Sunday, 22 January 2012

vote philosophy

आइये आपको कुछ ऐसा सुनाऊ कि आप को भारत का स्पंदन मत के रूप में दिखाई दे ........आज देहस के गड्तंत्र दिवस की अभ्यास परेड उत्तर प्रदेश के लखनऊ में चल रही थी और मुझे अपने कॉलेज बच्चो को पड़ने जाना था रविवार को ......पर अभ्यास के कारण जा नही सका तो विवस होकर परेड ही देखने लगा .और जो था वो क्या बताऊ पर अंत में एक गाड़ी पर श्वान दल लिक्का था उस पर चार पोलिसे वाले चार जर्मन शेफर्ड के साथ बैठे थे .मुझे यह देख कर हसी आ गई कि जब पूरा देश राजनीति में डूबा है तो देश की रक्षा कुत्ते नही करेंगे तो कौन करेगा ........कम से कम हमें मालूम तो है कि आदमी के लिए वफादार सिर्फ कुत्ता हो सकता है और कुत्ता ही हमें विप्पत्ति से बचा सकता है .........तभी दिमाग ने झकझोरा कि बचपन में यह भी सुना था कि अगर चोर के हाथ में तिजोरी कि चाबी दे दी जाये तो चोरी होने का सवाल ही नही ..तो क्या इसी लिए हमारे धन को   स्विस बैंक में रख कर उसकी चाबी नेताओ के पास है पर जिन्होंने हमारे नेताओ को इस चाबी को दिया है वो उस पैसे को खुद कब जनता के लिए निकालेंगे ............क्या यहा भी यही समझ ले कि चोर चोर मौसेरे भाई ......या फिर चिराग तले अँधेरा है .........पर ऐसा क्यों हो रहा है हम जानवर पर ज्यादा विश्वास करने लगे .....जब कि जनता खुद जानवरों की तरह जीने पर मजबूर है ........क्या कारण है हम देश के पैसे को बाहर रखकर देश की गरीबी बढ़ा रहे है .........क्या आपको जागना चाहिए ???????????? पर जागेंगे कैसे जैसे ही हमें चेतना आती है तो शराब बाँट दी जाती है और हम माँ का दूध पीना तो छोड़ देते है एक समय बाद पर शराब के लिए वो समय कभी नही आ पाता.........और हम यह जानने या कहने के बजाये कि देश को किसने बर्बाद किया .....इसी में उलझ जाते है कि उसने घर बर्बाद कर लिया शराब पीकर .......यही दर्शन चलता है .हम घर के बाहर भी कुत्ता पाल लेते है क्योकि आदमी से हम डरने लगे है ......पर यह आदमी कौन है ?????????? अच्छा वही दबा कुचला , गरीब , सभ्यता के पहले पायदान पर खड़ा मनुष्य जिसके पास न बिजला है , न पानी है , न दवा है , फूस की झोपडी है भी और नही भी .......पर उस से हम दर क्यों रहे है .......जिसके पास कुछ नही वो चोर , बदमाश , लुटेरा क्यों दिखाई दे रहा है ????????? और दिखाई किसको दे रहा है ...स्विस के रखवालो को , या कुत्ता पलने वालो को या उनको जो पांच साल पर इन्हें देश की तस्वीर और देश का सच्चा नागरिक कह कर मत मांगते है ..........क्या आदमी देख नही पा रहा है या फिर संतोषम परम सुखं के तर्ज पर चल कर वो १०० रुपये , शराब का पांच साल तक स्वाति नक्षत्र के इंतज़ार में बैठी पपीहा की तरह जीना उसे आ गया है ........क्यों नही जाग रहा वो मनुष्य वो गरीब आदमी जिसके घर कृष्ण ने साग खाया था ....भगवन राम ने शबरी के बेर खाए थे .....ईसा मसीह ने जन्म लिया था ........सुदामा को देख जिस कृष्ण ने अपना राज पट लुटा दिया था .......आज वो गरीब कहा है जो भगवन को हिला गया था पर नेता को न हिला पाया .......अपने पसीने की महक से क्यों नही जता देते कि मत से हम कुछ भी बदल सकते है और इस बार गरीब फिर से मत से नयी कहानी लिखेगा .सुदामभी लोक का स्वामी बनेगा पर यह तभी होगा जब आप अखिल भारतीय अधिकार संगठन की भावना समझ कर मत की एक नयी कहानी लिख देंगे ...लिखेंगे ना........मत डालो बदल डालो अपना देश .....डॉ आलोक चान्टिया, अखिल भारतीय अधिकार संगठन 

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