Tuesday, 31 January 2012

din ki hasrat

जिन्दगी मौत के मानिंद छिपी छिपी सी रही ,
दुनिया में जब दिखी भी तो घुंघरू बन कर ,
हर सांस हारती रही खुद जिन्दगी के लिए ,
अँधेरे से हो आई फिर किलकारी  बनकर ,
आलोक क्यों है जुदा सबकी मंजिले फिर ,
जब आये थे हम सभी आदमी ही बन कर ...............बढ़ते अँधेरे में कल सुबह होने का तस्वुवुर लेकर आइये हम पूरब की तरफ एक बार हसरत से देख ले ..........शुभ रात्रि ....

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