आज राष्ट्रीय बालिका दिवस है पर न तो इस बाबत किसी अख़बार में कोई सूचना छपी और न ही किसी टी वी चैनल पर ही कोई कार्यक्रम दिखाया गया ...क्या इसके बाद कुछ भी कहने की जरूरत है कि देश के लोग और देश कितना संवेदन शील है दुर्गा सरस्वती और लक्ष्मी के लिए ................कोई बात नही आइये हम ही यह सोच कर थोड़ी बात कर ले कि हमारी माँ कभी बालिका थी और हमारी बहन भी बालिका है .........आज भी जब से सूरज निकला है और जब मई लिख रहा हु करीब २०० लडकिया या तो अपहरण कर ली गई होंगी या फिर उन्हें जिस्म के धंधे में उतार दिया गया होगा ............आज एक एन जी ओ चलने वाले भाषण दे रहे थे पर मई खुद जनता हूँ कि उनके विरूद्ध कई प्रकरण निलंबित है कि बच्चे गायब कैसे हुए .ऐसे ही लोग बालिकाओ की चिंता कर रहे है .........एक लड़की का जन्म अब लक्ष्मी का जन्म न होकर सिर्फ गोश्त का पिंड होता है क्योकि कोई भी पुरुष एक लड़की को देख कर न तो लक्ष्मी के भाव ला पा रहा है और न ही दुर्गा के ...बल्कि प्लूटो की प्रजातंत्र की अवधारणा की तरह ही महिला सशक्तिकरण के नाम पर महिला को इतना बरगला दिया गया है की पुरुषो को भी कहने का मौका मिल गया है कि लडकिया भी कौन ढूध की धूली है ...अरुशी हत्या कांड का उदहारण देकर बताया जा रहा है कि लड़की नौकर के साथ रह क्र माँ बाप की नाक ही तो कटाती है ..........दहेज़ , यौन उत्पीडन , प्रेम , सब कुछ लड़की के लिए रावन से कम नही है जो सीता जैसी लड़की को कब उठा ले जाये पता नही ..शायद इसी लिए लोग लड़की को मारने लगे है .........पर हमें लड़की के माँ का रूप नही भूलना चाहिए और अपनी माँ की तरह की एक लड़की जरुर समाज को देनी चाहिए ...........कोयले में ही हीरे की उम्मीद की जा सकती है .समाज में लड़की के लिए भी स्थान है ...........और इस हीरे को बचाना हमारा कर्तव्य है ...........आइये अखिल भारतीय अधिकार संगठन के बालिका दिवस के कार्यक्रम में शामिल होकर हम भी एक हीरे के जनक बने
Tum(girl) rakkho chaku ek tej, jo bole do pel, na dula tumehe sataian ,na chula tumeaha satain
ReplyDeleteसार्थक आलेख ...एवं यह जानकारी देने के लिए भी आपका आभार की आज बालिका दिवस है
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