आज मै एक ऐसी बात महसूस कर रहा हूँ जो आप से बाटना चाहता हूँ क्योकि अखिल भारतीय अधिकार संगठन का उद्देश्य भी यही है कि समाज को संवेदन शील बनाया जाये ...कल रात कर्रें १०.१५ पर मेरे सबसे प्रिये विद्द्यार्थी का फ़ोन आया कि सर मेरी माँ का देहांत हो गया है और मुझे भी लगा कि माँ का देहांत हो जाना चाहिए था क्यों कि जिस तरह वह कैंसर से पीड़ित थी उसमे मौत से बेहतर कोई विकल हो ही नही सकता पर मनुष्य ने संस्कृति बना कर जो नातेदारी और मनुष्यता का बीजा रोपण किया वह किसी भी मनुष्य को ऐसे मरते नही देख सकता और जब भी ऐसी कोई बात आती है तो अपवाद को यदि छोड़ दिया जाये तो मनुष्य धन से ज्यादा अपनों को जिन्दा रखने को तरजीह देता है भले ही वह जनता हो कि उस बीमारी का कोई इलाज नही है और एक दिन उसे मरना ही है पर वह दह बहाना श्र्येश्कर समझता है और यही पर धन और रिश्ते के बीच का फर्क पता चलता है और यही मेरे पुत्र जैसे विद्द्यार्थी कि माँ के साथ हो रहा था ..पूरा घर आर्थिक परेशानियो से जूझ रहा था ..कर्ज कि मार से भी नही बच प् रहे थे पर सभी एक निशित परिणाम को जानने के बाद भी अपना सब कुछ लुटा देना चाहते थे और लुटाया | कल रात जब मुझे यह सुचना मिली तो मुझे दुःख जरुर हुआ पर वह दुःख एक माँ के जाने का अधिक था क्यों कि इस शब्द माँ कोअ कोई विकल्प मै इस दुनिया में नही पाता हूँ | खैर आज उनका अंतिम संस्कार हो गया मै फिर भी नही गया क्यों कि मै माँ को जलते नही देख सकता | करीब आज ३ बजे मैंने पाने पुत्र को फ़ोन किया और पूछा तो उसने बताया कि माँ का अंतिम संस्कार पंचग्नि देकर कर दिया गया है | मैंने पूछा ये क्या है ? तो बोला कि सर मेरी और पापा दोनों कि तबियत ( शुगर ) के कारण इतनी ख़राब है कि हम दोनों लोग क्रिया पर बैठ नही सकते और जब तक सनातन धर्म से सब कुछ होगा तो हमारी चचेरी बहन कि शादी की तिथि आ जाएगी और ऐसे कामो के बाद या बीच में शादी ठीक नही इस लिए माँ के देहांत के बाद की साडी क्रियाये अब शादी के बाद होंगी | मै साडी बात सुन कर हैरान था क्यों की मन यह सोच रहा था कि माँ जब तक जिन्दा थी तब तक इस घर अपना सब कुछ लुटा दिया पर जब माँ ( मनुष्य ) मर गई तो इन लोगो ने उस लड़की की शादी को तरजीह दी जो माँ की क्रिया के कारण बाधित हो सकती थी | तो क्या निष्कर्ष यह निकला की जिन्दा मनुष्य ज्यादा महत्वपूर्ण है?????????? ? या फिर संस्कृति में गतिशीलता को बाधित होने नही दिया जाता ?????????? या फिर संस्कृति का मतलब ही जिन्दा व्यक्तियों का क्रिया कलाप है ???????? माँ , बहन या कोई और मनुष्य का नाम महतवपूर्ण है या फिर एक मनुष्य को जिन्दा रखने का नम्म ही संस्कृति है ???????????? मनुष्य के जीवन में ख़ुशी के काम मृत्यु के काम से ज्यादा महत्व पूर्ण क्यों माने गए जब की व शरीर देवत्व को प्राप्त हुआ ?????ऐसे ही कई उलझनों के बीच मुझे लगा कि क्यों न आप से बात करके देखू कि आप क्या कहते है ?????अखिल भारतीय अधिकार संगठन आप को सुनना चाहता है .....डॉ आलोक चांत्टिया
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