तेरे अश्को को मान लिया अपनी चाहत ,
तेरे कदमो को भी मान लिया अपनी आहट,
अब न जाने और क्या चाहता आलोक ,
उसके हसने में भी रहती अपनी सुगबुगाहट .....१
बहकते है वो जिन्हें यकीं ही नही खुद पर ,
गिरते है वो जिन्हें जमीं न मिली मर कर ,
मुझे पता है काँटों की चुभन ये आलोक ,
रोते है वो जिन्हें कुछ न मिला जी कर ..........२
तेरे हिस्से मौत न आई मांग कर भी ,
मेरे हिस्से जिन्दगी न आई मर कर भी ,
दोनों को अब न जाने किसका इंतज़ार ,
हसी जाने कहा हो गई हमसे मिलकर ...........३
जो बीत गया अब याद ना आया ,
जो मिल गया उसको भी ना पाया ,
जाने क्या बटोरते रहे उम्र भर हम ,
जो छूटगया वही फिर काम आया .................4
तेरे कदमो को भी मान लिया अपनी आहट,
अब न जाने और क्या चाहता आलोक ,
उसके हसने में भी रहती अपनी सुगबुगाहट .....१
बहकते है वो जिन्हें यकीं ही नही खुद पर ,
गिरते है वो जिन्हें जमीं न मिली मर कर ,
मुझे पता है काँटों की चुभन ये आलोक ,
रोते है वो जिन्हें कुछ न मिला जी कर ..........२
तेरे हिस्से मौत न आई मांग कर भी ,
मेरे हिस्से जिन्दगी न आई मर कर भी ,
दोनों को अब न जाने किसका इंतज़ार ,
हसी जाने कहा हो गई हमसे मिलकर ...........३
जो बीत गया अब याद ना आया ,
जो मिल गया उसको भी ना पाया ,
जाने क्या बटोरते रहे उम्र भर हम ,
जो छूटगया वही फिर काम आया .................4
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