विकास का भारत .......राजनीति के आईने में
सड़क के किनारे ,
भारत माँ चिथड़ो में लिपटी ,
इक्कीसवी सदी में जा रहे देश को दे रही चुनौती ,
खाने को न रोटी ,
पहनने को न धोती ,
है तो उसके हाथ में कटोरा वही ,
जिससे झलकती है प्रगति की पोथी सभी ,
किन्तु
हर वर्ष होता है ब्योरो का विकास ,
हमने इतनो को बांटी रोटी ,
और कितनो को आवास ,
लेकिन
आज भी है उसे अपने कटोरे से आस ,
जो शाम को जुटाएगा ,
एक रोटी ,
और तन को चिथड़ी धोती ,
पर ,
लाल किले से आयगी यही एक आवाज़ ,
हमने इस वर्ष किया चहुमुखी विकास
हमने इस वर्ष किया चहुमुखी विकास
सड़क के किनारे ,
भारत माँ चिथड़ो में लिपटी ,
इक्कीसवी सदी में जा रहे देश को दे रही चुनौती ,
खाने को न रोटी ,
पहनने को न धोती ,
है तो उसके हाथ में कटोरा वही ,
जिससे झलकती है प्रगति की पोथी सभी ,
किन्तु
हर वर्ष होता है ब्योरो का विकास ,
हमने इतनो को बांटी रोटी ,
और कितनो को आवास ,
लेकिन
आज भी है उसे अपने कटोरे से आस ,
जो शाम को जुटाएगा ,
एक रोटी ,
और तन को चिथड़ी धोती ,
पर ,
लाल किले से आयगी यही एक आवाज़ ,
हमने इस वर्ष किया चहुमुखी विकास
हमने इस वर्ष किया चहुमुखी विकास
यह चहुमुखी विकृति है
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