Monday, 23 January 2012

vote ka maan

दरकती जमी में ,
पौधे की चाहत ,
जिन्दगी की रही ,
एक आँख शायद ,
यह समझ सी गई ,
कुछ ही पल में ,
दर्द देख उसका ,
छलक सी गई ,
आंसू गिर गया ,
उसकी जडो पर ,
पौधा देख बोला ,
खारा ही सही ,
आंख की एक ,
बूंद हिस्से में रही ,
पर पानी तो मिला ,
इस दर्द में कोई ,
अपना तो मिला ,
फूल खिले न खिले ,
पर दिल तो खिला,
जिन्दा रहते में ही ,
एक आंसू तो चला ,
तुम आदमी हो पर ,
मुझ पर क्यों रोये ,
अपनों के लिए तुमने ,
कांटे ही क्यों बोये ,
हसे उनकी बर्बादी पे,
उनके लिए क्यों रहे सोये ,
खारा ही सही उन्हें  भी ,
आँखों में पानी दिखा दो ,
एक बार इस देश को,
जीने का अर्थ सीखा दो ,
अंधेरो से निकाल लो सबको ,
आलोक का भावार्थ बता दो  ............अखिल भारतए अधिकार संगठन ने इस कविता में सिर्फ यही समझाने का प्रयास किया है कि हमको पौधे के सूखने का ख्याल रहता है , दर्द रहता है ..पर जो देश के लोग अशिक्षा , गरीबी, अंधेरो में जी रहे है उनके लिए भी आंख में दर्द होना चाहिए और हमने जिनको देश सौपने का मन बनाया है वो इस तरह के लोग हो जो हमारे जीवन से अँधेरा मिटाए ....इस लिए मतदान करे .अभिमान करे ...मतदान का मान तिरंगे कि शान ....डॉ आलोक चान्टिया
अपना

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