Monday, 7 May 2012

rashtrpati kaisa ho

भारत में राष्ट्रपति का चुनाव दस्तक दे रहा है और इस देश में किसी भी बात के लिए मंथन एक सामान्य सी प्रक्रिया है और शायद यही कारण है कि राष्ट्रपति का चुनाव भी एक मंथन के दौर से होकर गुजर रहा है कि उमीदवार राजनैतिक पृष्ठभूमि का होना चाहिए या नही ................आप सभी को पता है कि भारत में राष्ट्रपति जो भारत का प्रथम नागरिक है उसकी वैधानिक स्थिति क्या है ? यह तक वह किसी कानून को पुनरावलोकन के लिए भी संसद में सिर्फ एक बार भेज सकता है यानि वह सिर्फ एक मोहर की तरह है और यह एक सामान्य सी अवधारणा बन गई है कि किसी भी व्यक्ति की राजनैतिक सक्रियता ख़त्म करनी हो तो उसको राष्ट्रपति या राज्यपाल के पद पर बैठा दो और आज यही कारण है कि अपनी राजनैतिक हत्या से उबरने के लिए हर वो व्यक्ति छटपटाता दिखाई देता है जिसे राष्ट्रपति पद का उम्मेदार बनाने की कोशिश की जाती है | अगर इस पद में एक बेहतर भविष्य का सार होता तो समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष श्री मुलायम सिंह यादव ने यह कह कर इंकार न किया होता कि मई जनता के आदेश के साथ खुश हूँ जबकि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री उनके पुत्र है तो फिर मुलायम जी की क्या इच्छा है इस पर चर्चा की जरूरत नही है | श्री शरद पवार ने भी पानी उम्मीदवारी ओ ख़ारिज कर दिया और यही नही एक दम दर कांग्रेस के नेता के रूप में श्री प्रणव मुखर्जी का नाम जिस तरह उछल रहा है और जिस तह वह भी इंकार कर रहे है , उस से तो यही लगता है  राष्ट्र का प्रथम नागरिक एक राजनैतिक व्यक्ति स्वयं पाने मन से तो कतई नही बनना चाहता और राजनैतिक पार्टी ऐसे लोगो का समर्थन भी नही करना चाहती जिनसे उनके हितो को ज्यादा हानि पहुचे | श्री टी एन शेषण को राष्ट्र पति न बन्ने देना और पूर्व राष्ट्रपति कलाम के लिए दोबारा राष्ट्रपति बनाये जाने के लिए  सहमती न बनना , इस बात का प्रमाण है कि राष्ट्रपति बनाये जाने के पीछे कुछ न कुछ तथ्य जरुर है | इन सब से इतर सब से महत्व पूर्ण  बात यह है कि वर्तमान में किस तरह के व्यक्ति को राष्ट्रपति के पद के योग्य माना जाये | इस मुद्दे पर वैसे तो जनता की राय पूरी तरह बेमानी है क्योकि राष्ट्रपति के चुनाव में जनता का कोई सहयोग नही होता और उनके द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि भी व्यक्तिगत निर्णय नही ले सकते है क्योकि राष्ट्रपति का उम्मीदवार सामूहिक होता है और उसी से परिणाम  निकलता है | इतिहास गवाह है कि सत्ता चलने का काम प्रधानमंत्री का ही रहा है फिर चाहे वह भारत का पूर्व प्रधान मंत्री चाणक्य ( चन्द्र गुप्त का प्रधान मंत्री ) रहा हो या फिर भारत के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह | पहले राजा था और अब राष्ट्र पति पर तब राजा ही सब कुछ था और आज राष्ट्रपति कागज पर सब कुछ है लेकिन व्यवहार में प्रधानमंत्री सब कुछ है | हस्तिना पुर के राजा ध्र्षराष्ट्र की तरह ही राष्ट्रपति का कार्य है जो भीष्म पितामह पर आश्रित है यानि उस समय भी भीष्म पितामह को एक राजनैतिक प्रष्ट भूमि  वाले व्यक्ति के लिए काम करना था | अकबर के लिए बैरम खान था पर अकबर को सारी राजनैतिक दाव पेंच की जानकारी थी तभी तो वह बैरम खान के भी मंसूबो को जान सके | चन्द्र गुप्त  खुद एक बेहतर  सोच वाला राजनैतिक  था तभी चाणक्य एक बेहतर राष्ट्र चला पाया | एक कहावत है देवो भूत्वा देवो अजयेते \ यानि देवता बन कर ही देवता को प्राप्त किया जा सकता है | और पीर भारत में तो परम्पर रही है कि जो जिस विषय में पारंगत है वह उसी में प्रवक्ता बन सकता है क्योकि यह यह मान्यता कि बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद या फिर इसे आप और बेहतर से यह कहकर समझ सकते है कि बन्दर के हाथ में उस्तरा | अमेरिका में एक एक सामन्य व्यक्ति जूरी व्यवस्था में न्याय कर सकता है पर भारत में तो एक विशेज्ञ ही न्याय कर सकता है एक शिक्षक को न्याय करने के योग्य माना जाता है | इस लिए यह सोचना कठिन है कि भारत में राष्ट्रपति वह बने जो राजनैतिक प्रष्ट भूमि का न हो | राष्ट्रपति तो एक किसान को बनाना चाहिए जो अँधेरे , बिजली, मसुं , पानी , सड़क , शिक्षा , बीमारी , का मतलब जनता है , कम से कम जब कौन अंतिम हस्ताक्षर के लिए उसके पास आएगा तो वह आने दर्द को देख  तो लेगा कि वह सब कानून में है कि नही और कम से कम एक बार तो वापस कर ही सकता है और अमरे देश में साक्षर तो बढ़े ही है यानि हस्ताक्षर करना टी उसे आताही होगा क्योकि इस से ज्यादा का काम उसे रहता नही , पञ्च साल में वह मृत्यु दंड पाए लोगो कि फाइल तक तो निपटा नही पाता, ऐसे में उसके पास का काम है और उस स्थिति में भारत के आम नागरिक  पर विचार किया  जा सकता है और उसका राजनीती से कुछ लेना देना ही नही होता पर अगर आप एक समृद्ध भारत के आईने में इस प्रश्न को पूछ रहे है तो अखिल भारतीय  अधिकार संगठन ऊपर के तथ्यों के प्रकाश में यही कह सकता है कि जस जेके महतारी बाप तस तैके लड़का , और जस जेके घर द्वार , तस तैके फरका यानि जब राष्ट्रपति सम्पूर्ण राष्ट्र का प्रथम व्यक्ति ही नही उसका प्रतिबिम्ब है तो हमें ऐसे व्यक्ति का चुनाव करना चाहिए जो जानकर हो , ऐसे तो भारत में हर व्यक्ति डॉक्टर है पर क्या हम उसके इलाज पर भरोसा कर पाते है क्या वह हमारे को बीमारी का प्रमाण पत्र दे सकता है और उसे सर्कार मानती है ? नही ना तो फिर क्यों ना एक ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति बने तो संविधान का ज्ञाता हो और जिसने काफ लम्बा राजनैतिक अनुभव रखा हो ताकि वह भारत को अच्छी तरह समझ सके और भारत में कानून के कूड़े के ढेर को हस्ताक्षर करते समय एक सही आइना  दिखा सके ताकि वह देश में बाबू बनने के बजाये सही अर्थो में राष्ट्र पति कहलाये .....डॉ अलोक चांटिया, अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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