Wednesday, 25 January 2012

pain of republic day

आज गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश  को विजली के लट्टुओ से सजा देख कर आ रहा हूँ , ऐसा लग रहा था मनो देश में उजाले का साम्राज्य हो ........लखनऊ का शमशान तक बिजली से जगमगा रहा था ........पर न जाने क्यों आज राजू  मेरा सब्जी वाला जो पिछले १४ सालो से लखनऊ में बिहार के दानापुर से आकर अपने ९ भाई बहनों के जीवन को चला रहा है .उसके खुद के भी तीन बच्चे है .इसी सब्जी को बेच कर उसने अपनी ६ बहनों की शादी की है और एक भाई की भी शादी कर चूका है क्यों की बचपन में ही बाप के मरने से वो अनकहा बाप बन गया .......मैंने उससे कई बार पूछा कि तुम बिहार से क्यों आये ? सरकार से सहायता क्यों नही ली ??????? वो मुस्करा देता है ......भैया आप तो सब जानते है इन नेताओ का पेट पहले भरे फिर हम गरीबो का नंबर आ जायेगा ........वो जनता है कि नितीश कुमार अच्छा कर रहे है पर वो उधार लेने बैंक न जाकर मेरे जानने वाली महिला से ऋण लेता है जो १०० रुपये पर १० रूपया महिना ब्याज लेती है ..मैंने कहा कि यह तो शोषण है पर उसने कहा भैया बैंक में बिहार वाले को पैसा मिलेगा नही क्यों कि न मेरा घर है न पहचान और महिला से तुरंत पैसा मिल जाता है शोषण है पर आराम तो है .खैर राजू को मैंने अब रूपया दे रखा है बिना ब्याज के ...वो रात में १० बजे तक सब्जी बेचता है फिर घर जाकर रोटी बनाता है ......मुझे पता है कि आज कल वो तबियत ख़राब होने के कारण सब्जी नही बेच रहा है ..बस पता नही क्यों गणतंत्र दिवस पर उसके घर जाने का मन हुआ और मोड़ दी अपनी टम टम उसके घर की तरफ .......अँधेरे में आज भी शहर में मुंशी प्रेम चाँद के नायक की तरह अँधेरे में राजू का घर ..सामान के नाम पर सिर्फ एक बिस्तर , और उसका वो ठेला जिस पर उसका जीवन गति पाता है ...उसके घर को देख मैंने कहा यह कैसे रहते हो राजू .इतना कमाते हो और खुद नाले के किनारे बिना बिजली के रहते हो ..........बुखार में भी राजू हसा और बोला भैया आप भी मजाक करते है ..सारा पैसा मै ही खर्च कर लूँगा तो माँ को क्या भेजूंगा और अभी मेरा एक भाई पढ़ रहा है और मेरे बच्चे और बीवी भी तो है ........मुझे तिरंगे में लिपटे बल्ब याद आ रहे थे जिन्हें मैंने करोडो की गिनती  मे आज देखा था  पर राजू को एक बल्ब नसीब नही था ...देश के नेता ने यह देश बनाया या फिर राजू जैसो ने अपने बचपन और जवानी को नीलाम करके अपने परिवार और अपने जीवन को बनाया .......क्या हम कभी समझ पाएंगे कि देश के गणतंत्र कौन है और हमारे सर किनके आगे झुकना चाहिए .......अच्छा राजू चलता हूँ कल देश का गणतंत्र दिवस है तुमेह शुभकामना .वो भी बुखार को भूल कर कहता है ..भैया आप जैसे लोग बने रहे तो हम गरीबो को भी कोई पूछ लेगा ही ......मै जल्दी से निकल कर टम टम से घर भगा ताकि जल्दी से आपको गणतंत्र से पहले  की शाम की शहर की कहानी सुना सकू ताकि आप खुद समझ ले कि गांवो के लिए गणतंत्र का मतलब अभी कितनी दूर है और न जाने वोलोग काले अंग्रेजो से कब आजाद होंगे और उन्हें आधुनिक भारत और जीवन का एहसास होगा .........खैर ऐसे ही भारत का मै भी ऐसा नागरिक हूँ जो अखिल भारतीय अधिकार संगठन के जन्म के पीछे यही सच पाता है कि शायद मै मरने से पहले कुछ पाने भारतीय जानो के ओठो पर हसी दे सकू  और वही मेरे जीवन का सच्चा गणतंत्र होगा ....पर तब तक तिरंगे के लिए मर काटने वालो के नाम देश का गणतंत्र आप सभी के नाम ....मै चला किसी और राजू से मिलने .....डॉ आलोक चान्टिया

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