Sunday, 1 January 2012

आज भगवान दुनिया की बेशर्मी देख  कर इतना पानी पानी हुआ कि नव वर्ष का पूरा दिन उसके आंसुओ  से ही शायद भीगता रहा ..........वो समझ ही नही पा रहा था कि जिस मनुष्य ने जंगलो को काट डाला , न जाने कितने जानवर उसका शिकार होकर विलुप्त हो गए ........जमीं के अधाधुंध प्रयोग से बंजर जमीं बढ़ गई .......मैंने देश है है कि जिस जंतु के शरीर का आकर जितना छोटा है .उनकी संख्या ही करोडो में है जैसे चीटी, मधु मक्खी , आदि  पर मनुष्य का आकार तो खासा बड़ा है फिर उसकी संख्या दिन पर दिन क्यों बढ़ रही है .यानि हमने कुदरत को भी छेड़ा है ...खुद इतना उत्पात मचा कर मनुष्य अकेला भी इस दुनिया में कहा खुश है .गरीबी , बेरोजगारी , खुद अपनों की हत्या , और इन सब के कारण भ्रष्टाचार ....भगवान खुद नही समझ पा रहा कि मनुष्य क्या चाहता है .फिर भी वो ख़ुशी का इजहार करता है और बर्बादी के हर खेल के बाद हर साल नव वर्ष की शुभ कामना देता है ...शायद २०१२ में इसी को संसार का विनाश कह कर दिखाया जा रहा था और भगवान मनुष्य की इसी हठधर्मिता देख कर इतना शमिन्दा है कि आज वो आखिर पानी पानी होकर रो पड़ा .और सारा दिन वो बरसता रहा .क्या आप कुदरत के इस दर्द को समझ पाए .या फिर इसे भी बारिश कह कर अपने विनाश के खेल को ही सही मान कर नव वर्ष मानते रहे ...............क्या आज सिर्फ बारिश हुई या कुदरत का दर्द बरसता रहा दिन भर ......भगवान ने इस साल हमें फिर ३६५  के बजाये ३६६ दिन दिए है ..यानि १ दिन अलग से जब आप बिना कोई बहाना बनाये सिर्फ यह सोचे कि हमने दुनिया को बनाया है या और बर्बाद किया है ?????????????????????????????????

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