Tuesday 24 January 2012

voter day is a blot on Indians

आज राष्ट्रीय मताधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर अखिल भारतीय अधिकार संगठन जो आपसे कहने जा रहा है वो सिर्फ इस लिए नही क्यों कि उसको हर दिन की तरह आपसे मत देने के लिए अपील करनी है या फिर कहानी सुनानी है बल्कि आज वो आपके साथ ऐसा मंथन करना चाहता है जिसके प्रकाश में आपको भी लगेगा कि हम सब भारत वासी ज्यादा है भारतीय अपेक्षाकृत कम ..........सबसे पहली बात यह कि राष्ट्रीय मताधिकार दिवस को मनाने के तथ्य से ही स्पष्ट है कि भारत के लोगो के पास समय की कमी है या फिर वो लगातार एक ही तरह की बात करने में रूचि नही लेते है ......इस लिए अंततः देश में एक दिन निश्चित करना पड़ा ताकि हम बैठ कर मतदान की बात कर सके .......पर हम किसी बात में निरंतरता पसंद क्यों नही करते .क्या हमारा जीवन ज्यादा उलझन भरा है या फिर हम कभी अपने जीवन से ज्यादा दूसरे मामलो में पड़े ही नही जो देश और उसकी अस्मिता से सम्बंधित था ..क्या यही कारण था कि इस देश में शक,हूण, तुर्क , यवन , अँगरेज़ जो आये वो आसानी से भारत में स्म गए और हमने अपनी कमजोरी को धर्म का नाम देकर सहिष्णुता का आवरण पहना कर अपने को सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः ........का उदघोष करके वसुधैकुत्तुम्बुकम के भावार्थ में बदलने में सफल रहे .......लेकिन यह कमजोरी तब तक छिपी रही जब तक देश में आक्रमण होते रहे और पूरा देश सैकड़ो रियासतों में बटा रहा .लेकिन अँगरेज़ अंतिम ऐसे आक्रमणकारी  साबित हुए जिन्होंने देहस को लुटा ही नही बल्कि हामी को हमारी असली तस्वीर दिखा गए और वो तस्वीर थी हमारी पलायन वादी निति जो तब ज्यादा मुखर हुई जब देश आज़ाद हुआ और तमाम रियासतों के सम्मुचय से एक देश कि तस्वीर उभरी जिसको आज भारत के नाम से हम जान रहे है ..पर इन सब ने एक और बात को उभारा वो था हमारा असहिष्णु दृष्टिकोण .......क्योकि अब हम उस भारत में रहने वाले थे जहा के लोग धर्म जाति, उच्च नीच के नाम पर लड़ रहे थे ...जो एक दूसरे को गिराने के लिए रात दिन लगे रहते थे ...और इसी का परिणाम यह रहा कि जैसे जैसे हम गणतंत्र की वर्षगांठ मानते गए हमारे अंतस का द्वेष , का कोढ़ सामने आने लगा .और देश को जातिवाद , क्षेत्रवाद का ऐसा घुन लगने लगा कि हम उस से देश को बचाने के बजाये उसी को जीने का उद्देश्य मान बैठे ........हमने प्रजातान्त्रिक पद्धिति तो अपनाई पर उसमे यह नही निश्चित किया कि कीने मत पाने के बाद ही जन प्रतिनिधि जीता माना जायेगा ..शायद यही वो कमजोर दीवार थी जिसे लोगो ने खपची लगा कर रोके रखा और मतों के प्रतिशत से ज्यादा सबसे ज्यादा मत पाने को प्राथमिकता दी गई .जिसने एक अरब २१ करोड़ की जनसँख्या वाले देश उन्हें जीता माना जो ३०००० मत पा जाते है जब कि उनके क्षत्र में कुल मत ४ लाख है ..पर अगर आप १०० में ३४ नंबर से कम पाइये तो इम्तिहान में फ़ैल मने जायेंगे .....इसी दोहरे मापदंड ने अंततः ऐसी स्थिति कड़ी कर दी कि भारत में आज मताधिकार दिवस मनाना पड़ रहा है .क्या अखिल भारतीय अधिकार संगठन सही नही कह रहा ..............इस तरह के दिवसों को खत्म करने का संकल्प ले और १०० प्रतिशत मतदान सुनिश्चित करे .........डॉ आलोक चान्टिया

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