष्य खोजे जा सकते है / यह एक सामान्य सी बात सी बात है कि मानव का बच्चा करीब २-३ साल तक असहाय अवस्था में रहता है और उसके साथ हर समय कोई न कोई सुरक्षा के लिए होना चाहिए और इसी साथ रहने की भावना ने स्व का निर्माण किया जिसने अंततः मानवता की आधारशिला रखी पर यह भी सिद्ध हो चूका है कि मनुष्य कोई स्वाभाविक लक्षण नही है बल्कि यह उपार्जित लक्षण है जो पूरी पर्थिवी पर सामान नही है / मानवता जैसे ही गुण अन्य जीव जन्तुओ में पाए जाते है और वह भी अपने समाज, समूह के लिए संवेदन शील रहते है पर मनुष्यता में सिर्फ यह फर्क आ जाता है कि मनुष्य अपने समूह के अलावा भी दुसरे समूह के लिए सोचता है / मनुष्य को समझने के लिए हमें जंगली भैस और पालतू भैस के व्यवहार को समझना होगा , जंगली भैस से हम वही व्यवहार नही पा सकते जो हम पालतू भैस से पा लेते है जो यह स्पष्ट करता है कि व्यवहार एक प्रक्रिया है जो अंत में मनुष्यता में बदल जाती है .
यह भी एक स्पष्ट तथ्य है कि संस्कृति के निर्माण के बाद ही मनुष्यता का स्पष्टीकरण ज्यादा हुआ पर हर संस्कृति की पानी वहां क्षमता है और सीमा भी है जिसने मनुष्य को पृथ्वी पर प्रवजन के लिए प्रेरित किया पर इन सब में एक मानव समूह दूसरे मानव समूह से वातावरण, पर्यावरण और भौगोलिक आधार पर भिन्न होता गया जिसने प्रजाति और न्र जातीय सकेंद्रिता को जन्म दिया और एक ही अनुवांशिक आधार को रखने के बाद भी मानव मानव से खान पान , रंग आदि के कारण भिन्न दिखाई देने लगा और मानव समूहों ने इसे ही भेद भाव का आधार बना लिया /
मानव का प्रवजन जब एक बार शुरू हुआ तो भी अनवरत चलता ही रहा और उसी अनुपात में भेद भाव भी बढ़ता रहा जिसका सबसे बड़ा परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध था जो प्रजातीय आधार पर लड़ा ही गया और जिस के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ की न सिर्फ स्थापना हुई बल्कि सार्वभौमिक मनवधिअर घोषणा पत्र भी १० दिसम्बर १९४८ को लाया गया / इसका अनुच्छेद एक में कहा गया है कि प्रत्येक मनुष्य स्वतंत्र रूप से जन्म लेता है और हर तरह से समान है और बुद्धि तथा अंतरात्मा से युक्त है , इसलिए सभी को भाई चाय का व्यवहार करना चाहिए , इसमें अप्रत्यक्ष रूप से मानवता की ही वकालत की गई है .
भारत में भेद भाव कोई नई घटना नही है क्योकि यहाँ की जाति व्यवस्था अपने आप में भेद भाव को बढ़ावा देती है और समानता का विरोध करती है पर राष्ट्र राज्य की संकल्पना में इस बात का ध्यान रखने की कोशिश की गई है की भेद भाव को काम किया जा सके / भारत के संविधान का प्रस्तावना " हम भात के लोग .............. में समानता का भाव तो लाता है पर इसके अनुच्छेद १५ से स्पष्ट है कि भारत में हर तरह के भेद भाव का प्रसार है जिसका निषेध इस अनुच्छेद में किया गया है लेकिन इसके बाद भी अनुच्छेद १७ भी भेद भाव की ही बात करता है जो जातीय भेद भाव को भारत में खोल कर रखता है ./ संविधान को गतिशीलता देने के लिए बहुत कानून बनाये गए जिसमे हिन्दू विवाह अधिनियम १९५५ का उल्लेख महत्व पूर्ण है क्यों कि इस अधिनियम से परम्परिक शादी को छूट दे रखी है जिसके कारण जौन सार बावर, टोडाऔर लुशाई जनजाति में आज भी बहु पति विवाह चल रहा है जो महिला के साथ भेद भाव से ज्यादा कुछ नही है / इसके अतिरिक्त संस्कृति के नाम बछेड, सांसी , बेडिया आदि जनजाति में वेश्या व्रती का प्रचाल भी भेद भाव का ही प्रमाण है /
भेद भाव को सबसे ज्यादा बढ़ावा मिला कर्यो के केंद्र, राज्य और समवर्ती सूचि में बाटने से और इस विभाजन ने सामान्य मानव को भेद भाव के साथ जीने को मजबूर कर दिया और भेद भाव का सबसे बढ़िया उदहारण मातृत्व लाभ के लिए मिलने वाला अवकाश है ....प्राइवेट , सरकारी ,अर्ध सरकारी में अलग अलग प्राविधान है जो भेद भाव ही है /
विधिक भेद भाव के अलावा भारत में शिक्षा ,जाति , धर्म , लिंग , वर्ग आदि आधारों पर भी भेद भाव है लेकिन इन सब से इतर यह जानने के लिए कि किस स्तर का भेद भाव इस देश में है , किसी भी व्यक्ति को अपना आंकलन करके यह देख न चाहिए कि वह किन लोग के साथ उठना , बैठना , खाना, रहना नही चाहता है और ऐसा वह क्यों करना चाहता है ????? वह किनके घर , पार्टी , शादी , संस्कार आदि में नही जाना चाहता है और क्यों नही चाहता है अगर इसका आधार उसे आर्थिक, जाति , धर्म आदि लगता है तो समन्ता से इतर उसके मन में एक भेद भाव चल रहा है जिसका निदान उसे स्वयं ही करके एक समरसता और समानता वाला समाज बनाना होगा और यही भेद भाव भारत के भेद भाव का मूल कारण है
Wednesday, 14 March 2012
discrimination
हम भारत के लोग .........कहने को यह शब्द इतना सरल लगता है कि सभी आपको इस का मतलब समझा देंगे पर इतना सरल भी नही है क्यों कि सामान्य अर्थो में तो यह कहा जा सकता है कि जो भारत में रह रहे है पर जब इस शब्द के दर्शन में जायेंगे और भारत के संविधान के प्रस्तावना के आईने में इसे समझने की कोशिश करेंगे तब इस वाक्य के मतलब बदल जायेंगे क्योकि प्रस्तावना के साथ जब अनुच्छेद १५ , १६ और १७ को पढ़ा जायेगा तो तो स्वतः ही समझ में आ जायेगा कि भारत के लोगो की विविधता ने इस अर्थ को क्या रूप दिया है . शायद ही मुझे किसी गरंथ को बताने की जरूरत आपको पड़े क्योकि हम सब अपने आप में जन्म लेने के बाद एक गरंथ बन जाते है .ऐसा मै इस लिए कह रहा हूँ क्योकि जब मनुष्य जन्म लेता है तो वह पृथ्वी के अन्य प्राणियों की तरह ही एक जैविक प्राणी होता है लेकिन संस्कृति के दाएरे में आने के बाद वह इनता कुछ सेख लेता है कि जैविक प्राणी न जाने कहा छूट जाता है और उसका व्यवहार जैविक से इतर सांस्कृतिक हो जाता है और यही से जन्म लेती है भेद भाव की भावना क्यों कि जीवन इतना तुलनात्मक बना दिया जाता है कि जातीय सकेंद्रिता का भाव पैदा हो जाता है और नफरत का भाव आ जाता है . हो सकता है कि आपको मेरी बाते आप मानने को तैयार न हो पर आप स्वयं यह जानते है कि दुसरो के साथ आप अपना व्यवहार देते समय क्या सोचते है ...क्या आप सभी के साथ खाना , सोना , रहना , चलना , बात करना , विवाह करना , सम्बन्ध बनाना , पसंद करते है ????????? अगर नही तो भेद भाव को पड़ने की जरूरत ही नही है आप स्वयं जन सकते है कि किस स्तर तक हम एक दुसरे के प्रति भेद भाव करते है पर यह विश्लेषण है सांस्कृतिक स्तर पर लेकिन जब राष्ट्र राज्य के स्तर पर सोचते है तो भी भेद भाव की बात को कही पड़ने की जरूरत नही है क्यों कि सर्कार सभी के लिए सामान व्यवस्था लागु नही कर सकती है और यह वह आधारश अवस्था है जो कभी भी प्राप्त नही कि जा सकती , पुरे विश्व में कोई ऐसा देश नही है झा भेद भाव न हो बस उनका प्रकार भिन्न भिन्न है लेकिन जब भारत कि बात करते है तो संस्कृति के आदर पर उपजी विषमताओ के कर्ण सरकार को ऐसी नीतिया बनानी पड़ती है जो अंततः भेद भाव ही पैदा करती है जैसे जाति व्यवस्था ने शुरू में वर्ण व्यवस्था को जन्म से जोड़ कर जो जिसे कर रहा था , उसे ही स्थाई बना दिया पर जनसँख्या के विस्तार और अदुनिकता में पदार्थिक संस्कृति के समावेश ने इन लोगो के बीच ही इतनी विसंगतिया पैदा कर दी कि सर्कार की अवधारणा ने इसका समाधान आरक्षण में तलाशा जो आज भेद भाव के लिए सबसे गंभीर मुद्दा बन गया है और प्रजातान्त्रिक दाएरे में यह चुनावी आधार बन गया , जिस के कारण समरसता के भाव की जगह भेद भाव का इत बड़ा मकद जा फ़ैल गया है कि पहले से ज्यादा जातीय दूरी बढ़ी है .......पर इस तरह के भेद भाव का अंत क्या है ??????? क्या मानव मानव के बीच इतनी गहरी खाई बन जाएगी कि हम कबीलाई संस्कृति की ओर चले जायेंगे और एक दिन फिर आदिम सभ्यता की तरह हर वक्त लड़ते हुए गुजरेंगे ??????? या फिर जैविक और सांकृतिक मानव के बीच की दूरी मिटा कर हर व्यवस्था को सिर्फ जीने का एक तरीका भर मानेगे ?????? पर क्या यह सब करना इतना आसान होगा ???????? भेद भाव का अंतिम लक्ष्य क्या है ??????और इस से मानवता को क्या हासिल होगा ???????ऐसे तमाम बातो के लिए अखिल भारतीय अधिकार संगठन २१ मार्च को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन राइ उमा नाथ बलि प्रेक्षा गढ़ में आयोजित कर रहा है ..यदि आप संगठन के साथ कुछ कहना चाहते हो तो अप पंजी कारण करा के कह सकते है ......www.seminar2012.webs.com .......मानवता की बात करना सबसे दुरूह होता जा रहा है ....डॉ आलोक चान्टिया
Saturday, 10 March 2012
we people of india
आज होली को बीते दो दिन हो गए है पर देश में भेद भाव में कोई कमी नही आई है , आज भी भारत वही दिखाई देता है जहा पहले देखाई देता था ! इसी लिए अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपसे भेद भाव पर दो शब्द कहने आया है !आज सुबह जब मेरे यहा कुछ दलित ह्लोई मिलने गाँव से आये तो वह जमीन पर बैठने लगे पर मैंने उनसे कहा कि कुर्सी पर बैठिये तो उनमे से एक ने कहा ...नाही भैय्या कहा आप और कहा हम ...हम यही जमीने पे ही ठीक है ..पर जब मैंने उनसे कहा कि हम दोनों मनुष्य है और एक है तो काफी समझाने बिझने पर वो कुर्सी पर तो बैठ गए पर उन्हों ने खाना उन बर्तनों में नही खाया ...जिस में मै खाता हूँ ....मुझे याद है कि एक बार एक जे एन यू के एक आचार्य से मैंने कहा कि भारत में अभी भी अस्पर्स्यता भी भी है तो उन्होंने कहा कि अब भारत में यह कही नही है पर वो गलत है क्यों कि खुद दलित अपने को आज तक अस्पर्स्य मानते है ......खैर आज ही एक और घटना मेरे जीवन में अपना असर छोड़ गई मेरा दूधवाला जब आया तो मैंने उस से पूछा कि क्या हाल चाल है पर इसी बीच मम्मी ने बताया कि यह अपने लड़के की शादी करने जा रहा है ...मैंने उस से कहा कि अभी तुम्हरी उम्र क्या है जो अपने लड़के की शादी करने जा रहे हो , उसने पुरे गर्व से बताया कि मेरी उम्र २६ साल है और मेरे बेटे की उम्र ११ साल है यानि उसकी शादी १४ साल की उम्र में हुई होगी जो भारत के कानून के अनुसार मान्य नही है , फिर उसने बताया कि उसकी तीन संतान है और गाँव में लोग लड़के की शादी पर जोर दे रहे है पर मै बीच में ही बोल उठा कि क्या अपने बच्चे को भी दूध बेच्वाओगे , उसे पढाओ लिखाओ एक अच्छा आदमी बनाओ ताकि तुमेह गर्व हो कि तुम एक नौकरी और पढ़े लिखे बच्चे के पिता हो , इस पर वह जोर से हसा और बोला बात तो सही ख रहे हो भईया पर हमारे गाँव ताज खुदही ब्लाक तेजवापुर तहसील महसी , जिला बहराइच में जिस के पास ५ बीघा जमीन है उस के लड़के को १ लाख रूपया और एक मारुती कार दहेज़ में मिल जाती है ...और पानी बात को सिद्ध करने के लिए वह एक ममेरे -फुफेरे भाई बहन के विवाह का उदहारण देता है कि सिर्फ तिलक में ही लड़के को मारुती और २ लाख रूपया मिला ....जब कि शादी घर में ही हो रही थी ...मै ने कहा कि दहेज़ कब तक चलेगा तो वो बोला कि इस लिए तो गो वाले ज्यादा बच्चे पैदा करने लगे है क्यों कि उन्हें ज्यादा पैसा बराबर मिलता रहेगा यही नही वह कहता है कि कई लोग तो लड़की के लिए भी पैसा देते है , पर वह कहता है कि बच्चे को पढ़ाने से नौकरी तो मिलेगी नही लेकिन शादी के लिए हा खाने पर बैंक और सरकार से जल्दी रूपया मिल जायेगा और वह न सिर्फ कार वाल हो जायेगा बल्कि पैसे से ज्यादा भैस खरीद लेगा ...उसकी बात सुनकर मुझे ८ फ़रवरी २०१२ को अपना अवध आसाम ट्रेन में वेंडर से की गई वार्ता याद आ गई , एक अनपद वेंडर ने मुझ से कहा था कि पहले लोग और वस्तुओं की कीमत थी और पैसा को कोई नही पूछता था पर आज पैसे की कीमत है लोग और वस्तुओं की नही है और आज पाने दूध वाले की बात सुन कर लगा कि वेंडर का दर्शन बिना पढ़े लिखे कितना गहरा था क्यों कि व जनता है कि भारत में भेद भाव का स्तर सिर्फ जाति , धर्म के आधार पर ही नही है बल्कि सबसे बड़ा अंतर तो आर्थिक है जिस के कारण भेद भाव बढ़ता ही जा रहा है और हम जन संख्या के बढ़ने में इन कारणों को जोड़ कर देखते ही नही है पर क्या इन भेद को कभी आपने भी महसूस किया है ???????????????? क्या आपको लगता है कि ऊपर दिए गए उदहारण से आप सहमत है ??????????????? भेद भाव में कमी लाने के लिए आर्थिक समानता जरुरी है या ऐसे ही उदाहरन से भारत भरा है ?????????????????/ अगर ऐसा है तो आप भी २१ मार्च को भेद भाव पर अपना शोध पत्र अखिल भारतीय अधिकार संगठन के साथ प्रस्तुत कर के एक नए विमर्श को जन्म दे सकते है और इस के लिए आप www.seminar2012.webs.com पर जाकर अपना पंजी कारण करवाए और अपन असरंश १५ मार्च तक मेरे ईमेल alokchantia@airo.org.in पर मेल कर दे ......अखिल भारतीय अधिकार संगठन का प्रयास है एक बेहतर भारत के लिए रात दिन अधिकारों के लिए लोगो को प्रेरित करना .....क्या आप हो रहे है ????????????????? डॉ आलो चांत्तिया
Friday, 9 March 2012
bharat me bhed bhav
आज होली और होलिका की आग ठंडी हो चली है और अगर अखिल भारतीय अधिकार संगठन गलत नही है तो होलिका ( महिला ) की राख पर मुंशी प्रेम चाँद के उपन्यास कफ़न की तरह दर्द से तड़पती महिला से दूर आलू उबाल कर कर खाने वाले पुरुषो की तरह हम भी गुझिया औत पापड़ , दालमोठ में होली के बाद का विमर्श करते है ...पता नही यह एक इतेफाक है या फिर सही कि कई समाजो में प्रुरुष के मरने पर तेरहवी १३ दिन पर होती है पर महिला के मरने पर आठ दिन पर होती है और हम होली कि समाप्ति भी आठ दिन बाद शीतला अष्टमी पर करते है ...क्या वास्तव में महिला का ही जश्न हम मानते है ?????????????????? खैर ऐसा जनजाति समाजमे होता है ........मैंने आज सोचा था कि आपसे कुछ और बात करूंगा क्योकि महिला दिवस तो बीत गया , सरकारी कामो कि तरह फिर आगले साल कुछ लिख कर वह वही लूट लूँगा पर न जाने क्यों आज फिर एक महिला का यक्ष प्रश्न मजबूर कर गया कि आपसे भी यही बात पूछ लू ...उस महिला का कहना था कि आपने शादी ने की तो आप योगी है और मैंने नही की तो मै अभागन हूँ , आपके लिए कोठे बने है , योगी भी रहिये और जब मन करे कोठे पर भी रात के अँधेरे में घूम आइये पर एक लड़की लड़के से बात भी कर ले तो पूरा समाज उपन्यास लिख देता है , उसके चरित्र का प्रमाण्पत्र देने लगता है .....लड़की क्यों नही स्वतंत्र हो सकती है लड़के की तरह हर कार्य के लिए !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! एक गाय स्वतंत्र है पर लड़की आज भी संस्कृति की लाश ढो कर यही बताती रहे कि मनुष्य ने संस्कृति कैसे बनाई? मै उनकी बात सुन कर सोच रहा था कि आज लड़की में समाज को लेकर कितनी निराशा है ...उसी समय मुझे अपनी एक सहकर्मी की याद आई जो महिला के सिंदूर लगाने की विरोधी है , उन्हें उसमे गुलाम की बदबू आती है और वह बिना सिंदूर के रहती है ....पर क्या ऐसा करना ही नारी की स्वतंत्रता है .......पर इन सब के बीच मुझे अपनी माँ भी याद आती है एक उच्चा शिक्षा प्राप्त महिला जो साथ के दशक में हॉस्टल में रह कर पढ़ती थी और शादी के समय अध्यापन में सलग्न थी पर उन्हें लगा कि मै अपने बच्चो को पालूंगी , उन्हें समाज के योग्य बनाउंगी और उन्होंने ऐसा किया भी ...पर मुझे ऐसा लगता है कि उनका नाम चारदीवारी में सिमट गया सब उन्हें मेरे पिता की पत्नी के रूप में ज्यादा जन ते है ...माँ की शिक्षा को जानने के बाद मुझे शर्म आई कि मेरी माँ को सहर में कोई नाम से नहीं जनता और बस मैंने अपनी माँ के नाम की पट्टी बनवाई और उसे घर के बहार लगवा दिया ताकि जो भी देखे यह जान सके कि महिला कौन है और उसका नाम क्या है .....क्या आपकी माँ का नाम घर के आस पास लोग जानते है ??????????????? नही तो आप भी अपनी माँ को इतना सम्मान तो दे ही सकते है ....देंगे न !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! हमारे देशमे इतना भेद भाव क्यों ???????????? जब कि भेद भाव संविधान तक में निषिद्ध है , ऐसे भेद भाव पर चर्चा करने के लिए अखिल भारतीय अधिकार संगठन एक दिवसिय्र संगोष्ठी २१ मार्च को जय शंकर सभा गार में ११ बजे प्रातः से आयोजित कर रहा है ....आप www.seminar2012.webs.com पर अपना पंजीकरण कराए और सारांश १५ मार्च तक alokchnatia@airo.org.in पर भेज दे .......डॉ आलोक चांत्टिया
mahila aur bhed bhav
आज होली और होलिका की आग ठंडी हो चली है और अगर अखिल भारतीय अधिकार संगठन गलत नही है तो होलिका ( महिला ) की राख पर मुंशी प्रेम चाँद के उपन्यास कफ़न की तरह दर्द से तड़पती महिला से दूर आलू उबाल कर कर खाने वाले पुरुषो की तरह हम भी गुझिया औत पापड़ , दालमोठ में होली के बाद का विमर्श करते है ...पता नही यह एक इतेफाक है या फिर सही कि कई समाजो में प्रुरुष के मरने पर तेरहवी १३ दिन पर होती है पर महिला के मरने पर आठ दिन पर होती है और हम होली कि समाप्ति भी आठ दिन बाद शीतला अष्टमी पर करते है ...क्या वास्तव में महिला का ही जश्न हम मानते है ?????????????????? खैर ऐसा जनजाति समाजमे होता है ........मैंने आज सोचा था कि आपसे कुछ और बात करूंगा क्योकि महिला दिवस तो बीत गया , सरकारी कामो कि तरह फिर आगले साल कुछ लिख कर वह वही लूट लूँगा पर न जाने क्यों आज फिर एक महिला का यक्ष प्रश्न मजबूर कर गया कि आपसे भी यही बात पूछ लू ...उस महिला का कहना था कि आपने शादी ने की तो आप योगी है और मैंने नही की तो मै अभागन हूँ , आपके लिए कोठे बने है , योगी भी रहिये और जब मन करे कोठे पर भी रात के अँधेरे में घूम आइये पर एक लड़की लड़के से बात भी कर ले तो पूरा समाज उपन्यास लिख देता है , उसके चरित्र का प्रमाण्पत्र देने लगता है .....लड़की क्यों नही स्वतंत्र हो सकती है लड़के की तरह हर कार्य के लिए !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! एक गाय स्वतंत्र है पर लड़की आज भी संस्कृति की लाश ढो कर यही बताती रहे कि मनुष्य ने संस्कृति कैसे बनाई? मै उनकी बात सुन कर सोच रहा था कि आज लड़की में समाज को लेकर कितनी निराशा है ...उसी समय मुझे अपनी एक सहकर्मी की याद आई जो महिला के सिंदूर लगाने की विरोधी है , उन्हें उसमे गुलाम की बदबू आती है और वह बिना सिंदूर के रहती है ....पर क्या ऐसा करना ही नारी की स्वतंत्रता है .......पर इन सब के बीच मुझे अपनी माँ भी याद आती है एक उच्चा शिक्षा प्राप्त महिला जो साथ के दशक में हॉस्टल में रह कर पढ़ती थी और शादी के समय अध्यापन में सलग्न थी पर उन्हें लगा कि मै अपने बच्चो को पालूंगी , उन्हें समाज के योग्य बनाउंगी और उन्होंने ऐसा किया भी ...पर मुझे ऐसा लगता है कि उनका नाम चारदीवारी में सिमट गया सब उन्हें मेरे पिता की पत्नी के रूप में ज्यादा जन ते है ...माँ की शिक्षा को जानने के बाद मुझे शर्म आई कि मेरी माँ को सहर में कोई नाम से नहीं जनता और बस मैंने अपनी माँ के नाम की पट्टी बनवाई और उसे घर के बहार लगवा दिया ताकि जो भी देखे यह जान सके कि महिला कौन है और उसका नाम क्या है .....क्या आपकी माँ का नाम घर के आस पास लोग जानते है ??????????????? नही तो आप भी अपनी माँ को इतना सम्मान तो दे ही सकते है ....देंगे न !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! हमारे देशमे इतना भेद भाव क्यों ???????????? जब कि भेद भाव संविधान तक में निषिद्ध है , ऐसे भेद भाव पर चर्चा करने के लिए अखिल भारतीय अधिकार संगठन एक दिवसिय्र संगोष्ठी २१ मार्च को जय शंकर सभा गार में ११ बजे प्रातः से आयोजित कर रहा है ....आप www.seminar2012.webs.com पर अपना पंजीकरण कराए और सारांश १५ मार्च तक alokchnatia@airo.org.in पर भेज दे .......डॉ आलोक चांत्टिया
Wednesday, 7 March 2012
Tuesday, 6 March 2012
ABLA JIVAN HAYE TUMAHRI YHI KAHNI
आज ६ मार्च २०१२ और मै अखिल भारतीय अधिकार संघटना आपके साथ महिला दिवस से सिर्फ दो दिन पहले एक ऐसी सच्ची कहानी ???????????????? माफ़ कीजियेगा कहानी इस लिए कहा क्यों कि इस देश में जिन्दा आदमी को भी कहनी कह कर भी परोसा जाता है और मै तो उस नन्ही कली की कहानी लेकर आपके सामने आ रहा हूँ जो आज सुबह ही ऐसी गहरी नींद में सो गई जहा से कोई चाह कर भी नही उठा सकता है पर कोई बात नही आप महिला दिवस पर जोर से चिल्ला कर जरुर कहियेगा कि मै सब बकवास कर रहा हूँ इस देश की महिला ने अन्तरिक्ष में कदनम रख दिया है , वह राष्ट्रपति बन गई है , प्रधान मंत्री , मुख्या मंत्री बन गई हा पर इन सब के बीच सबसे बड़ा ननगा सच यही है की आज इस देश की एक आम महिला सिर्फ इस लिए मौत से प्रेम करके महा यात्रा पर निकल गई क्योकि जिन्दा रहते उसको किसी ने जिन्दा माना ही नही .....आपको याद होगा मैंने ५ तारीख को महिला पर एक लेख लिख कर आपको एक ऐसी लड़की की कहनी सुनाई थी जिसे ससुराल वालो ने दुबला ख कर लड़के के जन्म के बाद भगा दिया था और वह अपने माता पिता के घर रह रही थी पर अपने अपमान की आग में जलती उस २२ वर्षीय लड़की को जीने की कोई इच्छा ही नही रह गई थी और वह न जाने कितने रोगों का शिकार हो गई , मैंने भी अखिल भारतीय अधिकार संगठन के उद्देश्यों के अनुरूप उसके इलाज में पूरी मदद की पर किडनी इस कदर ख़राब हो चुकी थी कि उसका बचना नामुमकिन था और इस बेच में वह लड़की अपने बच्चे से मिलने के लिए अंतिम सांस तक विनती करती रही पर उत्तर प्रदेश में औरत के लिए क्या सच है यह सामने था , वह अबच्चे से नही मिल पी , महंगी दवाओ ने पहले ही उसके जीवन को अलविदा कह दिया और आज करीब रात ३ बजे उस लड़की कि माँ ने मुझे बुला कर कहा कि भैया देखा बिटिया बोल नही रही है , मैंने उसकी आँख देखि , पैर के तलवों पर चाभी से खरोचा पर वो शांत पड़ी रही मनो ख रही हो अब क्या फायेदा और किस लिए मुझे जिन्दा ढ़कना कहते थे .क्या जीते जी कभी कोई भारत का मनुष्य आया मेरे जीवन को समेटने के लिए .क्या फायेदा इस देश में महिला दिवस का अगर शहर के अन्दर लडकी इस तरह दम तोड़ रही है तो गाँव और जंगलो में क्या हो रहा होगा कहने की जरूरत नही है .....सचमे हम सब काफी आगे निकल गए है और कहनी यही समाप्त नही होती है आज जब उसके मरने की खबर उसके ससुराल वालो को दी गीतों वो लाश वाली गदिलेकर तुरंत आ गए और कहने लगे की हम इस अपने घर ले जायेंगे और वही से मिटटी करेंगे ....पुरुष यह भी अपनी करनी से बाज़ नही आया ....उसने सोचा कि कम से कम उसके घर के चारो ओर के लोग यह जान ले कि किशन की पत्नी मर गई और फिर वह दूसरी लड़की से ब्याह करने के लिए प्रस्तुत हो सके ...क्योकि भारत में जो मरी वह राशन की दुकान पर खड़े किसी ग्रहक से ज्यादा कुछ नही थी अब वो दुनिया में नही है तो अगला ग्राहक पानी लड़की का देने के लिए तैयार है ......यही कड़वा सच है इस देश में औरत का अगर आपको ऐसा लगे कि मै सच ख रहा हूँ तो खुबसूरत लडकियों कि फोटो को लिखे करने वालो एक बार उस लड़की को भी श्रधांजलि दे देना जो शायद एक लड्किथि , जिसका दिल सुंदर था पर पानी पिने कि तरह पुरुष उससे ऊब गया थ और आज वो शरीर का पिंजड़ा छोड़ कर जा चुकी थी .....अखिल भारतीय अधिकार संगठन पूरे भारत की तरफ से उस नन्ही कली की आत्मा शांति दे ..........डॉ आलोक चान्टिया
Sunday, 4 March 2012
aurat aur purush ka bhavarth
आज से बस चार दिन दूर पर है महिला दिवस यानि पुरुष दिवस की शुन्यता से उभरी एक अवधारणा जिस ने पुरे विश्व को यह सोचने पर मजबूर किया कि महिला को वह साडी गरिमा नही प्राप्त है जो उसके ५०% भाग पुरुष को जन्म से ही हाशिल है . आज अखिल भारतीय अधिउकर संगठन आपके साथ इस विमर्श में एक हिस्सेदार बनकर कुछ ऐसी बात करना चाहता है जिससे महल्ला दिवस कि प्रासंगिकता सिद्ध हो सके और यही नही हम सच के भावार्थ को समझ सके . माँ बनने के सामाजिक तरीके और मान्य तरीको में विवाह में दहेज़ और दहेज़ हत्या के ज़हर से डरा समाज और महिला सशक्तिकरण के रह पर दौड़ती नारी के पास कोई विकल्प नही है कि वह या तो अकेले जीवन को चलने दे या फिर अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत लिविंग संबंधो के साथ आगे बढ़ने लगे , कुल मिला कर बात वही आकर रुक जाती है कि क्या पुरुष से इतर महिला का अस्तित्व कभी समाज के मकद जाल से मुक्त हो पायेगा पर ऐसा भी नही है कि पूरे भारत की महिला ने अपनी संस्कृति पर सेविश्वास खो दिया है और यही कारण है की आज भी विवाह हो रहे है पैसो की होली खेली जा रही है जिसके लिए भविष्य के लिए कुछ भी नही कहा जा सकता है शायद इस से ज्यादा विश्वास वादी वाले व्यक्ति पूरे विश्व में दुसरे देश में नही मिलते है , पर आइये कुछ उदहारण आपको देता हूँ जिसमे आपको आसनी से पता चल जायेगा कि लड़की विवाह करके भारत में किस हाल में है . अखिल भारतीय अधिकार संगठन काफी समय से महिलाओ के अधिकारों के लिए जागरूकता जगाता रहा है और विधिक लड़ाई भी लड़ता रहा है , एक उदहारण लखनऊ के सुरेन्द्र नगर की है और शादी के बाद पहली ही रात लड़के ने यह कहकर लड़की को छोड़ दिया कि उसके शरीर पर मांस ज्यादा है , लड़की माँ विधवा है मैंने काफी समझाया पर उनका कहना था कि भैया बेकार में कोर्ट कचेहरी दौड़ने से कोई फायेदा नही है बल्कि मेरी लड़की और दुर्गति हो जाएगी और उन्होंने इलाहाबाद में पहले से शादी किये हुए एक लड़के से फिर अपनी लड़की की शादी कर दी और वह भी लड़की खुश नही है और पानी बहन की दुर्गति देख कर छोटी बहन ने दर से आज तक शादी नही की . दूसरा उदहारण इंदिरा नगर की है झा पर एक लड़की की शादी हुई आशियाना में लड़की खुबसूरत है पर जब वह शादी होकर गई तो घर वाले उसे यह कहने लगे की तुम इतनी दुबली हो जरुर कोई बीमारी है और इसी बीच वह माँ बन गई और एक लड़के को जनम दिया पर जन्म के बाद उसे मइके भेज दिया गया , बच्चे को रोक लिया गया , इस से बड़ा अपराध क्या होगा की दूध मुह बच्चा माँ से अलग कर दिया गया और इस इ सदमे में माँ की तबियत ख़राब होती चली गई आज लड़की को सुगर हो चुकी है , किडनी फेल हो गई है और डॉक्टर जवाब दे चुके है , लड़की के घर वाले भी कुछ नही कर रहे क्यों की उन्हें पता है की न्याय मिलना नही है , तीसरा केस एक ऐसी महिला का है जो पढ़ी लिखी है और नौकरी करती और उसके शादी एक इंजिनियर से हुई पर शादी के बाद ही लड़का खाने लगा की की तुम्हरा स्कूल में चक्कर है और उसने छोड़ दिया तब तक महिला गर्भवती हो गई थी , आज उसके लड़की है और वह खुद ऐसे पुरुष के साथ नही रहना चाहती और अपने माँ बाप के साथ है . इन सब के अतिरिक्त एक वाद ऐसी महिला का है जिसमे पीटीआई ने शादी के बाद एक झूठा वाद दुसरे शहर में चला रखा और यह दिखाता रहा की पत्नी उसके साथ नही रह रही है और पत्नी के साथ हर गलत काम करता रहा , पत्नी ने राज्य महिला आयोग , मानवाधिकार आयोग , पोलिसे सभी जगह शिकायत की है औत पत्नी का शोषण रुक गया है पर पीटीआई के खिलाफ कही से कुछ नही किया गया जबकि जांच में पीटीआई और उसके नंदोई गलत साबित हो चूका है ...इन उदाहरानो से क्या ऐसा लगता है की शादी एक बेहतर विकल्प रह गया है लड़की के लिए और आज आज की महिला पहले की महिला से बेहतर है ????????? शायद महिला दिवस का मतलब एक दिन सिर्फ थोथी बाते करने भर है और औअर्ट पानी दुर्गति से उबार ही नही पा रही ...अगर आपको लगता है कि लेख में सच है तो औअर्ट के जीवन को हसने का मौका दे उसे यह एहसास न कराए कि वह पिता के घर भी पराई है और पति के घर तो वह दुसरे गढ़ की प्राणी है ...अखिल भर्तुये अधिकसंगठन के साथ आप भी महिला दिवस को अपने घर में मनाये और अपने घर की किसी भी महिला की ख़ुशी के लिए एक सार्थक प्रयास करे .....डॉ आलोक चान्त्टिया
aurat kha hai
आज से बस चार दिन दूर पर है महिला दिवस यानि पुरुष दिवस की शुन्यता से उभरी एक अवधारणा जिस ने पुरे विश्व को यह सोचने पर मजबूर किया कि महिला को वह साडी गरिमा नही प्राप्त है जो उसके ५०% भाग पुरुष को जन्म से ही हाशिल है . आज अखिल भारतीय अधिउकर संगठन आपके साथ इस विमर्श में एक हिस्सेदार बनकर कुछ ऐसी बात करना चाहता है जिससे महल्ला दिवस कि प्रासंगिकता सिद्ध हो सके और यही नही हम सच के भावार्थ को समझ सके . माँ बनने के सामाजिक तरीके और मान्य तरीको में विवाह में दहेज़ और दहेज़ हत्या के ज़हर से डरा समाज और महिला सशक्तिकरण के रह पर दौड़ती नारी के पास कोई विकल्प नही है कि वह या तो अकेले जीवन को चलने दे या फिर अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत लिविंग संबंधो के साथ आगे बढ़ने लगे , कुल मिला कर बात वही आकर रुक जाती है कि क्या पुरुष से इतर महिला का अस्तित्व कभी समाज के मकद जाल से मुक्त हो पायेगा पर ऐसा भी नही है कि पूरे भारत की महिला ने अपनी संस्कृति पर सेविश्वास खो दिया है और यही कारण है की आज भी विवाह हो रहे है पैसो की होली खेली जा रही है जिसके लिए भविष्य के लिए कुछ भी नही कहा जा सकता है शायद इस से ज्यादा विश्वास वादी वाले व्यक्ति पूरे विश्व में दुसरे देश में नही मिलते है , पर आइये कुछ उदहारण आपको देता हूँ जिसमे आपको आसनी से पता चल जायेगा कि लड़की विवाह करके भारत में किस हाल में है . अखिल भारतीय अधिकार संगठन काफी समय से महिलाओ के अधिकारों के लिए जागरूकता जगाता रहा है और विधिक लड़ाई भी लड़ता रहा है , एक उदहारण लखनऊ के सुरेन्द्र नगर की है और शादी के बाद पहली ही रात लड़के ने यह कहकर लड़की को छोड़ दिया कि उसके शरीर पर मांस ज्यादा है , लड़की माँ विधवा है मैंने काफी समझाया पर उनका कहना था कि भैया बेकार में कोर्ट कचेहरी दौड़ने से कोई फायेदा नही है बल्कि मेरी लड़की और दुर्गति हो जाएगी और उन्होंने इलाहाबाद में पहले से शादी किये हुए एक लड़के से फिर अपनी लड़की की शादी कर दी और वह भी लड़की खुश नही है और पानी बहन की दुर्गति देख कर छोटी बहन ने दर से आज तक शादी नही की . दूसरा उदहारण इंदिरा नगर की है झा पर एक लड़की की शादी हुई आशियाना में लड़की खुबसूरत है पर जब वह शादी होकर गई तो घर वाले उसे यह कहने लगे की तुम इतनी दुबली हो जरुर कोई बीमारी है और इसी बीच वह माँ बन गई और एक लड़के को जनम दिया पर जन्म के बाद उसे मइके भेज दिया गया , बच्चे को रोक लिया गया , इस से बड़ा अपराध क्या होगा की दूध मुह बच्चा माँ से अलग कर दिया गया और इस इ सदमे में माँ की तबियत ख़राब होती चली गई आज लड़की को सुगर हो चुकी है , किडनी फेल हो गई है और डॉक्टर जवाब दे चुके है , लड़की के घर वाले भी कुछ नही कर रहे क्यों की उन्हें पता है की न्याय मिलना नही है , तीसरा केस एक ऐसी महिला का है जो पढ़ी लिखी है और नौकरी करती और उसके शादी एक इंजिनियर से हुई पर शादी के बाद ही लड़का खाने लगा की की तुम्हरा स्कूल में चक्कर है और उसने छोड़ दिया तब तक महिला गर्भवती हो गई थी , आज उसके लड़की है और वह खुद ऐसे पुरुष के साथ नही रहना चाहती और अपने माँ बाप के साथ है . इन सब के अतिरिक्त एक वाद ऐसी महिला का है जिसमे पीटीआई ने शादी के बाद एक झूठा वाद दुसरे शहर में चला रखा और यह दिखाता रहा की पत्नी उसके साथ नही रह रही है और पत्नी के साथ हर गलत काम करता रहा , पत्नी ने राज्य महिला आयोग , मानवाधिकार आयोग , पोलिसे सभी जगह शिकायत की है औत पत्नी का शोषण रुक गया है पर पीटीआई के खिलाफ कही से कुछ नही किया गया जबकि जांच में पीटीआई और उसके नंदोई गलत साबित हो चूका है ...इन उदाहरानो से क्या ऐसा लगता है की शादी एक बेहतर विकल्प रह गया है लड़की के लिए और आज आज की महिला पहले की महिला से बेहतर है ????????? शायद महिला दिवस का मतलब एक दिन सिर्फ थोथी बाते करने भर है और औअर्ट पानी दुर्गति से उबार ही नही पा रही ...अगर आपको लगता है कि लेख में सच है तो औअर्ट के जीवन को हसने का मौका दे उसे यह एहसास न कराए कि वह पिता के घर भी पराई है और पति के घर तो वह दुसरे गढ़ की प्राणी है ...अखिल भर्तुये अधिकसंगठन के साथ आप भी महिला दिवस को अपने घर में मनाये और अपने घर की किसी भी महिला की ख़ुशी के लिए एक सार्थक प्रयास करे .....डॉ आलोक चान्त्टिया
Saturday, 3 March 2012
woman?????????????????????
महिला दिवस से ५ दिन पूर्व अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपके साथ संसार की उस कृति के बारे में कुछ विमर्श के साथ प्रस्तुत है जहा आप को भी सोचने का मौका मिलेगा कि क्या वोमन , औरत , महिला , रमणी, भार्या , माँ , बहन , प्रेमिका , चाची आदि नमो से जनि जाने वाली हाड मांस की एक जैविक प्राणी उसी तरह से इस पृथ्वी पर रह पा रही है जैसे अन्य जानवरों की मादा रहती है , यह सच है कि हम मानव ने अपने से बःतर इस दुनिया में किसी को नही पाया है और संस्कृति बनाने के बाद तो ऐसा लगा मानो भगवन के बाद अगर कोई दूसरा उसके पद के बराबर आ सकता है है तो वो है मनुष्य और मनुष्य ने अवतारवाद चलाकर इसको सिद्ध भी करनी की कोशिश की पर आज का विमर्श यही है की कोई धर्म औरत के द्वारा चलाना क्यों नही मानव जाती ने स्वीकार किया , औरत के गर्भ से पैदा होकर भी भगवन के पद पर मनुष्य खुद ही क्यों बैठा और यही पर सबसे पहले महसूस किया जा सकता है कि औरत पुरुष के बराबर नही है भले ही औरत के गर्भ से पैदा हुआ है . इस के बाद यह भी एक विचारणीय प्रश्न है औरत को माँ कहकर जो मनुष्य सर झुकाते नही थक रहा है वही मनुष्य माँ बन ने के मान्य संस्था विवाह को महिला के लिए इतना बड़ा प्रश्न चिन्ह बनाये दे रहा है कि महिला को अपने अन्दर ही माँ बनने के दर्द को कुचलना पद रहा है और अगर वह सहस करके इस पद को पाने के लिए विवाह कर रही है तो दहेज़ , दहेज़ हत्या , घरेलु हिंसा , आदती का दंश उसके सामने खड़ा है ...औरत के लिए कानून बनाने की आवश्यकता ने स्वयं समाज के नंगेपन को उजागर कर दिया है कि औरत के प्रति संवेदन शीलता का स्तर खत्म हो रहा है और ऐसे में औरत या तो अविवाहित रहे या फिर एकाकी माँ की अवधारणा पर अमल शुरू कर दे , पुरुष का अत्याचार सिर्फ भारत में हो ऐसा नही है बल्कि पूरा विश्व इस दर्द को झेल रहा है , आंकड़ो के अनुसार करीब २५०० महिलाये पुरे विश्व में डायन कहकर जिन्दा मर दी जाती है , अकेले भारत में हर साल ४५० औरत डायन कह कर मार दी जाती है , यही नही पुरुष के शारीरिक अत्याचार से ऊब कर आज से १० वर्ष पूर्व ब्रिटेन में करीब १०००० महिलाओ ने विवाह करने से इंकार कर दिया और यह निश्चय किया कि पुरुष के अत्याचार से बेहतर है कि प्रजनन में पुरुष की जो भूमिका है उसको कृत्रिम ग्राभाधन से पूरा किया जाये और यही कारण है कि पश्चिमी देशो में शुक्राणु और अंडाणु बैंक की संख्या दिनोदिन बढ़ रही है अगर एशिया ही चलता रहा तो भारत की महिला भी नारी सशक्तिकरण के पथ पर बढ़ते हुए इस तरह के प्रक्रिया को अपना सकती है जो पूरी संस्कृति के लिए एक गंभीर बात होगी . महिला दिवस का मतलब शायद ही कोई सही ढंग से जनता हो पर हम आपको बस इतन बता दे कि नारी को इसी दिन मनुष्य के तुल्य माना गया , १९२९ में उसी दिन उसे मत देने का अधिकार प्राप्त हुआ पर यह सब तो इस देश कि महिला को हमेशा से ही हाशिल था फिर महिला दिवस भारत में क्यों ???????????? नही यह दिन विश्व महिला दिवस है और पूरे विश्व की महिला के गरिमा का दिन है और भारत की महिला को आज जिस तरह से समाज में स्तन प्राप्त है वह इतना अच्छा नही है ......मुझे मालूम है कि आपको मेरी बात सही नही लग रही है पर जरा आप सोच कर देखिये कि आप के घर में क्या ५० वर्ष की कोई अविवाहित औरत है ??????????????और पहले चाहे चेहरा कैसा भी हो , कद कैसा भी हो , पढ़ी लिखी कैसी भी हो पर उसके जीवन में विवाह और माँ बन ने का सुख था ही और लड़की की शादी बाप दादा के नाम प्रतिष्ठा पर हो जाती थी पर आज क्या ऐसा है जिस औरत को हम सब ने मिल कर सशक्तिकरण का जो स्वप्न दिखाया उसने औरत को व्यक्तिगत नाम दिया , प्रतीष्ठा दिया पर औरत को इतना अकेला खड़ा कर दिया कि जब जो जैसे चाहे लूटने लगा और समाज के कुछ लोग उसी लूटने के दर्द को कह कर महिला दिवस मानाने लगे पर क्या हम औरत को ऐसा मान पाए जो हम पुरुष कि तरह उन्मुक्त सांस ले सके अगर ऐसा नही है तो आइये महिला दिवस पर बस इतना करे कि हर महिला को हसने का मौका देंगे और हम उनके हसने में अपने विमर्श और अर्थ नही निकालेंगे और अगर आपको ऐसा नही लगता तो आइये अखिल भारतीय अधिकार संगठन २१ मार्च को विषमता पर एक राष्टीय संगोष्ठी करा रहा है , उसमे भाग लेकर औरत कि विषमता पर चर्चा कीजिये और औरत को माँ शब्द का अर्थ जानने दीजिये .............डॉ आलोक चांत्टिया
Friday, 2 March 2012
mahila aur mahila divas
महिला दिवस से ठीक ६ दिन पहले मै अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपके साथ इस बात पर चर्चा करने के लिए प्रेरित हूँ कि क्या औरत सिर्फ विमर्श तक ही सिमट कर रह गई है ? औरत खुद औरत के लिए जहा एक प्रतिस्पर्धात्मक तथ्य है वही आदमी के लिए तुलनात्मक तथ्य है . पर यह भी एक नितांत सत्य है कि प्रतिसप्र्धात्मक होने के कारण औरत इर्ष्या , बदला का हिस्सा बन रही है वही तुलनात्मक होने के कारण व आकर्षण का केंद्र भी है पर मै जनता हुकि मेरी इस बात पर आप लोग सहमत नही होंगे , इसी लिए मै आपके सामने दो उदहारण रख रहा हूँ ...आज देश के सबसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र में एक खबर छपी कि एक आदमी एक औरत से विवाह करने के बाद एक और औरत से प्रेम करने लगा पर वह पीछा छुड़ाना चाहता था इसके लिए उसने अपनी पत्नी को एच ई वी वायरस का इंजेक्सन लगवा दिया और जब वह इस से पीड़ित हो गई तो उसके चरित्र पर आरोप लगा कर उसने उस से पीछा छुड़वाना चाहा, यह प्रकरण पंजाब के फजिलिका जिले का है मामला न्यालायाय में है .........दूसरा प्रकरण भी काफी चर्चित है और वह है भोपाल की चर्चित आर टी आई कार्यकर्ता श्याला मसूद की हत्या , पहले यह कहा गया कि कार्यकर्ता का जीवन सुरक्षित नही है और पूरा देश चिल्ला उठा पर आज खबर यह आई कि श्याला और जाहिदा दोनों महिलाये एक ही आदमी से प्रेम करती थी और इसी लिए दूसरी महिला ने सुपारी देकर श्याला की हत्या करवाई . इन दोनों प्रकरणों में यह तो स्पष्ट है कि पुरुष जहा औरत का दोहन कर रहा है वही औरत औरत के जीवन की दुश्मन है और यह बात को समझना तब ज्यादा महत्व पूर्ण हो जाता है जब भारत जैसे देश में जहा औरत की संख्या कम है वह पर एक पुरुष के साथ एक से ज्यादा औरत के जुड़ने की बात थोड़ी समझना मुश्किल हो सकती है पर मुझसे एक बार एक विवाहित महिला ने कहा था कि औरत यह देखती है कि उसके लिए केयरिंग कौन है और यही कारण है कि वह डाकू से भी जुड़ जाती है . शायद यही कारण है कि महिला को समझना और उस पर बात करना मुश्किल है पर यह भी सच है कि औरत को अपनों से शायद केयर में कमी मिल रही है या फिर समाज की परम्पराए जिनके कारण औरत धीरे धीरे अलग थलग पड़ जाती है और फिर वह चर्चा परिचर्चा , संगोष्ठी , सेमिनार का विषय बन जाती है और इसका सब से बड़ा सच यह है औरत के लिए औरत ही संवेदन शील नही है और समाज का सारा विमर्श सिर्फ पुरुष के साथ उसके व्यव्हार पर ही केन्द्रित रह जाता है और औरत एक विषय से ज्यादा कुछ नही दिखाई देती , हाड मांस से दूर सिर्फ अपने को औरत की बात करके प्रतिशित करने का साधन मात्र .........डॉ आलोक चान्त्तिया
aurat aur aurat aur mahila divas
महिला दिवस से ठीक ६ दिन पहले मै अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपके साथ इस बात पर चर्चा करने के लिए प्रेरित हूँ कि क्या औरत सिर्फ विमर्श तक ही सिमट कर रह गई है ? औरत खुद औरत के लिए जहा एक प्रतिस्पर्धात्मक तथ्य है वही आदमी के लिए तुलनात्मक तथ्य है . पर यह भी एक नितांत सत्य है कि प्रतिसप्र्धात्मक होने के कारण औरत इर्ष्या , बदला का हिस्सा बन रही है वही तुलनात्मक होने के कारण व आकर्षण का केंद्र भी है पर मै जनता हुकि मेरी इस बात पर आप लोग सहमत नही होंगे , इसी लिए मै आपके सामने दो उदहारण रख रहा हूँ ...आज देश के सबसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र में एक खबर छपी कि एक आदमी एक औरत से विवाह करने के बाद एक और औरत से प्रेम करने लगा पर वह पीछा छुड़ाना चाहता था इसके लिए उसने अपनी पत्नी को एच ई वी वायरस का इंजेक्सन लगवा दिया और जब वह इस से पीड़ित हो गई तो उसके चरित्र पर आरोप लगा कर उसने उस से पीछा छुड़वाना चाहा, यह प्रकरण पंजाब के फजिलिका जिले का है मामला न्यालायाय में है .........दूसरा प्रकरण भी काफी चर्चित है और वह है भोपाल की चर्चित आर टी आई कार्यकर्ता श्याला मसूद की हत्या , पहले यह कहा गया कि कार्यकर्ता का जीवन सुरक्षित नही है और पूरा देश चिल्ला उठा पर आज खबर यह आई कि श्याला और जाहिदा दोनों महिलाये एक ही आदमी से प्रेम करती थी और इसी लिए दूसरी महिला ने सुपारी देकर श्याला की हत्या करवाई . इन दोनों प्रकरणों में यह तो स्पष्ट है कि पुरुष जहा औरत का दोहन कर रहा है वही औरत औरत के जीवन की दुश्मन है और यह बात को समझना तब ज्यादा महत्व पूर्ण हो जाता है जब भारत जैसे देश में जहा औरत की संख्या कम है वह पर एक पुरुष के साथ एक से ज्यादा औरत के जुड़ने की बात थोड़ी समझना मुश्किल हो सकती है पर मुझसे एक बार एक विवाहित महिला ने कहा था कि औरत यह देखती है कि उसके लिए केयरिंग कौन है और यही कारण है कि वह डाकू से भी जुड़ जाती है . शायद यही कारण है कि महिला को समझना और उस पर बात करना मुश्किल है पर यह भी सच है कि औरत को अपनों से शायद केयर में कमी मिल रही है या फिर समाज की परम्पराए जिनके कारण औरत धीरे धीरे अलग थलग पड़ जाती है और फिर वह चर्चा परिचर्चा , संगोष्ठी , सेमिनार का विषय बन जाती है और इसका सब से बड़ा सच यह है औरत के लिए औरत ही संवेदन शील नही है और समाज का सारा विमर्श सिर्फ पुरुष के साथ उसके व्यव्हार पर ही केन्द्रित रह जाता है और औरत एक विषय से ज्यादा कुछ नही दिखाई देती , हाड मांस से दूर सिर्फ अपने को औरत की बात करके प्रतिशित करने का साधन मात्र .........डॉ आलोक चान्त्तिया
Thursday, 1 March 2012
samaj ab samapti par hai
समाज एक स्वयं में सामाजिक बुराई है
बचपन से सामाजिक विज्ञानों में पढता और सुनता चला आ रहा हूँ कि समाज सभी जीव जन्तुओ में पाया जाता है पर एक अमूल चूल अंतर है , जब हम समाज की कल्पना जीव जन्तुओ के लिए ही करते है तो उसे जैविक समाज कहा जाता है , इस के पीछे तर्क यह दिया जाता है कि जीन जंतु का समाज संस्कृति विहीन होता है यानि उनमे समाज की कल्पना बस तभी तक अस्तित्व में रहती है , जब तक बच्चा खुद चलने योग्य नही हो जाता है या खाने के योग्य नही हो जाता है लेकिन मनुष्य के सन्दर्भ में ऐसा नही है क्यों की मनुष्य स्वयं को पृथ्वी की सबसे सुन्दरतम कृति कह कर संस्कृति का निर्माता बन गया . संस्कृति नाम सुन ने में आसान लगता है और ऐसा प्रतीत होता है कि हम सब इस के बारे में सब कुछ जानते है पर ऐसा है नही क्यों कि संस्कृति को मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन जीने के तरीके के रूप में कह कर परिभाषित कर दिया गया परन्तु सम्पूर्ण जीवन जीने का तरीका क्या है ? और वो तरीके क्या वास्तव में समाज का निर्माण करते है या नही , यह एक विचारिये प्रश्न है . इस लिए सब से पहले हम सबको सांस्कृतिक समाज के बारे में गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए जो हम सब मनुष्यों को जानवरों के जैविक समाज से ऊपर ले जाता है .
संस्कृति में सम्पूर्ण जीवन जीने से तात्पर्य क्या है इस से भी पहले यह जन लेना चाहिए कि मनुष्य आज से करीब २० लाख साल पहले अपने को जानवरों से अलग करने के लिए प्रयास करने लगा थाई और किया भी पर एक सम्पूर्ण परवर्तन आज से करीब ४००० वर्ष पूर्व नव पाषण काल में दिखाई दिया जब मानव ने खाना बदोश जीवन से हट कर स्थायीत्व का जीवन जीना शुरू किया . झा संस्कृति जीवन जीने का तरीका है वही समाज संबंधो का जाल है पर संबंधो के इसी जाल ने कुछ समय तक अपना प्रभावी रूप बनाये रखा पर जैसे जैसे जनसँख्या बढती गई और मनुष्य एक परमार्जित खाना बदोशी की तरफ बढ़ा जनसंख्या का विस्तार हुआ और जीवन में प्रबंधन एक कठिन कार्य हो गया ...जिस उद्देश्य को लेकर नातेदारी को बनाया गया था , वही नातेदारी सबसे बड़ा प्रशन बन कर मनुष्य के सामने आ गया ...जैसे भाई और बहन के दायित्व में भाई की भूमिका ऐसी हो गई कि वो सैधांतिक रूप से बहन का रक्षक रह गया और जिस कल्पना को लेकर राखी जैसा पर्व शुरू हुआ था वो सिर्फ अलंकारिक ज्यादा रह गया ....आज दहेज़ के लिए जलाई गई लड़की का भाई स्वयं कोई क्रयावाही नही कर सकता बल्कि उसे न्याय व्यवस्था के पास जाना है भले ही वो जनता हो कि उसकी बहन कि दुर्गति का जिम्मेदार कौन है ??????????? क्या समाज में भाई बहन का योगदान सिर्फ कागज पर रह गया ????????? इसके अलावा समाज में यौन संबंधो की अनियमितता को रोकने और संतान की जिम्मेदारी को सुनिश्चित करने के लिए विवाह जैसी व्यवस्था लायी गई पर समाज में जितना बड़ा प्रश्न चिन्ह इस संस्था पर है उतना किसी दूसरे पर नही . पहला प्रश्न अगर यह यौन संबंधो को निय्मीय करने वाला साधन था तो वेश्यावृति कहा से समाज में आई , जब सभी को सम्मान जनक तरीके से जीने का अधिकार है तो औरत समाज में एक मूल्यहीन समझे जाने वाले काम में खुद तो आई नही होगी और अगर विवाह से यौन संबंधो को नियमित किया जाना संभव था तो वेश्यावृति क्यों समाज में आई और अगर यह काया समाज निर्माताओ द्वारा ठीक माना जा रहा था तो वेश्यावृति करने वाली महिलाओ को गरिमा पूर्ण जीवन क्यों नही प्राप्त था ?????????? समाज को बना ने में तो मानव में सारा श्रेय यह कह कर ले लिया किवह जानवरों से ऊपर है पर जिस तर से उसने प्रकृति को हानि पहुचाई उससे तो खी नही लगता कि मनुष्य मने समाज से निर्माण से कोई ज्यादा बेहतर कार्य किया यही नही समाज और संस्कृति के निर्माण ने मनुष्य के शरीर में प्रयाप्त परिवर्तन किये और अन्य प्राणियों की तरह मनुष्य ने कच्चा भोजन खाना छोड़ दिया औ रजिस के कारण उसके शरीर में अमूल चूल परिवर्तन हो गए, लेकिन इस कारण से जो नुकसान हुआ हुआ वो यह था की मनुष्य अब कच्चा खाना पचाने में असमर्थ हो गया , उसके सामने मज़बूरी हो गई की वह पका खाना हो खाए और यह परेशानी जनसँख्या बढ़ने के करा दिनोदिन दुरूह होती चली गई जिसके कारण समाज में एक नै समस्या उभरी और वो समस्या थी गरीबी .....लोगो ने आज करीब कर्रेब पूरी पृथ्वी पर कब्ज़ा कर लिया है और जो भी अतिरिक्त मनुष्य यह है वो गरीबी का शिकार है पर जन वर गरीब जैसी समस्या से नही परेशां है क्योकि आज भी वो प्रकृति पर निर्भर है . इस बात से यह भी स्पष्ट है कि अपने आरंभिक चरण में तो समाज का निर्माण एक अद्भुत प्रयास था पर बाद में यह प्रयास ही मनुष्य और मनुष्यता के लिए अभिशाप बन गया .कोई भी प्राणी गर्भपात नही कराता न ही उसकी जनसँख्या भस्मासुर कि तरह बढती है , न तो किसी जंगली जानवर के खाने से शाकाहारी जंतु ख़त्म हुए और न हो रहे है अपर मनुष्य के एक प्रयास सांस्कृतिक समाज के निर्माण में न सिर्फ पूरे प्रयावरण को बर्बाद कर डाला बल्कि स्वयं मनुष्य अपने जीवन को चलाने में असमर्थ दिखाई दे रहा है . बेरोजगारी , आतंकवाद , सब कुछ इसी निर्माण का परिणाम है तो क्या समाज स्वयं में एक बुराई है ...निश्चित रूप से समाज एक बुराई ही है अपर जैसे एक सूक्ष्म मात्रामें जहर भी स्वस्थ्य के लिए फायेदे मंद होता है . शराब भी हितकारी होती है , उसी तरह अपने आरंभिक चरणों में समाज का निर्माण मनुष्य के जीवन को सुगम बनाने के लिए अचूक प्रयास था पर उसी के साथ जनसँख्या पर नियंत्रण न करना और खुद को प्रकृति का स्वामी समझ लेना मानव के लिए स्वयं दुखदाई हो गया और समाज एक अभिशाप बन गया , प्रकृति की अपेक्षा मुद्रा आधारित जीवन ने भुखमरी को ज्यादा फैलाया , गरीबी को बढाया और मानसिक रोग को जन्म दिया , कैंसर , टी बी , जैसी बीमारी हर घर पर दस्तक दे रही है पर समाज के पास इसका कोई अचूक इलाज नही है और आगे बढ़ने के सिवा कोई चारा नही है जबकि आगे सिर्ग अँधेरा ही दिखाई दे रहा है पर मनुष्य अब समाज के भस्मासुर के आगे विवश है , तो क्या हम सब को समाज को नकार देना चाहिए ??????????? शायद हा पर उसके लिए अब समय ही नही है क्योकि समाज खुद एक ऐसी बुराई के रूप में हमारे अन्दर समा चुकी है जिसको अपनाये बिना हम जिन्दा भी नही रह सकते पर जनसँख्या को रोक कर इसका इलाज किया जा सकता है .पर यक्ष प्रश्न यही कि जनसँख्या रोके कैसे ????????? क्या संतान न पैदा करे ???????? क्या विवाह न करे ????????? तो फिर नैसर्गिक अवश्यक्ताओ की पूर्ति कैसे होगी ????????? क्या जानवरों की तरह फिर हम यौन उन्मुक्त समाज स्वीकार कर ले ??????????? क्या अप्रत्यक्ष रूप से चल रही इस परम्परा को प्रत्यक्षा रूप से मनांव स्वकर करके इस सामाजिक बुराई पर बहस करने के लिए मुखौटा उतार कर बहस करने को तैयार है !!!!!!!!!!!! क्या यह एक और समाज की सामाजिक बुराई नही
डॉ आलोक चांत्तिया
अखिल भारतीय अधिकार संगठन
बचपन से सामाजिक विज्ञानों में पढता और सुनता चला आ रहा हूँ कि समाज सभी जीव जन्तुओ में पाया जाता है पर एक अमूल चूल अंतर है , जब हम समाज की कल्पना जीव जन्तुओ के लिए ही करते है तो उसे जैविक समाज कहा जाता है , इस के पीछे तर्क यह दिया जाता है कि जीन जंतु का समाज संस्कृति विहीन होता है यानि उनमे समाज की कल्पना बस तभी तक अस्तित्व में रहती है , जब तक बच्चा खुद चलने योग्य नही हो जाता है या खाने के योग्य नही हो जाता है लेकिन मनुष्य के सन्दर्भ में ऐसा नही है क्यों की मनुष्य स्वयं को पृथ्वी की सबसे सुन्दरतम कृति कह कर संस्कृति का निर्माता बन गया . संस्कृति नाम सुन ने में आसान लगता है और ऐसा प्रतीत होता है कि हम सब इस के बारे में सब कुछ जानते है पर ऐसा है नही क्यों कि संस्कृति को मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन जीने के तरीके के रूप में कह कर परिभाषित कर दिया गया परन्तु सम्पूर्ण जीवन जीने का तरीका क्या है ? और वो तरीके क्या वास्तव में समाज का निर्माण करते है या नही , यह एक विचारिये प्रश्न है . इस लिए सब से पहले हम सबको सांस्कृतिक समाज के बारे में गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए जो हम सब मनुष्यों को जानवरों के जैविक समाज से ऊपर ले जाता है .
संस्कृति में सम्पूर्ण जीवन जीने से तात्पर्य क्या है इस से भी पहले यह जन लेना चाहिए कि मनुष्य आज से करीब २० लाख साल पहले अपने को जानवरों से अलग करने के लिए प्रयास करने लगा थाई और किया भी पर एक सम्पूर्ण परवर्तन आज से करीब ४००० वर्ष पूर्व नव पाषण काल में दिखाई दिया जब मानव ने खाना बदोश जीवन से हट कर स्थायीत्व का जीवन जीना शुरू किया . झा संस्कृति जीवन जीने का तरीका है वही समाज संबंधो का जाल है पर संबंधो के इसी जाल ने कुछ समय तक अपना प्रभावी रूप बनाये रखा पर जैसे जैसे जनसँख्या बढती गई और मनुष्य एक परमार्जित खाना बदोशी की तरफ बढ़ा जनसंख्या का विस्तार हुआ और जीवन में प्रबंधन एक कठिन कार्य हो गया ...जिस उद्देश्य को लेकर नातेदारी को बनाया गया था , वही नातेदारी सबसे बड़ा प्रशन बन कर मनुष्य के सामने आ गया ...जैसे भाई और बहन के दायित्व में भाई की भूमिका ऐसी हो गई कि वो सैधांतिक रूप से बहन का रक्षक रह गया और जिस कल्पना को लेकर राखी जैसा पर्व शुरू हुआ था वो सिर्फ अलंकारिक ज्यादा रह गया ....आज दहेज़ के लिए जलाई गई लड़की का भाई स्वयं कोई क्रयावाही नही कर सकता बल्कि उसे न्याय व्यवस्था के पास जाना है भले ही वो जनता हो कि उसकी बहन कि दुर्गति का जिम्मेदार कौन है ??????????? क्या समाज में भाई बहन का योगदान सिर्फ कागज पर रह गया ????????? इसके अलावा समाज में यौन संबंधो की अनियमितता को रोकने और संतान की जिम्मेदारी को सुनिश्चित करने के लिए विवाह जैसी व्यवस्था लायी गई पर समाज में जितना बड़ा प्रश्न चिन्ह इस संस्था पर है उतना किसी दूसरे पर नही . पहला प्रश्न अगर यह यौन संबंधो को निय्मीय करने वाला साधन था तो वेश्यावृति कहा से समाज में आई , जब सभी को सम्मान जनक तरीके से जीने का अधिकार है तो औरत समाज में एक मूल्यहीन समझे जाने वाले काम में खुद तो आई नही होगी और अगर विवाह से यौन संबंधो को नियमित किया जाना संभव था तो वेश्यावृति क्यों समाज में आई और अगर यह काया समाज निर्माताओ द्वारा ठीक माना जा रहा था तो वेश्यावृति करने वाली महिलाओ को गरिमा पूर्ण जीवन क्यों नही प्राप्त था ?????????? समाज को बना ने में तो मानव में सारा श्रेय यह कह कर ले लिया किवह जानवरों से ऊपर है पर जिस तर से उसने प्रकृति को हानि पहुचाई उससे तो खी नही लगता कि मनुष्य मने समाज से निर्माण से कोई ज्यादा बेहतर कार्य किया यही नही समाज और संस्कृति के निर्माण ने मनुष्य के शरीर में प्रयाप्त परिवर्तन किये और अन्य प्राणियों की तरह मनुष्य ने कच्चा भोजन खाना छोड़ दिया औ रजिस के कारण उसके शरीर में अमूल चूल परिवर्तन हो गए, लेकिन इस कारण से जो नुकसान हुआ हुआ वो यह था की मनुष्य अब कच्चा खाना पचाने में असमर्थ हो गया , उसके सामने मज़बूरी हो गई की वह पका खाना हो खाए और यह परेशानी जनसँख्या बढ़ने के करा दिनोदिन दुरूह होती चली गई जिसके कारण समाज में एक नै समस्या उभरी और वो समस्या थी गरीबी .....लोगो ने आज करीब कर्रेब पूरी पृथ्वी पर कब्ज़ा कर लिया है और जो भी अतिरिक्त मनुष्य यह है वो गरीबी का शिकार है पर जन वर गरीब जैसी समस्या से नही परेशां है क्योकि आज भी वो प्रकृति पर निर्भर है . इस बात से यह भी स्पष्ट है कि अपने आरंभिक चरण में तो समाज का निर्माण एक अद्भुत प्रयास था पर बाद में यह प्रयास ही मनुष्य और मनुष्यता के लिए अभिशाप बन गया .कोई भी प्राणी गर्भपात नही कराता न ही उसकी जनसँख्या भस्मासुर कि तरह बढती है , न तो किसी जंगली जानवर के खाने से शाकाहारी जंतु ख़त्म हुए और न हो रहे है अपर मनुष्य के एक प्रयास सांस्कृतिक समाज के निर्माण में न सिर्फ पूरे प्रयावरण को बर्बाद कर डाला बल्कि स्वयं मनुष्य अपने जीवन को चलाने में असमर्थ दिखाई दे रहा है . बेरोजगारी , आतंकवाद , सब कुछ इसी निर्माण का परिणाम है तो क्या समाज स्वयं में एक बुराई है ...निश्चित रूप से समाज एक बुराई ही है अपर जैसे एक सूक्ष्म मात्रामें जहर भी स्वस्थ्य के लिए फायेदे मंद होता है . शराब भी हितकारी होती है , उसी तरह अपने आरंभिक चरणों में समाज का निर्माण मनुष्य के जीवन को सुगम बनाने के लिए अचूक प्रयास था पर उसी के साथ जनसँख्या पर नियंत्रण न करना और खुद को प्रकृति का स्वामी समझ लेना मानव के लिए स्वयं दुखदाई हो गया और समाज एक अभिशाप बन गया , प्रकृति की अपेक्षा मुद्रा आधारित जीवन ने भुखमरी को ज्यादा फैलाया , गरीबी को बढाया और मानसिक रोग को जन्म दिया , कैंसर , टी बी , जैसी बीमारी हर घर पर दस्तक दे रही है पर समाज के पास इसका कोई अचूक इलाज नही है और आगे बढ़ने के सिवा कोई चारा नही है जबकि आगे सिर्ग अँधेरा ही दिखाई दे रहा है पर मनुष्य अब समाज के भस्मासुर के आगे विवश है , तो क्या हम सब को समाज को नकार देना चाहिए ??????????? शायद हा पर उसके लिए अब समय ही नही है क्योकि समाज खुद एक ऐसी बुराई के रूप में हमारे अन्दर समा चुकी है जिसको अपनाये बिना हम जिन्दा भी नही रह सकते पर जनसँख्या को रोक कर इसका इलाज किया जा सकता है .पर यक्ष प्रश्न यही कि जनसँख्या रोके कैसे ????????? क्या संतान न पैदा करे ???????? क्या विवाह न करे ????????? तो फिर नैसर्गिक अवश्यक्ताओ की पूर्ति कैसे होगी ????????? क्या जानवरों की तरह फिर हम यौन उन्मुक्त समाज स्वीकार कर ले ??????????? क्या अप्रत्यक्ष रूप से चल रही इस परम्परा को प्रत्यक्षा रूप से मनांव स्वकर करके इस सामाजिक बुराई पर बहस करने के लिए मुखौटा उतार कर बहस करने को तैयार है !!!!!!!!!!!! क्या यह एक और समाज की सामाजिक बुराई नही
डॉ आलोक चांत्तिया
अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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