Tuesday 3 January 2012

why do we fail

किसी भी आन्दोलन का चलना इस बात पर निर्भर करता है कि उसमे रणनीति कैसी है और उनके पास आन्दोलन को चलने वाले प्रणेता कौन कौन है ...अन्ना के आन्दोलन में बराबर मै एक अनशनकारी के रूप में बराबर जुडा रहा  पर मुझे सबसे ज्यादा निम्न कारण लगते है जिसके कारण अन्ना का आन्दोलन जे पी आन्दोलन की तरह ही फेल होता दिखा
१..अन्ना की तरह दुसरे नेता की कमी .कोई भी दूसरा व्यक्ति अन्ना आन्दोलन में उनके बराबर नही आ सका ..जिसके कारण जब अन्ना की तबियत खराब हुई तो उनके बीच में कोई ऐसा नही था जो अन्ना की जगह ले सकता .
२.. अन्ना की तरह साफ़ छवि वाले लोगो की टीम में कमी , अरविन्द केजरीवाल , किरण बेदी, बिस्वास अदि पर जिस तरह से आरोप लगे उस से भी देश की जनता को यही सन्देश गया कि अन्ना के साथ भी सब सही लोग नही है ...
३..अन्ना के पास जल्दी जल्दी अनशन करने कि कोई वजह नही थी
४...आना के साथ काम करने वाले या तो गैर सरकारी संगठन बना कर पैसा कम रहे है या फिर उनके घर में लोग नौकरी कर है .पर आने वाली देश की जनता के जीवन का कोई भविष्य नही दिखया गया
४..ठंडक भी एक बड़ा कारण रहा ,इस आन्दोलन के फेल होने में
५.मोहमम्द तुगलक की तरह देल्ही से तुगलकाबाद करने यानि आन्दोलन की जगह बदलने के कर्ण आन्दोलन फेल हुआ ...
६...संसद में बहस को सुन ने की ललक के कारण जनता ने सडको और आन्दोलन स्थल पर जाने के बजाये घरो में बैठ कर टी.व्. पर बहस देखना ज्यादा अच्छा लगा ...
७.. बहुत से लोग यही नही समझ पाए कि जन लोक पाल बन जाने से क्या भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा ...
८..जनता में यह भी सन्देश गया कि आन्दोलन में जो लोग जुड़े है वो लोग राजनीतिक लाभ के लिए आन्दोलन चला  रहे है ..
९...लोगो को ढंग से यही नही पता कि जन लोक पाल है क्या ????????????
१०..गाँव तक यह आन्दोलन नही पंहुचा और शहर के लोग ज्यादा देर अनशन में दे नही सकते .देश में ८०% जनसँख्या गाँव में रहने के कारण यह आन्दोलन शुरू से ही २०% लोगो तक सीमित था..
११..महाराष्ट्र में अन्ना चुनाव में पहले भी कोई चमत्कार नही कर सके है और वहा के लोग यह जानते है कि आन्दोलन तो अन्ना का रोज का काम है .इस लिए उन्होंने बिलकुल रूचि नही ली ..............
१२..प्रशांत भूषण का कश्मीर पर बयां और संजय सिंह जैसे राजनीतिक लाभ लेने वाले लोगो कि अगुवाई में दिल्ली में तो शुन्य परिणाम रहना ही था
१३..लखनऊ में अनशनकारियो को बेकार दवा बाटने और आन्दोलन के पैसे का हिसाब न देने के कारण शहर के लोग ऐसे अन्ना समर्थको से दूर हो गए
१४.. इन सब के अतिरिक्त यह सब से महत्वपूर्ण रहा कि अन्ना सिर्फ कांग्रेस के विरुद्ध ही बोलने लगे , जिस से लोगो को यह लगा कि अन्ना किसी पार्टी से मिले हुए है और उसी के लिए काम कर रहे है और देश की जनता ने इस बात को इतनी गंभीरता से ले लिया कि उन्हें यह आन्दोलन भ्रष्टाचार से ज्यादा सत्ता की लड़ाई का कारण बनता दिखाई देने लगा .और पूरा आन्दोलन ध्वस्त होता दिखाई दिया ...
१५..देश में लोगो ने भारतीय बन कर नही बल्कि पार्टी , का बन कर ज्यादा इस आन्दोलन को देखा .इस लिए फेल हुआ ..
क्या अधिकारों के लिए की गई सबसे बड़ी स्वतंत्रता के बाद की लड़ाई सिर्फ दूरदर्शिता की कमी और लोगो में राष्ट्रियेता की कमी के कारण ध्वस्त नही हुआ ...................हम भारतवासी बनकर ज्यादा इस आन्दोलन को देखते रहे जब कि देखना भारतीय बन कर चाहिए था .अखिल भारतीय अधिकार संगठन तो ऐसा ही सोचता है पर आप क्या सोचते है नही कहेंगे ........................

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