क्यों महक रही हो इस कदर मेरी जिन्दगी में तुम ,
चमेली कह दूंगा तो गुनाह होगा मेरे लिए लिए ,
तुम बन कर क्यों रही पाई उस जंगली फूल सी ,
जी भी लेती जी भर कर जानवर के साथ ही सही ,
अब देखो जिसे वो ही तुम्हारे महक का प्यासा है ,
क्या अभी भी डाली से जुड़े रह जाने की आशा है ,
आज तक न जान पाई आदमी की फितरत आलोक ,
उसे हर महक , सुन्दरता को देख होती हताशा है ,
मुझे दर्द है कि तेरी मौत पर कभी कोई न रोयेगा ,
तेरी हर बर्बादी में बस संग एक कांटा भी खोएगा ..........मौत के अंधकार
से निकल कर जिन्दगी आपसे कह रही है आप सभी को सूरज कि रौशनी मुबारक
...........सुप्रभात
अच्छा लिखा है..
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
ReplyDeletebadhiya prastuti
ReplyDelete